इंसान का शुरू से ही रफ्तार के प्रति आकर्षण रहा है। रफ्तार यानि तरक्की, रफ्तार यानि ऊंचाई छूने का जरिया। आज से नहीं बल्कि सदियों से विकास के मापदंडों को रफ्तार के इसी संाचे के बरक्स देखा गया है। अब चाहे त्रेता के भगवान राम का पुष्पक विमान हो या आधुनिक सुपरसोनिक जेट या मैक 1.5-2 की गति वाली क्रू ज मिसाइल। सभी की टेक्निकल सुपरियोरिटी का आधार उनकी गति ही मानी जाती है। आज के जमाने की यह तेज रफ्तार खेल के मैदान में भी साफ दिखती है। क्रिकेट में टी-20 की तेजी हो या एथलेटिक्स में सेकेंड के हिस्सों में तय होती हार जीत। सभी जगह गति ही कामयाबी की कुंजी है। खेलों का यही रफ्तार भरा सफर भारत में अब नया मुकाम पाने को है। जी हां, हम बात कर रहे हैं देश में होने वाली पहली फार्मूला वन ग्रैंड प्रिक्स रेस की। जो भारत में लोगों को इस तरह कीकिसी रेस का पहला अनुभव देगी। दूसरी ओर माना जा रहा है कि युवाओं को कॅरियर के लैप में भी बढत दिलाने में यह रेस अहम भूमिका निभाएगी।
गजब की रफ्तार फार्मूला वन
गजब की रफ्तार से जमीन पर लगभग सटकर दौड रही एफ-1 कारों को अब तक हम टीवी पर ही देख कर चौंका करते थे। पर अब इन तेज रफ्तार मशीनों की पावर पैक परफॉमर्ेंस से पूरा देश चौंकेगा, वो भी आमने सामने। जी हां दुनिया भर की सैर के बाद फार्मूला वन रेसेज ने भारत को अपना नया ठिकाना बनाया है, जिसके चलते अब से हर साल इन कारों की रफ्तार हमारी, आपकी धडकनों की रफ्तार तय करेगी। ऐसा हो भी क्यों न, आज फार्मूला वन रेसिंग दुनिया में सबसे ज्यादा देखे, पंसद किए जाने वाले खेलों में से एक है। एक अनुमान के मुताबिक पूरी दुनिया में इसके करीब 60 करोड स्थाई दर्शक हैं। वहीं देश में 1993 में पहली बार लोगों ने विदेशी चैनलों के जरिए इसके दीदार किए।
सिल्वरस्टोन से हुई शुरुआत
भारत में इस खेल की शुरुआत अपेक्षाकृत काफी बाद में हुई, जबकि इसके उलट विदेशों में यह एडवंचेर स्पोर्ट्स 40-50 के दशक से ही लोकप्रिय होना शुरू हो गया था। इस दौरान 1958 में ब्रिटेन के सिल्वरस्टोन में इस चैम्पियनशिप की शुरुआत हुई। हालांकि, उससे पहले यह रेस यूरोपियन ग्रैंड प्रिक्स रेसिंग के नाम से हुआ करती थी, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध (1939-45) के बाद इसमें नए नियम (फॉर्मूला) जोडे गए व इसे फार्र्मूला वन रेसिंग के नाम से जाना जाने लगा। फे डरेशन इंटरनेशनल डि ऑटोमोबाइल (एफआइए) इसकी सर्वोच्च नियामक संस्था है, जो एक फार्मूला वन कैंलेडर में अमूमन 19 से 20 रेस आयोजित करती है। सत्र के आखिर में सर्वाधिक चैम्पियनशिप अंक बटोरने वाली टीम व उनके ड्राइवर को चैम्पियन घोषित किया जाता है।
क्यों बढी है अहमियत
