प्लासी की लड़ाई (1757 ई.) और बक्सर की लड़ाई (1764 ई.) बंगाल और अवध पर ब्रिटिश नियंत्रण स्थापित करने में निर्णायक रही थीं। इन दोनों लड़ाइयों के बाद भारत में अंग्रेजों का प्रभुत्व और मजबूत हुआ और अंग्रेजी हुकूमत का विस्तार हुआ। इस लेख के माध्यम से हम भारत में अंग्रेजी हुकूमत के विस्तार के बारे में विस्तार से जानेंगे।
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बंगाल
अंग्रेजों द्वारा बंगाल में व्यापार के लिए शाही फरमान का दुरुपयोग: अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1717 ई. में मुगल सम्राट द्वारा एक शाही फरमान हासिल किया, जिसमें कंपनी को बिना कर चुकाए बंगाल से माल निर्यात और आयात करने की आजादी दी गई और दस्तक जारी करने का अधिकार दिया गया।
कंपनी के कर्मचारियों को भी व्यापार करने की अनुमति थी, लेकिन उन्हें भारतीय व्यापारियों के समान ही कर देना पड़ता था। यह फरमान कंपनी और नवाबों के बीच तनाव का एक प्रमुख कारण था, क्योंकि इससे बंगाल को कम राजस्व मिलता था। मुर्शीद कुली खान से लेकर अलीवर्दी खान तक बंगाल के सभी नवाब अंग्रेजों के इस फरमान के दुरुपयोग से नाराज थे।
इसके अलावा कंपनी के कर्मचारियों ने कंपनी के माल के लिए दस्तक जारी करने की शक्ति का दुरुपयोग किया, जिससे शाही खजाने को नुकसान हुआ।
सिराजुद्दौला का सिंहासन पर आसीन होना: 1756 ई. में अपने दादा अलीवर्दी खान के उत्तराधिकारी बने गर्म स्वभाव वाले सिराजुद्दौला ने कंपनी से मुर्शिद कुली खान के समय की तरह ही नियमों और विनियमों के अनुसार व्यापार करने के लिए कहा। अंग्रेजों ने इसका पालन करने से इंकार कर दिया और कलकत्ता में प्रवेश करने वाले भारतीय सामानों पर भारी शुल्क लगा दिया, जो उनके नियंत्रण में था।
इस कदम से नवाब बहुत नाराज हुए। कंपनी फ्रांसीसियों के साथ युद्ध की तैयारी के तहत कलकत्ता की किलेबंदी भी कर रही थी। नवाब ने उनकी किलेबंदी को ध्वस्त करने का आदेश दिया। अंग्रेजों ने नवाब के आदेश को मानने से इंकार कर दिया, जिससे नवाब और अंग्रेजों के बीच तनाव बढ़ गया। परिणामस्वरूप, सिराज उद-दौला ने कासिमबाजार पर आक्रमण किया और 1756 ई. में कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में फोर्ट विलियम पर कब्जा कर लिया।
प्लासी का युद्ध: अंग्रेजों ने एक षडयंत्र रचा, जिसके तहत उन्होंने मीर जाफर को बंगाल की गद्दी पर बिठाने की योजना बनाई। उन्होंने सबसे पहले मांगों का एक लगभग असंभव सेट प्रस्तुत किया, जिसे सिराज-उद-दौला ने मानने से इंकार कर दिया, जिससे पहले से ही तनावपूर्ण स्थिति और खराब हो गई।
जून 1757 ई. में प्लासी (वर्तमान मुर्शिदाबाद से 20 मील दूर) में युद्ध हुआ। मीर जाफर और राय दुर्लभ ने नवाब को धोखा दिया और अंग्रेजों का पक्ष लिया। नवाब सिराजुद्दौला को मीर जाफर के बेटे मीरान ने मौत के घाट उतार दिया। प्लासी के युद्ध में अंग्रेज विजयी हुए।
अपनी जीत के बाद अंग्रेजों ने मीर जाफर को बंगाल का नवाब घोषित किया और उन्हें बंगाल, बिहार और उड़ीसा (अब ओडिशा) में मुक्त व्यापार का अधिकार मिल गया। हालांकि, मीर जाफर कंपनी की मांगें पूरी नहीं कर सका। इसके बाद 1760 ई. में अंग्रेजों ने मीर जाफर के दामाद मीर कासिम को बंगाल का नवाब बना दिया। लेकिन, वह भी अंग्रेजों की अनुचित और नाजायज मांगों के सामने पूरी तरह नहीं झुके। 1763 ई. में कई लड़ाइयों के बाद अंग्रेजों ने मीर कासिम को हरा दिया।
