हाल के एक कार्यक्रम में कौशल विकास और उद्यमिता मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने जर्मनी की प्रगति का उदाहरण देते हुए ‘पढ़ाई के साथ कमाई’ को जोड़ते हुए दोहरी शिक्षा प्रणाली को नए भारत की जरूरत बताया। बेशक इस दिशा में सरकार ने कई सारे कदम उठाए हैं, पर क्या देश की युवा-शक्ति को स्किल्ड बनाने के लिए इतना ही काफी है? क्या इस बात की समुचित निगरानी जरूरी नहीं कि सरकार की महत्वाकांक्षी पहल का कितना फायदा देश के युवाओं को मिल रहा है? युवाओं को पढ़ाई के साथ-साथ रोजगार हेतु तैयार करने के ईमानदार प्रयास कितने जरूरी हैं, आजादी-पर्व के मौके पर बता रहे हैं अरुण श्रीवास्तव... |
देवरिया में रहने वाले आयुष्मान का पढ़ाई में बहुत मन नहीं लगता, लेकिन तरह-तरह की डिश बनाने में बड़ा मजा आता है। पिछले दो साल से वह बारहवीं पास करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन कुछ अंकों से रह जा रहे हैं। वह बारहवीं के बाद नेशनल काउंसिल फॉर होटल मैनेजमेंट ऐंड कैटरिंग द्वारा आयोजित की जाने वाले जेईई को क्वालिफाई करके होटल मैनेजमेंट में ही ग्रेजुएशन करना चाहते हैं, पर बारहवीं के बिना वह ऐसा नहीं कर पा रहे। विकल्प के तौर पर अब वह ओपन स्कूल से बारहवीं करने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि वह चाहें तो प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना और नेशनल स्किल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के जरिए बारहवीं किए बिना भी होटल मैनेजमेंट से जुड़ा कोर्स कर सकते हैं और वह भी अपने आसपास ही, पर उन्हें इस बारे में कुछ पता ही नहीं है। ऐसा सिर्फ आयुष्मान के साथ ही नहीं है। देश के अधिकतर युवाओं के साथ भी ऐसा ही है। दरअसल, सरकार ने तो कई अच्छी योजनाएं चलाई हैं, पर समुचित प्रचार-प्रसार के बिना जरूरतमंद लोगों तक उनकी पर्याप्त पहुंच नहीं हो पा रही है। इसका एक बड़ा कारण संबंधित सरकारी संस्थाओं के कथित अधिकारियों-कर्मचारियों का उन दलाल किस्म के गैर-सरकारी या निजी संस्थानों के साथ भ्रष्ट गठजोड़ भी है, जो आपस में मिलकर सरकार के पास स्किल्ड यूथ का आंकड़ा बढ़ा-चढ़ाकर तो भेज देते हैं और फजीहत के कारण बनते हैं। इनकी वजह से भी उक्त महत्वाकांक्षी योजनाओं का लाभ युवाओं को उतना नहीं मिल पा रहा है, जितना मिलना चाहिए।
संदिग्धों को बंदरबांट
कौशल विकास के नाम पर नेता-अधिकारी-कथित संस्थानों के गठजोड़ का ताजा उदाहरण यूपी में देखा गया, जहां देवरिया की चर्चित और कथित विवादित संस्था मां विंध्यवासिनी महिला एवं बालिका संरक्षण संस्थान का चयन सूडा (राज्य नगरीय विकास अभिकरण) द्वारा राज्य शहरी आजीविका मिशन के तहत गोरखपुर में कौशल प्रशिक्षण के लिए कर लिया गया था। देवरिया का नारी संरक्षण कांड सामने आने के बाद सूडा के अधिकारियों ने आनन-फानन में इस संस्था का चयन निरस्त करते हुए इसे काली सूची में डाला। सवाल यह है कि आखिर कौशल प्रशिक्षण के लिए इस संदिग्ध संस्थान का चयन किया ही क्यों गया? क्या इसके पीछे आपसी मिलीभगत और भ्रष्टाचार की बू नहीं आ रही? और क्या गारंटी है कि समूचे राज्य या देश में इस तरह के अन्य संदिग्ध संस्थानों का चयन कौशल प्रशिक्षण के लिए नहीं किया गया होगा? जाहिर है कि अभी ऐसे तमाम संस्थान होंगे, जो सिर्फ अधिकारियों-कर्मचारियों की मिलीभगत से सरकारी पैसे को तो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा ही रहे हैं, देश के उन युवाओं के भविष्य से भी खिलवाड़ कर रहे हैं, जिन्हें वाकई में कौशल प्रशिक्षण मिलना चाहिए।
