गुरू अर्जुन देव से जुड़े 10 रोचक तथ्य

Jun 15, 2019, 16:55 IST

गुरु अर्जुन देव सिखों के पांचवें गुरु हैं. वह सिख धर्म के पहले शहीद थे. हर साल 16 जून को, गुरु अर्जन देव की शहादत को याद किया जाता है. यह दिन उन्हें सम्मानित करने के लिए चिह्नित किया गया है और 1606 के बाद से स्मरण किया जाता है. आइये गुरु अर्जुन देव के बारे में कुछ रोचक तथ्यों के बारे मैं अध्ययन करते हैं.

Guru Arjan Dev interesting facts
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 मानवता के सच्चे सेवक, धर्म के रक्षक, शांत और गंभीर स्वभाव के स्वामी श्री गुरू अर्जुन देव जी अपने युग के सर्वमान्य लोकनायक थे. वह दिन-रात संगत की सेवा में लगे रहते थे. उनके मन में सभी धर्मों के प्रति अथाह सम्मान था. उनकी शहादत सिख धर्म के इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ था.

गुरू अर्जुन देव से जुड़े 10 रोचक तथ्य

1. अर्जुन देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1563 को गोइंदवाल साहिब में हुआ था. उनके पिता का नाम गुरू रामदास और माता का नाम बीवी भानी जी था. अर्जुन देव जी के नाना “गुरू अमरदास” और पिता “गुरू रामदास” क्रमशः सिखों के तीसरे और चौथे गुरू थे.

2. अर्जुन देव जी का पालन-पोषण गुरू अमरदास जी जैसे गुरू तथा बाबा बुड्ढा जी जैसे महापुरूषों की देख-रेख में हुआ था. उन्होंने गुरू अमरदास जी से गुरमुखी की शिक्षा हासिल की थी, जबकि गोइंदवाल साहिब जी की धर्मशाला से देवनागरी, पंडित बेणी से संस्कृत तथा अपने मामा मोहरी जी से गणित की शिक्षा प्राप्त की थी. इसके अलावा उन्होंने अपने मामा मोहन जी से “ध्यान लगाने” की विधि सीखी थी.

3. अर्जुन देव जी का विवाह 1579 ईस्वी में मात्र 16 वर्ष की आयु में जालंधर जिले के मौ साहिब गांव में कृष्णचंद की बेटी माता “गंगा जी” के साथ संपन्न हुई थी. उनके पुत्र का नाम हरगोविंद सिंह था, जो गुरू अर्जुन देव जी के बाद सिखों के छठे गुरू बने.

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4. 1581 ईस्वी में सिखों के चौथे गुरू रामदास ने अर्जुन देव जी को अपने स्थान पर सिखों का पांचवें गुरू के रूप में नियुक्त किया था.

5. अर्जुन देव जी ने 1588 ईस्वी में गुरू रामदास द्वारा निर्मित अमृतसर तालाब के मध्य में हरमंदिर साहिब नामक गुरूद्वारे की नींव रखवाई थी, जिसे वर्तमान में स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस गुरूद्वारे की नींव लाहौर के एक सूफी संत साईं मियां मीर जी से दिलाई गई थी. लगभग 400 साल पुराने इस गुरूद्वारे का नक्शा खुद गुरू अर्जुन देव जी ने तैयार किया था.
Golden Temple
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6. संपादन कला के गुणी गुरू अर्जुन देव जी ने श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी का संपादन भाई गुरदास की सहायता से किया था. उन्होंने रागों के आधार पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में संकलित वाणियों का जो वर्गीकरण किया है, उसकी मिसाल मध्यकालीन धार्मिक ग्रंथों में दुर्लभ है. श्री गुरू ग्रंथ साहिब में कुल 5894 शब्द हैं जिनमें से 2216 शब्द श्री गुरू अर्जुन देव जी के हैं, जबकि अन्य शब्द भक्त कबीर, बाबा फरीद, संत नामदेव, संत रविदास, भक्त धन्ना जी, भक्त पीपा जी, भक्त सैन जी, भक्त भीखन जी, भक्त परमांनद जी, संत रामानंद जी के हैं. इसके अलावा सत्ता, बलवंड, बाबा सुंदर जी तथा भाई मरदाना जी व अन्य 11 भाटों की बाणी भी गुरू ग्रंथ साहिब में दर्ज है.
 Picture Of Guru Granth Sahib Ji
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7. श्री गुरू ग्रंथ साहिब के संकलन का कार्य 1603 ईस्वी में शुरू हुआ और 1604 ईस्वी में संपन्न हुआ था. श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी का प्रथम प्रकाश पर्व श्री हरिमंदिर साहिब 1604 ईस्वी में आयोजित किया गया था, जिनके मुख्य ग्रंथी की जिम्मेदारी “बाबा बुड्ढा जी” को सौंपी गई थी.

8. गुरू ग्रंथ साहिब के संपादन को लेकर कुछ असामाजिक तत्वों ने अकबर बादशाह के पास यह शिकायत की थी कि इस ग्रंथ में इस्लाम के खिलाफ लिखा गया है, लेकिन बाद में जब अकबर को गुरूवाणी की महानता का पता चला, तो उसने भाई गुरदास एवं बाबा बुढ्ढा के माध्यम से 51 मोहरें भेंट कर खेद प्रकट किया था.  

9. जहाँगीर के आदेश पर 30 मई, 1606 ईस्वी को श्री गुरू अर्जुन देव जी को लाहौर में भीषण गर्मी के दौरान “यासा व सियासत” कानून के तहत लोहे के गर्म तवे पर बिठाकर शहीद कर दिया गया. “यासा व सियासत” के अनुसार किसी व्यक्ति का रक्त धरती पर गिराए बिना उसे यातनाएं देकर शहीद कर दिया जाता है. गुरू अर्जुन देव जी के शीश पर गर्म-गर्म रेत डालने पर जब गुरूजी का शरीर बुरी तरह से जल गया तो उन्हें ठंडे पानी वाले रावी नदी में नहाने के लिए भेजा गया, जहां गुरू अंगद देव का शरीर रावी में विलुप्त हो गया.
arjun dev ji ki mrityu
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10. गुरू अर्जुन देव जी सिख धर्म के पहले शहीद थे. जिस स्थान पर गुरू अर्जुन देव जी का शरीर रावी नदी में विलुप्त हुआ था, वहां गुरूद्वारा डेरा साहिब (जो अब पाकिस्तान में है) का निर्माण किया गया है. श्री गुरू अर्जुन देव जी को उनकी विनम्रता के लिए याद किया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में किसी को दुर्वचन नहीं कहा था.

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