इसके अलावा बंगाल में अपने शासन को वैध बनाने के लिए कंपनी ने 1765 ई. में बंगाल के नवाब निज़ाम उद-दौला के साथ एक संधि पर हस्ताक्षर किए और बंगाल की निज़ामत हासिल की और मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय से उन्हें बंगाल, बिहार और ओडिसा की दीवानी प्राप्त करने की अनुमति दे दी।
अवध
एक स्वतंत्र राज्य के रूप में अवध का उदय: जैसे-जैसे मुगल साम्राज्य का पतन हुआ, उसने अपना नियंत्रण खो दिया, जिससे अवध मजबूत और अधिक स्वतंत्र हो गया। अवध महत्वपूर्ण था, क्योंकि यह दोआब, गंगा और यमुना नदियों के बीच के उपजाऊ मैदान वाला क्षेत्र था।
इसके पास अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के बढ़ते प्रभाव के खतरों से अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए पर्याप्त धन था। अवध के नवाब निशापुर के फारसी शिया मुस्लिम राजवंश थे। 1722 ई. में सआदत खान बुरहानुल मुल्क को अवध का पहला नवाब नियुक्त किया गया, जिसने लखनऊ के पास फैजाबाद में अपना दरबार स्थापित किया। उनका उत्तराधिकारी सफदरजंग (1737 ई.-1754 ई.) था, जो दिल्ली में मुगल दरबार का एक प्रभावशाली सरदार था।
नवाब शुजा-उद-दौला के साथ ब्रिटिश शत्रुता: तीसरे नवाब शुजा-उद-दौला (1754 ई.-1775 ई.) ने बंगाल के अपदस्थ नवाब मीर कासिम के साथ गठबंधन बनाने के बाद अंग्रेजों से नाता तोड़ लिया। वह मीर कासिम और मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय के साथ, 22-23 अक्टूबर 1764 ई. को बक्सर की लड़ाई में अंग्रेजों द्वारा निर्णायक रूप से हार गए और उन्हें अपने क्षेत्र के कुछ हिस्सों को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा।
अपने परिग्रहण डिज़ाइन के हिस्से के रूप में अंग्रेजों ने 1773 ई. में एक रेजिडेंट नियुक्त किया, जिससे राज्य में अधिक क्षेत्र और अधिकार पर नियंत्रण प्राप्त हुआ। चौथे नवाब आसफ-उद-दौला (1775 ई.-1797 ई.) थे, जिन्होंने 1775 ई. में राजधानी फैजाबाद से लखनऊ स्थानांतरित कर दी।
नवाब सआदत अली खान द्वितीय और 1801 ई. की संधि: 1798 ई. में पांचवें नवाब वजीर अली खान (1797 ई.-1798 ई.) पर अंग्रेजों द्वारा अपने ही लोगों के प्रति विश्वासघाती और लापरवाह होने का आरोप लगाया गया था। इसके बाद उन्हें पद छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा और अंग्रेजों की मदद से उनके चाचा सआदत अली खान द्वितीय को सत्ता सौंपी गई।
1798 ई. में अपदस्थ वजीर अली द्वारा बनारस में एक ब्रिटिश रेजिडेंट की हत्या ने अंग्रेजों को अवध के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का और बहाना दे दिया। 1801 ई. की संधि के आधार पर लार्ड वेलेजली ने इसका यथासंभव दोहन किया। संधि के प्रावधानों के तहत सआदत अली खान द्वितीय मात्र एक कठपुतली राजा बनकर रह गया। उन्हें अपनी सेना को भंग करने के लिए मजबूर होना पड़ा और ब्रिटिश सेना का भारी खर्च वहन करने के लिए सहमत होना पड़ा।
अवध का ब्रिटिश भारत में विलय: अब अंतिम क्षण आ गया था और 7 फरवरी 1856 ई. को ब्रिटिश गवर्नर जनरल के आदेश से आंतरिक कुशासन के आधार पर डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स की शर्तों के तहत अवध को अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी में मिला लिया गया।
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