सोच-प्रयास हों ईमानदार अपने देश की युवा ताकत को हम दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति में तभी तब्दील कर सकते हैं, जब पहले उन्हें आत्मनिर्भर होने और आर्थिक रूप से मजबूत बनाने में मदद करें। सरकार जहां अपनी नीतियों से लोगों को सपने दिखा रही है, वहीं ज्यादातर शिक्षा संस्थान भी सब्जबाग दिखाकर उनका दोहन कर रहे हैं और युवाओं को जब उपयुक्त रोजगार नहीं मिल पाता, तो वे खुद को ठगा गया महसूस करते हैं। इस स्थिति को बदलने के लिए सोच और प्रयासों में हर किसी को ईमानदार होने की जरूरत है। अगर सरकार अपनी योजनाओं को लेकर प्रतिबद्ध है, तो उसे सिर्फ आंकड़ों की बाजीगरी दिखाने की बजाय नीतियों-योजनाओं को जमीनी हकीकत में बदलने का प्रयास करना होगा। अगर इस राह में कोई भी रोड़ा बनने का प्रयास करता है, तो उससे दृढ़ता के साथ निपटने की इच्छाशक्ति दिखानी होगी। |
साफ करें दामन
अच्छी नीयत और सोच वाली वर्तमान केंद्र सरकार पर रोजगार को लेकर विपक्ष और आलोचकों द्वारा लगातार सवाल उठाये जा रहे हैं। सरकार के इस पांचवें और अंतिम वर्ष में इस तरह के हमले और बढ़ गए हैं। सही और सटीक आंकड़े उपलब्ध न होने की स्थिति में सरकार की तरफ से जब-तब बदहवासी में उल्टे सीधे जवाब दिए जा रहे हैं। कभी पकौड़े बेचने वाले को रोजगारशुदा बताया जाता है, तो कभी ईपीएफ के बढ़ते आंकड़ों को रोजगार बढ़ने का नतीजा बताया जाता है। लेकिन इस तरह के जवाब से कतई संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता। अगर सरकार और उसमें बैठे ईमानदार नेता वाकई देश के युवाओं का भला करना चाहते हैं और देश को मजबूती देना चाहते हैं, तो आत्ममुग्धता वाले बयान देने और उस पर गर्व करने की बजाय जमीनी हकीकत को समझते हुए अपनी नीतियों-प्रयासों के कार्यान्वयन की समुचित कड़ी निगरानी पर ध्यान देना चाहिए। नौकरशाहों की जवाबदेही तय करते हुए कौशल प्रशिक्षण योजनाओं की सच्चाई जानने का प्रयास करना चाहिए।
करें, तभी इतराएं
अभी कल ही विश्व युवा दिवस के मौके पर संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के हवाले से देशभर में जोर-शोर से कहा-बताया गया कि हमारी आधी आबादी 25 साल से कम और दो-तिहाई आबादी 35 साल से कम उम्र की है। यह सच है कि हम आज दुनिया के सबसे युवा देश हैं। हम इस पर इतरा तो सकते हैं, लेकिन क्या हम अपने इन युवाओं की उतनी परवाह भी कर पा रहे हैं? बेशक हमारे देश में उच्च शिक्षा संस्थानों की संख्या पिछले एक-डेढ़ दशक में तेजी से बढ़ी है, पर क्या हम इनसे निकलने वाले युवाओं को रोजगार सक्षम बनाने में भी उतने ही सक्षम हुए हैं? शायद नहीं।
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