मेक इन इंडिया, स्टार्टअप, एंटरप्रेन्योरशिप और बढ़ती कॉरपोरेट गतिविधियों ने लीगल प्रोफेशन में संभावनाएं और ज्यादा बढ़ा दी हैं। यही कारण है कि लीगल सेक्टर में स्टूडेंट्स की दिलचस्पी को देखते लॉ यूनिवर्सिटीज/कॉलेजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इस फील्ड से जुड़ने वाले युवा अब लीगल फम्र्स और कॉरपोरेट कंपनियों से जुड़ने के अलावा साइबर लॉ, जीएसटी कानून जैसे नये-नये क्षेत्रों में रुचि लेकर अपनी अलग पहचान बनाना चाहते हैं...
हाल के वर्षों में न्यायपालिका की सक्रियता के उदाहरण लगातार देखने को मिल रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के साथ-साथ हाईकोर्ट और यहां तक कि सेशन और स्पेशल कोर्ट भी जन-सरोकारों, प्रदूषण, स्वच्छता और पर्यावरण को लेकर अपने फैसलों के कारण लगातार चर्चा में हैं। इसके चलते केंद्र और राज्य सरकारों को कोई भी फैसला लेने से पहले सोचना पड़ता है। न्यायपालिका की इस सक्रियता के कारण ही लोगों का भरोसा उस पर बढ़ा है और उनमें यह उम्मीद जागी है कि अगर शासन-प्रशासन उनकी नहीं सुनता, तो कोर्ट जरूर उनके साथ न्याय करेगा।
कोर्ट से कॉरपोरेट तक
लीगल प्रोफेशन में रुचि रखने वाले युवाओं के लिए लीगल फील्ड में सरकारी और निजी क्षेत्र में सम्मानजनक तरीके से काम करने और कामयाबी की ऊंचाई तक पहुंचने के अवसर लगातार बढ़ रहे हैं। इसके लिए लॉ में डिग्री हासिल कर और बार काउंसिल में पंजीकरण कराके अपने सफर की शुरुआत की जा सकती है। सरकारी और निजी दोनों ही क्षेत्रों में आगे बढ़ने के कई रास्ते हैं। न्यायपालिका में सेशन कोर्ट के जज से शुरुआत करके बढ़ते अनुभव के साथ विशेष न्यायालयों और हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट तक का न्यायाधीश बनने की राह पर बढ़ा जा सकता है। इसके अलावा, एटॉर्नी और लोक अभियोजक यानी सरकारी वकील तक बनने का विकल्प होता है। निजी क्षेत्र में लीगल एडवाइजर, कॉरपोरेट लॉयर के अलावा लीगल फम्र्स में भी काम करने का अवसर होता है। साइबर लॉ, पेटेंट लॉ, इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स, कंपनी लॉ आदि में स्पेशलाइजेशन करके इन उभरते क्षेत्रों में पहचान बनाई जा सकती है।
सरकारी और निजी वकील
सेशन कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक दीवानी, फौजदारी, रेवेन्यू या अन्य मामलों से जुड़े मुकदमों की पैरवी के लिए विवाद से जुड़े दोनों पक्षों के वकील होते हैं। पुलिस या अन्य जांच एजेंसियों द्वारा चलाये जाने वाले मुकदमों की पैरवी के लिए लोक अभियोजक यानी सरकारी वकील होते हैं। जिला स्तर पर अभियोजन अधिकारियों का एक पूरा विभाग ही होता है, जिसका नेतृत्व एसपीओ यानी सीनियर प्रॉसिक्यूटिंग ऑफिसर करते हैं। बचाव पक्ष की तरफ से निजी वकील कोर्ट में मुकदमे की पैरवी करते हैं। आपसी विवादों में दोनों पक्षों की तरफ से कोर्ट में प्राइवेट वकील ही किसी केस की पैरवी करते हैं। बार काउंसिल में रजिस्टर्ड होने के बाद ही एडवोकेट के रूप में प्रैक्टिस की जा सकती है। विधि क्षेत्र के जाने-माने विशेषज्ञों और अनुभवी वकीलों को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश पद भी ऑफर किया जाता है।
न्यायाधीश के रूप में
