फ्रीडम ऑफ लिटरेचर बिल क्या है?

Jan 7, 2019, 18:22 IST

साहित्य की स्वतन्त्रता बिल (Freedom of Literature Bill) क्या है, शशि थरूर ने इसको लोक सभा में प्राइवेट बिल के तौर पर क्यों पेश किया है. आखिर प्राइवेट बिल क्या होता है, इसको कब पेश किया जाता है, कौन-कौन इसको संसद में प्रस्तुत कर सकता है, इत्यादि के बारे में भी इस आर्टिकल के माध्यम से अध्ययन करेंगे.

What is Freedom of Literature Bill?
What is Freedom of Literature Bill?

क्या आप जानते हैं कि साहित्य की स्वतन्त्रता बिल (Freedom of Literature Bill) क्या है, लोक सभा में इसको किसने और क्यों पेश किया है. आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं.

Freedom of Literature Bill को अध्ययन करने से पहले सरकारी विधेयक और गैर-सरकारी विधेयक यानी सरकारी बिल और प्राइवेट बिल में क्या मुख्य तौर पर अंतर होता है के बारे में पढ़ते हैं.

सरकारी बिल या गवर्नमेंट बिल को संसद में केवल एक मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है जबकि गैर-सरकारी या प्राइवेट बिल को संसद के किसी भी सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है. प्राइवेट बिल प्रस्तुत करने का उद्देश्य होता है सरकार की अटेंशन एक खास विषय पर लाना. एक और दोनों बिलों में  मुख्य अंतर होता है वो यह कि जब संसद सेशन में हो तब गवर्नमेंट बिल को संसद में लोक सभा या राज्य सभा जहां की भी सदस्यता हो वहां पर हफ्ते के किसी भी दिन पेश किया जा सकता है लेकिन प्राइवेट बिल को सिर्फ शुक्रवार को ही पेश किया जा सकता है बाकी के किसी भी दिन इसको पेश नहीं किया जा सकता है. यहीं आपको बता दें कि अब तक 14 प्राइवेट बिल पास हो चुके हैं इसमें से पांच राज्य सभा में पेश किए गए थे और बाकि लोक सभा में पेश किए गए थे.

आइये गैर-सरकारी या प्राइवेट बिल के बारे में विस्तारपूर्वक अध्ययन करते हैं.

गैर-सरकारी या प्राइवेट बिल एक ऐसे कानून के लिए प्रस्तावित किया जाता है जो किसी खास व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह या निगम के लिए लागू होता है. गैर-सरकारी बिल किसी व्यक्ति या संस्था को अन्य कानूनों से राहत दिला सकता है या विशेष लाभ एवं शक्तियां उपलब्ध करवा सकता है जो वर्तमान कानून में वर्णित नहीं हैं. इसके अलावा किसी व्यक्ति या संस्था को कथित तौर पर गलत तरीके से होने वाली कानूनी कारवाई से भी बचा सकता है. गैर-सरकारी बिल को सत्तारूढ़ पार्टी के मंत्री द्वारा नहीं बल्कि सदन के किसी अन्य सदस्य के द्वारा ही पेश किया जाता है. जैसे कि शशि थरूर जी ने लोक सभा में साहित्य की स्वतन्त्रता बिल (Freedom of Literature Bill) को पेश किया है.

 फ्रीडम ऑफ लिटरेचर बिल क्या है?
इस बिल को पेश करने का उद्देश्य है भारत सरकार उन सभी कानूनों को हटा दे जो देश में किसी विशेष प्रकार के साहित्य को अलग-अलग मापदंडों के अनुसार प्रतिबंधित करते हैं. यानी लेखकों, किताबें और उनके लेकन की स्वतंत्रता को बचाना.

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इस विधेयक या बिल में भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code), दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure), सीमा शुल्क अधिनियम (Customs Act) और the Indecent Representation of Women(Prohibition) अधिनियम में प्रावधानों को संशोधित करने का प्रयास किया गया है जो साहित्यिक और कलात्मक स्वतंत्रता को प्रभावित करते हैं. यह बिल साहित्यिक स्वतंत्रता को बढ़ाने के लिए पेश किया गया है. इस विधेयक में "पुराने प्रावधानों को हटाने की कोशिश की गई है जो लोकतंत्र की भावना के अनुरूप नहीं हैं, जैसे कि ईशनिंदा और अश्लीलता कानून”.

भारत में काफी बार किताबों को बैन किया गया है क्योंकि ये किसी न किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाती हैं. जसी कि The Satanic Verses by Salman Rushdie, The Hindus: An Alternative History by Wendy Doniger, Understanding Islam through Hadis by Ram Swarup, The Ramayana as told by Aubrey Menen, Lajja by Taslima Nasreen, The PolyesterPrinces: The Rise of Dhirubhai Ambani Hamish MacDonald इत्यादि किताबें.

