सूचना का अधिकार (RTI): आम आदमी का हथियार

प्रत्येक प्रजातांत्रिक देश में जनता को यह जानने का हक है कि सरकार उसके लिए क्या, कहां और कैसे काम कर रही है तथा उसके द्वारा टैक्स के रूप में दिए गए धन को कैसे खर्च कर रही है| जनता को सरकार से जुड़े सभी बातों को जानने का अधिकार ही सूचना का अधिकार है। इस दिशा में 2005 में भारतीय संसद द्वारा एक कानून पारित किया था जिसे सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के नाम से जाना जाता है।

Nov 28, 2016, 17:38 IST

भारत एक प्रजातांत्रिक देश है। प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जनता ही देश का असली मालिक होता है। इसलिए मालिक होने के नाते जनता को यह जानने का हक है कि उसने अपनी सेवा के लिए जो सरकार चुनी है, वह क्या, कहां और कैसे काम कर रही है। इसके साथ ही हर नागरिक सरकारी को काम-काज को सुचारू ढ़ंग से चलाने के लिए टैक्स देता है, अतः नागरिकों को यह जानने का हक है कि उनका पैसा कहां खर्च किया जा रहा है| जनता को सरकार से जुड़े सभी बातों को जानने का अधिकार ही सूचना का अधिकार (RTI) है। इस दिशा में 2005 में देश की संसद ने एक कानून पारित किया था जिसे सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के नाम से जाना जाता है। इस अधिनियम में यह व्यवस्था की गई है कि किस प्रकार आम जनता सरकार से सूचना मांगेगी और किस प्रकार सरकार उसका जवाब देगी|

क्या आप जानते हैं कि विश्व में सर्वप्रथम सूचना का अधिकार अधिनियम कहां लागू किया गया था?

विश्व में सबसे पहले स्वीडन ने सूचना का अधिकार कानून को 1766 में लागू किया था| इस कारण स्वीडन को सूचना के अधिकार कानून की जननी कहा जाता है| स्वीडन में सूचना मांगने वाले को तत्काल और निःशुल्क सूचना देने का प्रावधान है।

Image source: www.patrika.com

दुनिया के ये हैं ऐसे कानून जिन्हें अपनाकर भारत बन सकता है विकसित देश

आइए जानते हैं कि भारत में सूचना के अधिकार का इतिहास क्या है और इसे किन परिस्थितियों में लागू किया गया था?

अंग्रज़ों ने भारत पर लगभग 250 वर्षो तक शासन किया और इस दौरान ब्रिटिश सरकार ने भारत में शासकीय गोपनीयता अधिनियम 1923 को लागू किया था,  जिसके अन्तर्गत सरकार को यह अधिकार था कि वह किसी भी सूचना को गोपनीय रख सकती थी| सन् 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ, लेकिन संविधान निर्माताओ ने सूचना के अधिकार के संबंध में संविधान में कोई वर्णन नहीं किया और न ही अंग्रेज़ो द्वारा बनाए गए शासकीय गापनीयता अधिनियम 1923 में संशोधन किया| इसके कारण आने वाली सभी सरकारों ने गोपनीयता अधिनियम 1923 की धारा 5 व 6 के प्रावधानों का लाभ उठकार जनता से सूचनाओं को छुपाती रही।

सूचना के अधिकार के प्रति कुछ सजगता वर्ष 1975 के शुरूआत में उत्तर प्रदेश सरकार बनाम राज नारायण केस से हुई थी| इस मामले की सुनवाई उच्चतम न्यायालय में हुई, जिसमें न्यायालय ने अपने आदेश के द्वारा लोक प्राधिकारियों द्वारा सार्वजनिक कार्यो का ब्यौरा जनता को प्रदान करने की व्यवस्था की थी| इस निर्णय के कारण भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(ए) में वर्णित नागरिको की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे को बढ़ाकर उसमें सूचना के अधिकार को भी शामिल कर लिया गया था|