सर्कि ट में साढे तीन सौ किमी/घंटा की रफ्तार से दौडती कार। हर कर्व्स पर एक दूसरे को पछाडने की होड। हर पिट में चंद सेके ड्स में गाडी को रिफ्यूल करने, टायर बदलने का जबर्दस्त पे्रशर। जी हां, यहां चीजें बहुत तेजी से घटित होती हैं। सेकेंड क े एक हिस्से का फर्क भी यहां आम और चैम्पियन रेसर में अंतर पैदा कर देता है। रफ्तार कीयही सौदागरी आज इस खेल की लोकप्रियता का सबसे बडा कारण है। लोकप्रियता की इसी बयार की बदौलत आज बडी संख्या में स्पॉन्सर्स, मोटर रेसिंग की ओर आ रहे हैं। यही नहीं सरकार की बढती रुचि , मोटी प्राइज मनी, ग्लैमर आदि इस खेल को और रौनकमंद बनाने के अन्य कारण हैं। इसके अलावा पिछले कुछ सालों में बेहतर टीवी कवरेज के चलते भी लोगों की समझ बढी है। यही कारण है कि आज पोल पोजीशन, लैप, पिट्स, डीआरएस, ओवरस्टीयर जैसे टेक्निकल शब्द तो लुइस हैमिल्टन, सेबिस्टियन वेट्टल, फर्नाडों अलांसों जैसे टॉप एफ-1 रेसर्स परिचय के मोहताज नहीं हैं।
रफ्तार में पनपता कॅरियर
आज इस खेल को बतौर कॅरियर अपनाने वाले युवाओं की संख्या बढी है, लेकिन यहां कामयाब होने के लिए केवल जुनूनी होना भर काफी नहीं है। इसके साथ अच्छा फाइनेंसियल बैकग्राउंड, बेहतर रेसिंग इंफ्र ास्ट्रक्चर भी उतना ही आवश्यक है। माना जा सकता है कि भारत के लिए यह खेल नया है, जरूरी सुविधाओं की भी अभी कमी है। इस मंहगे खेल के लिए स्पॉन्सर ढूंढना अभी भी थोडा मुश्किल है। बावजूद इन चीजों के बडे शहरों में ही सही युवा, मोटर रेसिंग के जरिए खुद के कॅरियर को नया ट्रैक दे रहे हैं। यहां बताना जरूरी होगा कि कार रेसिंग का मतलब केवल ड्राइवर बनना ही नहीं है। आज एफ-1 से लेकर एफ-3 तक हर टीम अपने सपोर्ट स्टाफ में अमूमन 100 से 200 दक्ष क्रू मेंबर्स को रखती है। यहां आप चाहें तो बतौर ऑटोमोबाइल एक्सपर्ट, विजुअल एनालिस्ट, रेस मार्शल, स्टार्टर मैन, जैक मैन, विंग सेंटर, फायर फाइटर, सिग्नल मैन बनकर भी अपना कॅरियर चमका सकते हैं।
कैसे करें शारुआत
इस फील्ड में आप बाकी कॅरियर ऑप्शन की तरह यूनिवर्सिटी या किसी इंस्टीट्यूट में दाखिला ले फिक्स्ड कॅ रियर की उम्मीद नहीं कर सकते। अक्सर लो सोचते हैं कि इसमें स्पीड ही सबसे महत्वपूर्ण है। सच्चाई यह है कि इसमें स्पीड ही सब कुछ नहीं है। यहां सालों की मेहनत व फिटनेस, ब्रेकिंग प्वाइंट, टर्निग प्वाइंट, हिटिंग द कर्व राइट, धर्य, गजब का स्टेमिना महत्वपूर्ण है। विशेषज्ञ मानते हैंकि वे सभी युवा जो इस क्षेत्र में प्रोफेशनली उतरना चाहते हैं, उनके लिए मोटररेसिंग के फील्ड में स्थानीय कार रैलियों के जरिए आगे बढना फायदेमंद होगा। ऐसे में गो-कार्टिग भी (एक प्रकार की छोटी, कम पावर वाली कार से होने वाली रेस) यहां आपके कॅरियर की पहली सीढी बन सकती है। लुइस हैमिल्टन, फर्नांडो अलंासों जैसे स्टार्स ने भी रेसिंग कॅरियर की शुरुआत यहीं से की थी।
जरूरी है सुपर लाइसेंस
जिस प्रकार आम टू व्हीलर, फोर व्हीलर को चलाने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस की जरूरत होती है, उसी प्रकार खास फार्मूला-1 कार चलाने के लिए आपको एफआइए द्वारा जारी सुपर लाइसेंस की दरकार होगी। दरअसल यह एक आधिकारिक प्रमाण है कि आप फार्मूला-वन कार चलाने योग्य हैं। इसे पाने के लिए ड्राइवर्स को एफआइए के निर्धारित मानकों को पूरा करना होता है। इसके अंर्तगत वे सभी कार रेसर जो दूसरे, तीसरे दर्जे की कार रेसों मसलन एफ-3, एफ-2, जीपी-2 (एफ-3000) में पिछले दो सालों में ोहरीन प्रदर्शन करते आए हैं, इस लाइसेंस के योग्य हैं।