अगर आप लॉ ग्रेजुएट हैं और एक न्यायाधीश के रूप में शुरुआत करना चाहते हैं, तो आपको राज्य लोक सेवा आयोगों द्वारा आयोजित की जाने प्रॉविंशियल सिविल सर्विसेज-जुडिशियरी (पीसीएस-जे) परीक्षा पास करनी होगी। इसे क्वालिफाई करने के बाद सत्र या जिला न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति होती है। बेहतर काम और अनुभव के आधार पर कुछ वर्षों के बाद हाईकोर्ट के जज के रूप में चयन हो सकता है। इसी तरह विभिन्न राज्यों के हाईकोर्ट में कार्यरत जज वरिष्ठता के आधार सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त हो सकते हैं। इसके अलावा, एनजीटी या जांच आयोगों का अध्यक्ष या विशेष न्यायालयों (जैसे टाडा या सीबीआई कोर्ट) के जज भी बनाये जा सकते हैं। जिला, राज्य और राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम में भी न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती है। अवकाशप्राप्त जज को राज्यों में लोकायुक्त पद पर भी नियुक्त किया जाता है। जज के रूप में कानूनी विशेषज्ञता के साथ संविधान पर भी मजबूत पकड़ की अपेक्षा की जाती है।
12वीं के बाद भी कोर्स का मौका
|
एटॉर्नी जनरल
लंबा अनुभव रखने वाले विधि विशेषज्ञों को सरकार महान्यायवादी (एटॉर्नी जनरल) या डिप्टी एटॉर्नी नियुक्त करती हैं। इनका काम सुप्रीम कोर्ट या समकक्ष न्यायालयों में आश्यकतानुसार सरकार का पक्ष रखना और सरकारी मामलों की पैरवी करना होता है। राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर आगे बढ़ते समय उनके कानूनी पहलुओं पर सरकारें इनसे विचार-विमर्श करती हैं।
कॉरपोरेट सेक्टर में बढ़ती मांग
हाल के वर्षों में देश की कॉरपोरेट कंपनियों के विस्तार के साथ-साथ मल्टीनेशनल कंपनियां भी भारत में तेजी से अपने पांव पसार रही हैं। इसके अलावा, स्टार्ट-अप्स के रूप में भी तमाम नई कंपनियां सामने आ रही हैं। इन सभी को भी लीगल कंसल्टेंट्स/एक्सपट्र्स की जरूरत होती है। ऐसे में बड़ी कंपनियां बाहर से वकील या विशेषज्ञ हायर करने की बजाय खुद की लीगल विंग ही बना लेती हैं, जिसमें अलग-अलग मामलों के विधि विशेषज्ञ शामिल होते हैं। ये विशेषज्ञ लीगल डाक्यूमेंटेशन से लेकर सरकारी विभागों और न्यायालयों तक में कंपनी के हितों की देख-भाल करते हैं। कंपनियों के विलय या बंद होने में भी लीगल एक्सपट्र्स की जरूरत होती है। कॉरपोरेट कंपनियों में इन विशेषज्ञों को आकर्षक सैलरी और इंसेंटिव दिया जाता है।
अध्यापन के क्षेत्र में अवसर एलएलबी के बाद एलएलएम (यानी मास्टर कोर्स करके) और नेट क्वालिफाई करने के पश्चात विधि क्षेत्र में अध्यापन की भी अच्छी संभावनाएं हैं। विधि अध्यापक के रूप में आपको भविष्य के वकीलों को पढ़ाने और उन्हें कोर्ट से कॉरपोरेट तक के न्यायिक प्रोफेशन के लिए तैयार करने का भी अवसर मिलता है। लॉ में पीएचडी करके अपनी योग्यता और बढ़ाई जा सकती है। |
लीगल फम्र्स
कानूनी मामलों की लगातार बढ़ती संख्या को देखते हुए हाल के वर्षों में दुनियाभर में तमाम लीगल फम्र्स सामने आ गई हैं। भारत के दिल्ली, मुंबई और अन्य बड़े शहरों में भी इस तरह की लीगल कंसल्टेंसी देनी वाली कंपनियां खुली हैं। ये अपने क्लाइंट्स को विधिक सलाह देने के साथ-साथ उनके मुकदमों को भी स्थानीय या अपर कोर्ट में नियमित रूप से देखती हैं। इसके लिए इन फर्मों में लीगल एक्सपट्र्स रखे जाते हैं।
साइबर एक्सपर्ट
हाल के वर्षों में ऑनलाइन गतिविधियां और बैंकिंग लेन-देन तेजी से बढ़ा है, पर इसके साथ साइबर क्राइम यानी ऑनलाइन धोखाधड़ी भी तेजी से बढ़ी है। ऐसे में साइबर लॉ के जानकारों की मांग भी तेजी से बढ़ रही है। इसमें विशेषज्ञता के लिए लॉ ग्रेजुएट साइबर लॉ का शॉर्टटर्म कोर्स कर सकते हैं।
Comments
All Comments (0)
Join the conversation