वर्ष 1982 में द्वितीय प्रेस आयोग ने शासकीय गोपनीयता अधिनियम 1923 की विवादास्पद धारा 5 को निरस्त करने की सिफारिश की थी, क्योंकि इसमें कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया था कि ‘गुप्त’ क्या है और ‘शासकीय गुप्त बात’ क्या है? इसलिए परिभाषा के अभाव में यह सरकार के निर्णय पर निर्भर था, कि किस बात को गोपनीय माना जाए और किस बात को सार्वजनिक किया जाए| बाद के वर्षो में साल 2006 में ‘विरप्पा मोइली’ की अध्यक्षता में गठित ‘द्वितीय प्रशासनिक आयोग’ ने इस कानून को निरस्त करने का सिफारिश की थी|

सूचना के अधिकार की मांग राजस्थान से प्रारम्भ हुई। राज्य में सूचना के अधिकार के लिए 1990 के दशक में जनान्दोलन की शुरूआत हुई, जिसमें मजदूर किसान शक्ति संगठन (एम.के.एस.एस.) द्वारा अरूणा राय की अगुवाई में भ्रष्टाचार की समाप्ति के लिए जनसुनवाई कार्यक्रम की शुरूआत हुई थी| 1989 में केन्द्र में कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद बी.पी. सिंह की सरकार सत्ता में आई, जिसने सूचना का अधिकार कानून बनाने का वायदा किया था। 3 दिसम्बर 1989 को अपने पहले संदेश में तत्कालीन प्रधानमंत्री बी.पी. सिंह ने संविधान में संशोधन करके सूचना का अधिकार कानून बनाने तथा शासकीय गोपनीयता अधिनियम में संशोधन करने की घोषणा की थी| किन्तु बी.पी. सिंह सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद भी इस कानून को लागू नहीं कर किया जा सका|  वर्ष 1997 में केन्द्र सरकार ने एच.डी. शौरी की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित करके मई 1997 में सूचना की स्वतंत्रता का प्रारूप प्रस्तुत किया था किन्तु शौरी कमेटी के इस प्रारूप को संयुक्त मोर्चे की दो सरकारों ने दबाए रखा।

वर्ष 2002 में संसद ने ‘सूचना की स्वतंत्रता विधेयक’ (Freedom of Information Bill) को पारित किया। इसे जनवरी 2003 में राष्ट्रपति की मंजूरी मिली, लेकिन इसकी नियमावली बनाने के नाम पर इसे लागू नहीं किया गया। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यू.पी.ए.) की सरकार ने पारदर्शिता युक्त शासन व्यवस्था एवं भ्रष्टाचार मुक्त समाज बनाने के लिए 12 मई 2005 को सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 को संसद से पारित करवाया, जिसे 15 जून 2005 को राष्ट्रपति की अनुमति मिली और अन्ततः 12 अक्टूबर 2005 को यह कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू किया गया। इसी के साथ सूचना की स्वतंत्रता विधेयक 2002 को निरस्त कर दिया गया।

Image source: DNA

सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आम आदमी को प्राप्त अधिकार

सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत देश के प्रत्येक नागरिकों को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हैं:

1. वह सरकार से कोई भी सवाल पूछ सकता है या कोई भी सूचना प्राप्त कर सकता है

2. वह किसी भी सरकारी दस्तावेज़ की प्रमाणित प्रति ले सकता है

3. वह किसी भी सरकारी दस्तावेज की जांच कर सकता है

4. वह किसी भी सरकारी काम की जांच कर सकता है

5. वह किसी भी सरकारी काम में इस्तेमाल की गई सामग्रियों का प्रमाणित नमूना ले सकता है

