2 जी स्पैक्ट्रम घोटाला
2 जी स्पैक्ट्रम घोटाले के खुलासे ने देश की राजनीति में भूचाल पैदा कर दिया है। इस घोटाले को लेकर सरकार व विपक्ष के बीच में गतिरोध जारी है। काफी लंबे समय से संसद का कामकाज ठप्प है। एकजुट विपक्ष इस घोटाले की सीबीआई जांच के लिए तैयार नहीं है। वह इसके लिए संयुक्त संसदीय समिति के गठन की मांग कर रहा है।
क्या है 2 जी स्पैक्ट्रम घोटाला?
कैग अर्थात काम्पट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल द्वारा पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार पूर्व संचार मंत्री ए राजा ने 2 जी स्पैक्ट्रम के आवंटन में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और वित्त मंत्रालय के सुझावों की पूरी तरह से अनदेखी की। रिपोर्ट के अनुसार लाइसेंस के आवंटन में दूरसंचार मंत्रालय ने अपने ही तय नियमों का उल्लंघन किया। आवंटित किए गए 122 लाइसेंस में 85 को कैग की रिपोर्ट में अयोग्य पाया गया।
इन सभी अनियमितताओं की वजह से दूरसंचार मंत्रालय को 1.76 लाख करोड़ का अनुमानित नुकसान हुआ। लाइसेंस के आवंटन में पहले आओ पहले पाओ नीति का पालन नहीं किया गया। कई कंपनियों को लाइसेंस फर्जी दस्तावेजों के आधार पर और बहुत कम दामों पर दिए गए। लाइसेंस लेने वाली कुछ कंपनियां ऐसी हैं जिन्हें लाइसेंस के आवंटन के कुछ दिन पहले ही बनाया गया था।
सुप्रीम कोर्ट की लताड़
स्पैक्ट्रम मामले में सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में कोर्ट ने प्रधानमंत्री कार्यलय से जवाब देने में हुई 11 महीने की देरी का कारण पूछा। उल्लेखनीय है कि जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमणियम स्वामी ने प्रधानमंत्री को चिठ्ठी लिखकर ए राजा के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कराने की अनुमति मांगी थी। वहां जवाब न मिलने पर स्वामी ने हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की थी। उसके खारिज हो जाने के बाद वे सुप्रीम कोर्ट गए।
23 नवंबर को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से तीखे सवाल पूछे। कोर्ट ने न केवल इसे सबसे बड़ा घोटाला बताया बल्कि कैग की रिपोर्ट में उठाए गये सवालों पर भी सरकार को घेरा।
ए राजा का इस्तीफा
भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे दूरसंचार मंत्री ए राजा ने लंबी हीलाहवाली के बाद अंतत: इस्तीफा दे दिया।
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