विकासक्रम एवं परिचय

वर्तमान समय में कम्प्यूटर की महत्ता को देखते हुए बैंक की परीक्षाओं में कम्प्यूटर से संबंधित प्रश्न पूछे जा रहे हैं। हमने प्रत्येक वर्ग की जरूरत बन चुके कम्प्यूटर के प्रयोग एवं अनुप्रयोग से संबंधित समस्त पाठ्य सामग्री का समावेश अपनी पुस्तक में करने का प्रयास किया है। साथ ही छात्रों की सुविधा के लिए संकलित पाठ्य-सामग्री को आधार मानकर प्रैक्टिस सैट्स भी दिए गए हैं।

Sep 3, 2011, 11:17 IST

आज के इस मशीनी युग में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो कम्प्यूटर शब्द से परिचित न हो। आधुनिक युग का वरदान कहे जाने वाले कम्प्यूटर का उपयोग आज हर क्षेत्र के प्रत्येक कार्य में किया जा रहा है। कम्प्यूटर का तात्पर्य एक ऐसे यन्त्र से है, जिसका प्रयोग गणना, प्रक्रिया, यांत्रिकी, अनुसंधान, शोध आदि कार्यों में किया जाता है। जब से मनुष्य ने गणना करना सीखा तभी से वह इस प्रयास में रहा है कि गणना करने में सहायक यन्त्रों का निर्माण किया जाए। 17वीं शताब्दी में चाल्र्स बैबेज ने 'डिफरेंस मशीन' का आविष्कार किया, जिससे आधुनिक कम्प्यूटर के युग की शुरुआत हुई। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के गणित के प्रोफेसर चाल्र्स बैबेज को 'कम्प्यूटर का पितामहÓ भी कहा जाता है। आधुनिक कम्प्यूटरों का इतिहास मात्र 50 वर्ष पुराना है।

चाल्र्स का डिफरेन्स इंजन

बैबेज ने सबसे पहले यान्त्रिक गणना मशीन का आविष्कार किया। इस मशीन की सहायता से विभिन्न बीज गणितीय फलनों का मान दशमलव के 20 स्थानों तक शुद्घतापूर्वक ज्ञात कर सकते हैं, इसीलिए इस मशीन को चाल्र्स का डिफरेन्स इंजन भी कहा जाता है।

बैबेज का एनालिटिकल इंजन

डिफरेन्स इंजन की सफलता के पश्चात चाल्र्स बैबेज ने एक ऐसे यंत्र की रूपरेखा तैयार की, जो आधुनिक युग में प्रयुक्त हो रहे कम्प्यूटरों से काफी समानता रखती थी। इस यंत्र को एनालिटिकल इंजन भी कहा जाता है। इस यंत्र के मुख्यत: पांच भाग थे-
1- इनपुट इकाई
2- स्टोर
3- मिल
4- कन्ट्रोल
5- आउटपुट इकाई

कम्प्यूटरों की विशेषताएं
1.    गति (speed): कम्प्यूटर के द्वारा हम लाखों गणनायें कुछ ही सेकेंड में (१०-९ ह्यद्गष्) में कर सकते हैं।

2.    स्वचालित (automatic): कम्प्यूटर एक स्वचालित मशीन है। इसमें एक बार डाटा इनपुट करने के पश्चात सभी तार्किक क्रियायें स्वत: ही करके यूजर को आउटपुट प्रदान कर देता है।

3.    गोपनियता (secrecy): कम्प्यूटर में डाटा को गोपनीय रखने के लिए पासवर्ड का प्रयोग किया जाता है।

4.    स्थाई भण्डारण क्षमता (Permanent Storage capacity): कम्प्यूटर में उपस्थित डाटा की भण्डारण क्षमता स्थायी होती है।

5.    पुनरावृत्ति (Repetetion): कम्प्यूटर को एक ही बार निर्देश देकर एक ही तरह के कार्य कई बार तथा न्यूनतम समय में कराए जा सकते हैं।

6.    विविधता (versatility): कम्प्यूटर पर एक समय में एक से अधिक कार्य भी एक साथ सम्पन्न किए जा सकते हैं।

7.    त्रुटि रहित कार्य (accuracy): कम्प्यूटर द्वारा किया गया कार्य त्रुटि रहित होता है। कोई भी त्रुटि प्रोग्राम या डाटा में मानवीय त्रुटियों के कारण ही सम्भव हो सकती है।