20 ऐसे कानून और अधिकार जो हर भारतीय को जानने चाहिए

सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत आने वाले विभाग

सभी सरकारी विभाग, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता से चल रहीं गैर सरकारी संस्थाएं व शिक्षण संस्थाएं आदि विभाग सूचना के अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत आते हैं| पूर्णत: निजी संस्थाएं इस कानून के दायरे में नहीं आते हैं लेकिन यदि किसी कानून के तहत कोई सरकारी विभाग किसी निजी संस्था से कोई जानकारी मांग सकता है तो उस विभाग के माध्यम से वह सूचना किसी भी नागरिक के द्वारा इस अधिनियम के अन्तर्गत मांगी जा सकती है|

आइए अब जानते हैं कि सूचना के अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदन करने का तरीका क्या है?

सभी सरकारी विभागों के एक या एक से अधिक अधिकारियों को लोक सूचना अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया है। ये वह अधिकारी हैं जो सूचना के अधिकार के तहत आवेदन स्वीकार करते हैं, मांगी गई सूचनाएं एकत्र करते हैं और उसे आवेदनकर्ता को उपलब्ध करवाते हैं। इसके अलावा बहुत से अधिकारी को सहायक लोक सूचना अधिकारी के रूप में भी नियुक्त किया गया हैं। इनका काम सिर्फ जनता से आवेदन ले कर उसे संबंधित जन सूचना अधिकारी के पास पहुंचाना है| अगर किसी विभाग में लोक सूचना अधिकारी की नियुक्ति नहीं की गई है या किसी व्यक्ति को इसकी जानकारी नहीं है तो वह अपना आवेदन लोक सूचना अधिकारी, द्वारा - विभाग प्रमुख (विभाग का नाम व पता) लिखकर उस विभाग में भेज सकता है| अब उस विभाग प्रमुख की यह ज़िम्मेदारी है कि वह इसे संबंधित लोक सूचना अधिकारी के पास पहुंचाए| इसके अलावा डाक द्वारा भी आवेदन भेजा जा सकता है| केन्द्र सरकार के सभी विभागों के लिए 629 डाकघरों को केन्द्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी बनाया गया है। इनमें से किसी भी डाकघर में जाकर कोई भी व्यक्ति आवेदन और शुल्क जमा कर सकता है। वहां जाकर जब कोई व्यक्ति सूचना का अधिकारी काउंटर पर आवेदन जमा करता है तो उसे रसीद और एक्नॉलेजमेंट दी जाती है और अब उस डाकघर की ज़िम्मेदारी होती है कि तय समय सीमा में वह उस व्यक्ति के आवेदन को उपयुक्त लोक सूचना अधिकारी तक पहुंचाए। इन डाकघरों की सूची www.indiapost.gov.in/rtimanual116a html पर उपलब्ध है।

इसके अलावा विभिन्न सरकारी वेबसाइटों जैसे- www.rti.gov.in  से भी लोक सूचना अधिकारी की सूची प्राप्त की जा सकती है| इसके अलावा व्यक्तिगत रूप से भी  स्वयं लोक सूचना अधिकारी या सहायक लोक सूचना अधिकारी के पास जाकर या किसी को भेजकर आवेदन जमा कराया जा सकता है।

क्या आप जानते हैं कि लोक सूचना अधिकारी आपका आवेदन लेने से मना नहीं कर सकता है?

सूचना के अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद 6(3) के अनुसार कोई भी लोक सूचना अधिकारी आपका आवेदन लेने से मना नहीं कर सकता है| यदि कोई लोक सूचना अधिकारी यह समझता है कि मांगी गई सूचना उसके विभाग से सम्बंधित नहीं है तो यह उसका कर्तव्य है कि उस आवेदन को पांच दिन के अन्दर संबंधित विभाग को भेजे और आवेदक को भी सूचित करे। अगर लोक सूचना अधिकारी आवेदन लेने से मना करता है या तय समय सीमा में सूचना नहीं उपलब्ध् कराता है अथवा गलत या भ्रामक जानकारी देता है तो देरी के लिए 250 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से 25000 रूपये तक का ज़ुर्माना उसके वेतन में से काटा जा सकता है। साथ ही उसे सूचना भी देनी होगी।

क्या आप जानते हैं कि सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदन शुल्क कितना है?

सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदन शुल्क 10 रूपये है और सूचना देने का खर्च प्रति पृष्ठ 2 रूपये है| जो निम्नलिखित में से किसी एक तरीके से दी जा सकती है:-

1. प्रधानमंत्री कार्यालय के खजांची के पास नकद जमा कराकर|

2. “अनुभाग अधिकारी, प्रधानमंत्री कार्यालय” के पक्ष में और नई दिल्ली में संदेय डिमांड ड्राफ्ट/बैंकर्स चेक के रूप में।

3. “अनुभाग अधिकारी, प्रधानमंत्री कार्यालय” के पक्ष में देय पोस्टल आर्डर के रूप में।

4. आवेदक के गरीबी रेखा के नीचे की श्रेणी का होने का वैध प्रमाण-पत्र जिसके कारण उसे आवेदन फीस का भुगतान करने से छूट प्राप्त हो सकता है।

आवेदन शुल्क के लिए हर राज्य की अपनी अलग-अलग व्यवस्थाएं हैं| कुछ राज्य सरकारों ने इसके लिए निश्चित खाते खोले हैं। आपको उस खाते में शुल्क जमा करना होता है। इसके लिए भारतीय स्टेट बैंक की किसी भी शाखा में नकद जमा करके उसकी रसीद आवेदन के साथ नत्थी करनी होती है। इसके अलावा उस खाते के पक्ष में देय पोस्टल ऑर्डर या डीडी भी आवेदन के साथ संलग्न कर सकते हैं। कुछ राज्यों में, आवेदन के साथ निर्धारित मूल्य का कोर्ट का स्टैम्प भी लगाया जा सकता है  बीपीएल कार्डधरकों से सूचना मांगने पर कोई फीस नहीं ली जाती है|

क्या आप जानते हैं कि लोक सूचना अधिकारी कुछ विषयों से संबंधित सूचनाएं देने से मना भी कर सकता है?

लोक सूचना अधिकारी सूचना के अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद 8 में वर्णित विषयों से संबंधित सूचनाएं देने से मना कर सकता है। इसमें विदेशी सरकारों से प्राप्त गोपनीय सूचनाएं, सुरक्षा मामलों से संबंधित सूचनाएं, रणनीतिक, वैज्ञानिक या देश के आर्थिक हितों से जुड़े मामले, विधनमण्डल के विशेषाधिकार हनन से संबंधित मामले से जुड़ी सूचनाएं शमिल हैं। इस अधिनियम की दूसरी अनुसूची में ऐसी 18 एजेंसियों की सूची दी गई है जहां सूचना का अधिकार लागू नहीं होता है, फिर भी, यदि सूचना भ्रष्टाचार के आरोपों या मानवाधिकारो के हनन से जुड़ी हुई है तो इन विभागों को भी सूचना देनी पड़ेगी| जो सूचना संसद या विधानसभा को देने से मना नहीं किया जा सकता उसे किसी आम आदमी को भी देने से मना नहीं किया जा सकता है|

सूचना प्राप्त करने की समय सीमा:

यदि कोई व्यक्ति जन सूचना अधिकारी के पास आवेदन जमा कर दिया है तो उसे हर हाल में 30 दिनों के भीतर सूचना मिल जानी चाहिए। यदि कोई व्यक्ति अपना आवेदन सहायक लोक सूचना अधिकारी के पास जमा किया है तो यह सीमा 35 दिनों की है। यदि कोई सूचना किसी व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकती है तो यह सूचना 48 घंटों में उपलब्ध करायी जाती है। द्वितीय अनुसुची में शामिल संगठनो के लिए यह सूचना 45 दिनों में तथा तृतीय अनुसुची में 40 दिनों में उपलब्ध कराने का प्रावधान है।

जानें भारत के 9 अजब गजब कानून

यदि किसी व्यक्ति को सूचना नहीं मिलती है तो उसे क्या करना चाहिए?