फर्क डालता मनी फैक्टर
मोटर रेसिंग की गिनती उन खेलों में होती है, जिसके लिए अच्छे खासे धन की दरकार होती है। दरअसल बाकी खेलों की ही तरह यहां भी सफलता के लिए अपने टैलेंट में निखार की जरूरत होती है, उसके लिए जरूरी है हार्ड प्रैक्टिस और इस हार्ड प्रैक्टिस के लिए आपको दरकार होगी मोटे फायनेंसियल पैकेज की। आज देश में जितने भी रेसिग संस्थान हैं, प्रशिक्षण के एवज में मोटी फीस चार्ज करते हैं। उदाहरण के लिए यदि प्रोफशनल कार्रि्टग इंस्टीट्यूट को ही लें तो वे एक लैप (चक्कर) के करीब दो से ढाई सौ रुपये चार्ज करते है। कुछ संस्थान यहां पैकेज के हिसाब से भी ट्रेनिंग देते हैं, जहां आपको पांच से सात दिन के एडवांस प्रशिक्षण के लिए पचास से एक लाख रुपये तक खर्च करने पड सकते हैं। किंगफिशर, टाटा, जेपी जैसे कुछ ऐसे ही बडे प्रायोजक, आज मोटर रेसिंग फील्ड में युवाओं का आर्थिक संबल बन रहे हैं।
भविष्य का कॅरियर
तेजी से बढते मध्यम वर्ग, टेक्निकल क्वालीफि केशन, से लैस युवा आदि के चलते भारत पहले से ही मोटर रेसिंग का फेवरेट डेस्टिनेशन माना जा रहा था। और उससे भी बडी बात है भारत काविशाल बाजार। जिसे दरकिनार करना आज दुनिया के किसी कारपोरेट ग्रुप के बस की बात नहीं है। अब जब अक्टूबर के आखिरी दिनों में रेस तय हो चुका है तो उम्मीद की जा रही है कि बेशुमार रेवेन्यू के साथ कॅरियर व जॉब्स के लिहाज से भी यह रेस बदलावों का लैप खोलेगी। ग्रेटर नोएडा में होने जा रही इस पहली इंडियन ग्रैड प्रिक्स एफ-1 रेसिंग सर्किट निर्माण का जिम्मा सम्भाल रहे जेपीएसके के उपाध्यक्ष मार्क चूज इस बावत कहते हैं कि भारत में होने जा रही इस रेस को लेकर लोगों का उत्साह देखने लायक है। उस पर नारायण कार्तिकेयन, करूण चांडोक व फोर्स इंडिया, जैसे भारतीय ब्रांड्स की भागीदारी रेस में चार चांद लगाएगी। माना जा रहा हैकरीब 1.20 लाख लोग इस रेस को देखने बुद्धा स्पोर्ट्स सर्किट आएंगे। इस दौरान दिल्ली आने वाले विदेशियों की संख्या भी हजारों में होगी। ऐसे में भारत के पास दुनिया के सामने अपनी असीम क्षमताएं प्रदर्शित करने का मौका होगा। बुद्धा स्पोर्ट्स सर्किट के अलावा भारत के पास एमएमआरटी, चैन्नई, और केएमएस कांयंबटूर में भी रेसिंग ट्रैक हैं।
हाईस्ट पेड जॉब है मोटर रेसिंग
आज मोटर रेसिंग की गिनती दुनिया के हाईस्ट पेड खेलों में होती है। यहां अमूमन एफ-1 रेसर्स की प्राइज मनी, रेंसिंग टीम के साथ सालाना काँट्रेक्ट की राशि ही इतनी बडी हो जाती है कि दुनिया का बेहतर से बेहतर पेड खिलाडी भी उनसे ईष्र्या करे। हां, यदि इसमें खिलाडियों के व्यक्तिगत इंडोर्समेंट, स्पॉन्सरशिप आदि भी जोड दें तो उनकी कुल आय सोच से भी परे निकल जाती है, लेकिन इसके लिए रेसर का लगातार बेहतर प्रदर्शन करना भी आवश्यक है। अन्यथा कई बार टीमें