एजुकेशन सिस्टम में बदलाव की आस!

Jun 10, 2014, 16:44 IST

नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में बनी नई सरकार ने अपने एजेंडे के 10 सूत्र सामने रखकर देश और जनता के प्रति अपनी प्राथमिकताएं स्पष्ट कर दी हैं.

नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में बनी नई सरकार ने अपने एजेंडे के 10 सूत्र सामने रखकर देश और जनता के प्रति अपनी प्राथमिकताएं स्पष्ट कर दी हैं। इनमें शिक्षा को जिस तरह प्रमुखता दी गई है, उससे साफ है कि खुद मोदी देश की शिक्षा व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव चाहते हैं। एक लंबे अर्से से प्राइमरी से लेकर हायर एजुकेशन के करिकुलम में बदलाव की जरूरत महसूस की जाती रही है। यह सवाल भी उठाया जाता रहा है कि आखिर एक समय नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों के जरिए दुनिया भर के जिज्ञासु लोगों को लुभाने वाले देश में अब ऐसे संस्थान क्यों नहीं हैं? आज दुनिया के टॉप 100 शैक्षणिक संस्थानों में हमारे देश का कोई कॉलेज या विश्वविद्यालय क्यों नहीं स्थान पाता? जबकि देखा जाए, तो सिर्फ अमेरिका, ब्रिटेन के ही नहीं, विश्व के अपेक्षाकृत कई छोटे देश भी इस मामले में हमसे कहीं आगे हैं? हमारे देश में हर साल हजारों-लाखों ग्रेजुएट डिग्री लेकर निकलते हैं, लेकिन हमारी ही इंडस्ट्री उन्हें नाकाबिल बताकर नौकरी देने से इंकार कर देती है? क्यों? जाहिर है कि इन डिग्रीधारकों ने जो किताबी पढ़ाई की होती है, उसकी उन्हें जरूरत ही नहीं होती। कॉलेजों से निकलने वाले ऐसे ग्रेजुएट्स की फौज का इंडस्ट्री करे क्या, जिन्हें न तो मार्केट की रिक्वॉयरमेंट का पता होता है और न ही कोई प्रैक्टिकल नॉलेज ही होती है। जब इंडस्ट्री और उसके एक्सप‌र्ट्स लंबे समय से कहते आ रहे हैं कि हमें स्किल्ड लोग चाहिए, तो सरकार, शिक्षा प्राधिकरणों और संस्थानों ने इस तरफ ध्यान देने की जरूरत क्यों नहीं समझी?

उम्मीद की जानी चाहिए कि मोदी सरकार शिक्षा व्यवस्था में कुछ ऐसे कारगर बदलाव लाएगी, जिससे हमारे युवा कुशल और काबिल बनकर इंडस्ट्री की जरूरतें पूरी कर सकें। हालांकि इसके लिए नारों और बयानों से ऊपर उठकर ठोस कदम उठाने होंगे। एजुकेशन को शिक्षा माफियाओं और कारोबारियों के चंगुल से मुक्त कराकर आम लोगों के लिए सुलभ कराना होगा। पब्लिक की जगह सरकारी स्कूलों की कमियां दूर कर उन्हें बढ़ावा देना होगा, ताकि लोग उनमें अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए आगे आएं। हालांकि इसके लिए सिर्फ सरकार पर ही सब कुछ छोड़ देने के बजाय लोगों को भी सजग नागरिक बनना होगा। अध्यापकों को देश और जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझते हुए अपने क‌र्त्तव्यों का समुचित निर्वहन करना होगा, ताकि हमारे बच्चे देश के मजबूत स्तंभ बन सकें..

Jagran Josh
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Education Desk

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