कम्प्यूटरों के प्रकार (types of computer)
कम्प्यूटरों को उनकी रूप रेखा, काम-काज, उद्देश्यों तथा प्रयोजनों आदि के आधार पर विभिन्न वर्गों में विभाजित किया गया है जो निम्नवत् हैं-
आकार के आधार पर
आकार के आधार पर कम्प्यूटर पांच प्रकार के होते हैं-
1. माइक्रो कम्प्यूटर
2. मिनी कम्प्यूटर
3. मेनफ्रेम कम्प्यूटर
4. पर्सनल कम्प्यूटर
5. सुपर कम्प्यूटर

उद्देश्य के आधार पर
उद्देश्य के आधार पर कम्प्यूटर दो प्रकार के होते हैं-
1. सामान्य-उद्देशीय कम्प्यूटर
2. विशिष्टï-उद्देशीय कम्प्यूटर

अनुप्रयोग के आधार पर
अनुप्रयोग के आधार पर कम्प्यूटर तीन प्रकार के होते हैं-
1. एनलॉग कम्प्यूटर
2. डिजिटल कम्प्यूटर
3. हाइब्रिड कम्प्यूटर

कम्प्यूटरों की पीढिय़ां (generations of computer)

आधुनिक कम्प्यूटरों के विकास के इतिहास को तकनीकी विकास के अनुसार कई भागों में बांटा गया है, जिन्हें कम्प्यूटर की पीढिय़ां कहा जाता है। अभी तक आधुनिक कम्प्यूटर की पांच पीढिय़ां अस्तित्व में आ चुकी हैं।

पहली पीढ़ी के कम्प्यूटर (First generationComputers)
इस पीढ़ी का समय सन् 1946 से 1955 तक माना जाता है। इस तरह के कम्प्यूटरों में वैक्यूम ट्यूब का प्रयोग किया जाता था। इस पीढ़ी के कम्प्यूटर आकार में बहुत बड़े होते थे और इतनी गर्मी पैदा करते थे कि एयर कंडीशन का प्रयोग करना पड़ता था। ये गति में बहुत धीमे होते थे और इनका मूल्य तुलनात्मक दृष्टिï से बहुत अधिक होता था।

दूसरी पीढ़ी के कम्प्यूटर (Second generation computer)
दूसरी पीढ़ी के कम्प्यूटरों में वैक्यूम ट्यूबों का प्रयोग खतम हो गया और ट्रांजिस्टरों का उपयोग होने लगा। इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों का समय 1955 से 1965 तक माना जाता है। इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों की गति में तेज, आकार में छोटे और अधिक विश्वसनीय होते थे। इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों में आईबीएम-1401 प्रमुख हैं।

तीसरी पीढ़ी के कम्प्यूटर (third Generation computer)
इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों का समय 1965 से 1975 का माना जाता है। इसमें एकीकृत परिपथों या चिपों का प्रयोग किया जाता था। जो आकार में छोटे होते थे और एक चिप पर सैकड़ों ट्रांजिस्टरों को एकीकृत किया जा सकता था। इनके कार्य करने की गति इतनी तेज थी कि ये एक सेकेण्ड के समय में लाखों बार जोडऩे की क्रियाएं कर सकते थे। इसके कारण ही एक प्रोग्राम पर एक साथ अनेक प्रोग्राम चलाना तथा एक प्रोग्राम को कई प्रोसेसरों पर एक साथ चलाना भी सम्भव हो गया। इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों में आईबीएम-360, आईबीएम-370, आईसीएल-1900 तथा 2900 प्रमुख हैं।

चौथी पीढ़ी के कम्प्यूटर (Fourth generation computer)
चौथी पीढ़ी के कम्प्यूटरों का समय सन् 1975 से 1990 तक माना जाता है। इनमें केवल एक सिलिकॉन चिप पर कम्प्यूटर के सभी एकीकृत परिपथों को लगाया जाता है। जिसे माइक्रो प्रोसेसर कहा जाता है। आकार में छोटे, कम बिजली खपत वाले यह कम्प्यूटर सामान्य तापक्रम में कार्य करने में सक्षम हैं।

पांचवीं पीढ़ी के कम्प्यूटर (Fifth generation computer)
सन् 1990 के बाद के समय में ऐसे कम्प्यूटरों के निर्माण का प्रयास चल रहा है, जिनमें कम्प्यूटरिंग की उच्च क्षमताओं के साथ तर्क करने की क्षमता, निर्णय लेने व सोचने की क्षमता भी हो। वैज्ञानिकों के अनुसार कहीं हद तक मानव मस्तिष्क जैसे इन कम्प्यूटरों का पूरा जोर ज्ञान प्रोसेसिंग पर होता है। हालांकि अभी तक ऐसे कम्प्यूटर बनाने में सफलता नहीं मिली है, परन्तु कुछ कम्प्यूटर अस्तित्व में आएं हैं जिन्हें सुपर कम्प्यूटर कहा जा सकता है।

Jagran Josh
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Education Desk

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