यदि किसी व्यक्ति को सूचना नहीं मिलती है या वह प्राप्त सूचना से असन्तुष्ट है, तो उसे अधिनियम की धारा 19 के तहत प्रथम अपील अधिकारी के पास प्रथम अपील करना चाहिए| हर सरकारी विभाग में लोक सूचना अधिकारी से वरिष्ठ पद के एक अधिकारी को प्रथम अपील अधिकारी बनाया गया है। सूचना न मिलने या गलत मिलने पर पहली अपील इसी अधिकारी के पास की जाती है। यदि पहली अपील दाखिल करने के पश्चात भी किसी व्यक्ति को सूचना नहीं मिलती है तो उसे मामले को आगे बढ़ते हुए दूसरी अपील करना चाहिए। सूचना के अधिकार कानून के अन्तर्गत सूचना प्राप्त करने के लिए दूसरी अपील करना, अन्तिम विकल्प है। दूसरी अपील सूचना आयोग में किया जाता है। केन्द्र सरकार के विभाग के खिलाफ अपील दाखिल करने के लिए केन्द्रीय सूचना आयोग है। सभी राज्य सरकारों के विभागों के लिए राज्यों में ही सूचना आयोग हैं। दूसरी अपील दाखिल करने से पूर्व अपील के नियमों को सावधनी पूर्वक पढ़ना चाहिए क्योंकि यदि दूसरी अपील, अपील के नियमों के अनुरूप नहीं होगा तो दूसरी अपील ख़ारिज़ की जा सकती है। राज्य सूचना आयोग में अपील करने के पूर्व राज्य के नियमों को ध्यान से पढ़ना चाहिए। पहली अपील करने के 90 दिनों के अन्दर अथवा पहली अपील के निर्णय आने की तारीख के 90 दिन के अन्दर दूसरी अपील दाखिल की जा सकती है।

Image source: Times of India

निष्कर्ष-

सूचना का अधिकार कानून आज विश्व के लगभग 80 से अधिक देशों में लागू है। इन देशों में स्वीडन, फ्रांस, कनाडा, मैक्सिको एवं भारत प्रमुख हैं| निष्कर्षतः आज भारत में राजस्थान से लेकर मणिपुर तक या उत्तर में हिमाचल से लेकर कन्याकुमारी तक देश के विभिन्न क्षेत्रों में नागरिकों द्वारा सूचना के अधिकार कानून का प्रयोग किया जा रहा है और यह कानून कदम-दर-कदम आगे बढ़ रहा है| लेकिन इस कानून के दायरे व मुख्य प्रावधानों के संबंध में मत मतान्तरों एवं अस्पष्ट क्षेत्रों को भी स्पष्ट करने की आवश्यकता है|

जानिए पुलिस FIR से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य

Jagranjosh
Jagranjosh

Education Desk

Your career begins here! At Jagranjosh.com, our vision is to enable the youth to make informed life decisions, and our mission is to create credible and actionable content that answers questions or solves problems for India’s share of Next Billion Users. As India’s leading education and career guidance platform, we connect the dots for students, guiding them through every step of their journey—from excelling in school exams, board exams, and entrance tests to securing competitive jobs and building essential skills for their profession. With our deep expertise in exams and education, along with accurate information, expert insights, and interactive tools, we bridge the gap between education and opportunity, empowering students to confidently achieve their goals.

... Read More

आप जागरण जोश पर भारत, विश्व समाचार, खेल के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए समसामयिक सामान्य ज्ञान, सूची, जीके हिंदी और क्विज प्राप्त कर सकते है. आप यहां से कर्रेंट अफेयर्स ऐप डाउनलोड करें.

Trending

Latest Education News