उनक ी परफॉर्मेस को उनके कॉन्ट्रेक्ट रिन्यूवल का आधार बनाती है। एफ-1 रेसों में सबसे ज्यादा आय वाले टॉप 3 खिलाडियों को लें तो फेरारी के फर्नाडों अलांसो ं(30 मिलियन यूरो), मैक्लॉरेन के जस्टिन बटन (10मिलियन यूरो), मैक्लॉरेन के लुइस हैमिल्टन (10 मिलियन यूरो) शामिल हैं। एफ-1 ही क्यों, आज एफ-3, एफ-एशिया में भी बडी रकम प्राइज के तौर पर दी जाती है। फार्मूला वन का सफर बेशक शोहरत से भरा हो, लेकिन इन रास्तों पर खतरे भी कम नहीं है।
मनीषा नांरग : बंदी में है दम
कार रेसिंग को पुरु षोंका कार्यक्षेत्र माना जाता रहा है जहां कार कैब ड्राइवर से लेकर टीम के सीइओ तक पर पुरुष ही काबिज होते आए हैं। लेकिन इस बार एक भारतीय महिला ने यह वर्चस्व तोडा है। देहरादून की मनीषा नारंग बीएफडब्लू सौबर के एमडी के तौर पर इंडियन ग्रांड प्रिक्स में हिस्सा लेंगी। मनीषा भारत में होने वाली रेस में पहली बार अपनी टीम के बॉस के तौर पर शिरकत करेंगी। हांलाकि एफ-1 से मनीषा का जुडाव 1998 से ही हो चुका था, जब उन्होंने फ्रिज कै सर ग्रुप के साथ अपने एफ-1 कॅरियर की शुरुआत की (यह ग्रुप ही रेड बुल सौबर एफ-1 टीम के लीगल मामले देखता था।) 2000 में मनीषा, कंपनी की लीगल डिपार्टमेंट की हेड चुनी गईं।
क्रमबद्धता है कामयाबी की कुंजी
बेसिक्स कामयाबी का मूलमंत्र
शुरुआत यदि गो कार्टिग से हो, तो बेहतर है और नेशनल लेवल की चैम्पियनशिप में पार्टीसिपेट करना चाहिए। मुंबर्इं को गो कार्टिग का सबसे बडा हब माना जाता है, जिसमें चेंबूर, पवई, वर्ली में मान्यता प्राप्त गोकार्टिग सर्किट हैं, जहां आप एक निश्चित फीस देकर प्रशिक्षण ले सकते हैं।
फिसमी (एफएमएससीआई)
अगर आप रेसिंग में आना चाहते हैं, फेडरेशन ऑफ मोटर स्पोर्ट्स क्लब ऑफ इंडिया से अर्हता प्राप्त करनी होती है। इसके लिए आपको मारुति 800 इंजन वाली सिंगल सीटर रेस कार को ड्राइव करना होता है। अगला लेवल फॉर्मूला एलजीबी अथवा ह्यूंडई का होता है। फॉर्मूला रोलोन भारतीय मोटरस्पोर्ट का सबसे टॉप लेवल है जिसमें सिंगल सीटर कार में चेवी इंजन लगे होते हैं।
इंटरनेशनल लेवल
इसमें दक्षता प्राप्त करने के बाद आप इंटरनेशनल लेवल के फॉर्मूला या फॉर्मूला बीएमडब्ल्यू से शुरुआत करते हैं। इसके बाद फार्मूला इंडिया का नंबर आता है। देश में कुछ निजी संस्थान फार्मूला इंडिया रेसिंग में बाकायदा ट्रेनिंग देते हैं।
भारत में रेसिंग ट्रैक्स
मद्रास मोटर स्पोर्ट्स ट्रस्ट ट्रैक रेस का आयोजन करता है। आप चाहें तो यहां एक तयशुादा फीस अदा कर टेस्ट ड्राइव ले सकते हैं। फार्मूला एशिया, फार्मूला-3000, फार्मूला-3, जैसी रेसों की राह से आप फार्मूला वन की अपनी मंजिल तक पहुंच सकते हैं। देश में इससे संबंधित सभी क्लब फेडरेशन ऑफ मोटर स्पोर्ट्स क्लब ऑफ इंडिया के अधीन होते हैं।
जेआरसी टीम
रफ्तार में कॅरियर
इंसान का शुरू से ही रफ्तार के प्रति आकर्षण रहा है रफ्तार यानि तरक्की, रफ्तार यानि ऊंचाई छूने का जरिया
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