शुंग राजवंश ने 185BC से 73 BC तक और कनव राजवंश ने 73 BC से 28 BC की अवधि तक शासन किया | शुंग राजवंश की राजधानी विदिषा (मध्य प्रदेश) और कनव राजवंश की राजधानी पाटलीपुत्र थी |
शुंग राजवंश (185 BC से 73 BC )
शुंग राजवंश की 185 BC में पुष्यमित्रा शुंग ने स्थापना की | पुष्यमित्रा शुंग अंतिम मौर्य शासक बृहदरथा का मुख्य ब्राह्मण सेनाध्यक्ष था |
शुंग राजवंश से संबन्धित मुख्य बिन्दु निम्न दिये गए हैं :
पुष्यमित्रा शुंग रूढ़िवादि हिन्दू धर्म का कट्टर समर्थक था |
इसका उत्तराधिकारी इसका पुत्र अग्निमित्रा शुंग बना जोकि कालिदास के नाटक माल्विकाग्निमित्रा में पुरुष नायक था |
अग्निमित्रा के बाद कुछ कमजोर शासक जैसे वज्रमित्रा, देवभूति, वासुमित्रा और भागभद्रा ने शासन किया |
शुंग काल के दौरान एक प्रसिद्ध ‘बर्हुत स्तूप’ बनाया गया |
शुंग कला के कुछ उदहारण चैत्य, विहार, भाजा का स्तूप और नासिक का स्तूप हैं |
कनव राजवंश (73 BC से 28 BC )
शुंग राजवंश के अंतिम शासक देवभूति का 73 BC में कत्ल कर दिया गया और एक नए राजवंश कनव राजवंश की स्थापना वासुदेव के द्वारा की गई | वासुदेव देवभूति का मंत्री था | कनव राजवंश 28 BC तक रहा |
कनव राजवंश के अन्य शासक थे भूमिमित्रा, नारायण और सुषर्मन | कनव राजवंश का अंत सातवाहन राजवंश के शासक ने किया |
कलिंग का छेदि राजवंश :
कलिंग में प्रथम सदी BC में एक नए राजवंश का उत्थान हुआ जिसे चेति या छेदि राजवंश कहा गया | हमे इसके बारे में जानकारी उड़ीसा में भुवनेश्वर के निकट हाथीगुंफा अभिलेखों में मिलती है | छेदि राजवंश के तीसरे शासक खारवेल के द्वारा इन अभिलेखों को उत्कीर्ण करवाया गया था | खारवेल जैन धर्म का अनुयायी था | छेदि राजवंश चेत या चेत्वंसा के नाम से भी प्रसिद्ध है | खारवेल ने अतः अपने अभिलेखों में चेतराजा (चेताराजवास वधनेना ) के वंश की महिमा का उल्लेख किया था |
अतः कलिंग के छेदि राजवंश को महामेघवाहना परिवार भी कहा जाता है | यह नाम शासकों की ताकत के बारे में बताता है | महामेघवाहना की उपाधि का अर्थ है “महान बादलों के स्वामी” जो बादलों को अपने वाहन के रूप में प्रयोग करता है | यह कहा जा सकता है कि राजा भी इंद्र की तरह ही शक्तिशाली थे |
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