बाबा बन्दा सिंह बहादुर कौन थे?

बाबा बंदा सिंह बहादुर सिख सेनानायक थे और पहले ऐसे सिख हुए जिन्होंने मुग़लों को पराजित कर उनके अजेय होने के भ्रम को तोड़। 

Oct 20, 2020, 20:59 IST
बाबा बन्दा सिंह बहादुर
बाबा बन्दा सिंह बहादुर

बाबा बंदा सिंह बहादुर सिख सेनानायक और खालसा आर्मी के कमांडर थे। उन्हें बन्दा बहादुर, लक्ष्मन देव और माधो दास के नाम से भी जाना जाता है। वे पहले ऐसे सिख हुए, जिन्होंने मुग़लों को पराजित कर उनके अजेय होने के भ्रम को तोड़। 

बाबा बन्दा सिंह बहादुर: जीवन

बाबा बन्दा सिंह बहादुर का जन्म कश्मीर के राजौरी क्षेत्र में 27 अक्टूबर 1670 ई. को हिन्दु राजपूत परिवार में हुआ था। उनका वास्तविक नाम लक्ष्मणदेव था। वे कुश्ती, शिकार आदि में रूचि रखते थे। 15 वर्ष की आयु में उन्होंने एक गर्भवती हिरणी का शिकार किया जिसका उनके मन पर गहरा प्रभाव पड़ा और वह अपना घर-बार छोड़कर बैरागी बन गये। वह जानकी दास नाम के एक बैरागी के शिष्य हो गए और उनका नाम 'माधोदास बैरागी' पड़ा। उन्होंने रामदास बैरागी नाम के बाबा का भी शिष्यत्व ग्रहण किया और कुछ समय तक पंचवटी (नासिक) में रहे। वहाँ से योग की शिक्षा प्राप्त कर वह नान्देड क्षेत्र चले गए और गोदावरी के तट पर उन्होंने एक आश्रम की स्थापना की।

गुरु गोबिंद और बंदा सिंह

3 सितम्बर 1708 ई. को नान्देड में सिक्खों के दसवें गुरु गुरु गोबिन्द सिंह ने इसी आश्रम में उन्हें सिक्ख बनाकर उनका नाम बन्दा सिंह बहादुर रख दिया। गुरु गोबिन्द सिंह के आदेश पर ही बाबा बन्दा सिंह पंजाब गए और सिक्खों के सहयोग से मुग़ल अधिकारियों को पराजित करने में सफल हुए। मई 1710 ई. में उन्होंने सरहिंद को जीत लिया और सतलुज नदी के दक्षिण में सिक्ख राज्य की स्थापना की। उन्होंने ख़ालसा के नाम से शासन भी किया और गुरुओं के नाम के सिक्के भी चलवाये।

बाबा बन्दा सिंह बहादुर: मृत्यु

मरने से पहले बन्दा सिंह बहादुर ने ज़मींदारी प्रथा का अन्त कर दिया था और किसानों को जागीरदारों और ज़मींदारों की दासता से मुक्त करा दिया था। उनके शासन में मुसलमानों को राज्य में पूर्ण धार्मिक स्वातन्त्र्य थी। इतना ही नहीं उनकी सेना में पाँच हज़ार मुसलमान भी थे। बन्दा सिंह ने पूरे राज्य में यह घोषणा कर दी थी कि वह मुसलमानों को किसी भी प्रकार से हानि नहीं पहुँचाएंगे और उनकी सेना के मुसलमान भी नमाज़ पढ़ने  के लिए स्वतन्त्र होंगे।

बन्दा सिंह ने एक बड़े भाग पर फिर से कब्ज़ा कर लिया और इसे लाहौर और अमृतसर की सीमा तक विस्तृत किया। 1715 ई. के प्रारम्भ में बादशाह फ़र्रुख़सियर की शाही फ़ौज ने अब्दुल समद ख़ाँ के नेतृत्व में उन्हें गुरुदासपुर ज़िले के धारीवाल क्षेत्र के निकट गुरुदास नंगल गाँव में कई महीनों तक घेरे रखा था। खाद्य सामग्री के अभाव के कारण उन्होंने 7 दिसम्बर को आत्मसमर्पण कर दिया। फ़रवरी 1716 ई. को 794 सिक्खों के साथ वह दिल्ली लाये गए जहाँ 5 मार्च से 12 मार्च तक सात दिनों में 100 की संख्या में सिक्खों की बलि दी जाती रही । 16 जून को बादशाह फ़ार्रुख़शियार के आदेश से बन्दा सिंह और उनके मुख्य सैन्य-अधिकारियों के शरीर काटकर टुकड़े-टुकड़े कर दिये थे।

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Arfa Javaid
Arfa Javaid

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Arfa Javaid is an academic content writer with 2+ years of experience in in the writing and editing industry. She is a Blogger, Youtuber and a published writer at YourQuote, Nojoto, UC News, NewsDog, and writers on competitive test preparation topics at jagranjosh.com

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