इस पर पाठकों का कहना है कि किताब को बैन नहीं करना चाहिए, अगर किसी को किताब पसंद नहीं आ रही है या किताब से असहमत हैं तो उसको न पढ़े क्योंकि किताबों को बैन करने का अर्थ हुआ लेखकों के विचारों को बैन करना. जिसका अर्थ है फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन को रोकना और ये एक लोकतांत्रिक समाज की निशानी नहीं है.

The Freedom of Literature Bill 2018, को पेश करने के पीछे का कारण यह है कि यदि सरकार को कोई भी किताब को बैन करना हो तो उसके पीछे सरकार को उपयुक्त कारण देना होगा. आज के टाइम में सरकार के पास ऐसे कई प्रावधान है जिसके तहत वो कोई भी किताब को बैन कर सकती है और उसका कारण देना अनिवार्य नहीं है. इसलिए यह बिल पेश किया गया है कि किताब बैन की जा सकती है लेकिन उसका उपयुक्त कारण देना अनिवार्य होना चाहिए. इससे accountability आएगी.

इस बिल का फोकस कुछ धाराओं पर भी किया गया है: IPC की धारा 295 A के तहत अगर आप जान भूजकर किसी की भी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाते हो तो तीन साल की सजा होने का प्रावधान है. साथ ही धारा 298 जिसके अनुसार धार्मिक शख्सियतों के खिलाफ कुछ गलत नहीं कहा जा सकता है और यदि आप कहते हैं तो इस पर भी सजा होने का प्रावधान है. यह बिल इसमें संशोधन करने पर बल देता है.

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इसके अलावा इस बिल में कस्टम्स एक्ट के बारे में भी ज़िक्र किया गया है क्योंकि सरकार को जब किसी भी बुक को बैन करना होता है तो भारत में उसकी प्रिंटिंग और बिक्री को भी रोक दिया जाता है और साथ- साथ किताब का आयात भी नहीं किया जा सकता है. इसलिए कस्टम एक्ट में भी संशोधन का ज़िक्र बिल में किया गया है जिसके तहत सरकार किसी भी बुक को बैन करने से पहले पूर्ण रूप से कारणों को विस्तारपूर्वक बताए.

IPC की धारा 292 के अनुसार यदि आप अश्लील या वलगर किताब, लेखन, क्र्तियों को, पेंटिंग्स को बेचते हैं वो उनकी सेल भी बैन है. यह बिल इस पर भी संशोधन के बारे में जिक्र करता है. CrPC धारा 95 के तहत कोई भी राज्य सरकार किसी भी किताब को तब बैन कर सकती है जब उनको लगता है कि इस किताब से सांप्रदायिक दंगे हो सकते हैं, समुदायों के बीच में मुठभेड़ हो सकती है, blasphemy इत्यादि. बिल में इसके लिए भी ये कहा गया है कि किसी भी बुक को बैन करने से पहले कारणों का देना अनिवार्य है जैसे किस आधार पर बुक बैन की जा रही है, बुक को बैन करने से पहले विचार-विमर्श होना चाहिए, बुक कब तक बैन रहेगी ये भी बताना जरुरी है, जिसक बुक के हिस्से के कारण दिक्कत आ रही है उसको बदला जा सकता है इत्यादि. के बारे में भी चर्चा की गई है.

हलाकि ये हम सब जानते हैं कि भारतीय संसद के दोनों सदनों में विधायी प्रक्रिया समान है. दोनों सदनों में प्रत्येक विधेयक या बिल को पास करने की प्रक्रिया भी समान है. जब किसी विधेयक को संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया जाता है और उस पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर कर दिया जाता है तब वह विधेयक एक अधिनियम या कानून बनता है. अभी तो Freedom of Literature Bill केवल लोक सभा में शशी थरूर के द्वारा ही पेश किया गया है, इसको कानून बनने में काफी समय लगेगा, यह कानून बनता है भी या नहीं इसका भी कहना अभी संभव नहीं है.

तो अब आप जान गए होंगे कि सरकारी विधेयक को संसद में केवल एक मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है जबकि गैर-सरकारी विधेयक को संसद के किसी भी सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है और Freedom of Literature Bill 2018 एक प्राइवेट बिल है जिसमें बुक को क्यों बैन किया गया है के कारणों पर विचार किया गया है और इससे सम्बंधित कानूनों में संशोधन पर भी बल दिया गया है.

Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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