क्या आप जानते हैं कि पटाखों का आविष्कार कब और कैसे हुआ?

Nov 6, 2018, 15:00 IST

पटाखों को त्योहारों या विभिन्न समारोह में इस्तेमाल किया जाता है. दिवाली के त्यौहार में पटाखों की अहम भूमिका हैं. परन्तु क्या आप जानते हैं कि पटाखों को इस्तेमाल करना कब से और कहां से शुरू हुआ, किसने इनकी शुरुआत की थी और कैसे. भारत में पटाखे कब से इस्तेमाल किए जा रहे हैं. आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं.

History of fireworks
History of fireworks

पटाखे त्यौहार, समारोह इत्यादि का जैसे अभिन्न हिस्सा हैं. क्या आपने कभीं सोचा है कि पटाखों को कब से इस्तेमाल किया जा रहा है, सबसे पहले कहां इनका आविष्कार हुआ, किसने किया? आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं पटाखों के इतिहास के बारे में.

पटाखों का इतिहास

कई इतिहासकारों की पटाखों और गनपाउडर की खोज को लेकर अपनी ही अलग विचारधारा है और इनके अविष्कार की तारीख अभी तक एक रहस्य है. परन्तु इतिहास के कुछ पन्नों से पटाखों के इतिहास के बारे में ज्ञात किया गया  है. आइये अध्ययन करते हैं.

ऐसा माना जाता है कि हान राजवंश (Han Dynasty) (206 ईसा पूर्व-220 ईस्वी) के दौरान चीन में पटाखों का बनना शुरू हुआ ताकि लोग इसके जरिये बुरी आत्माओं को डरा सकें या भगा सकें. हान राजवंश के लोगों ने जोर से धमाके का उत्पादन करने के लिए बांस को आग में फेंक दिया. आग में बांस जलने लगा, धीरे-धीरे उसमें से आवाज़ हुई और अंत में एक विशाल विस्फोट के साथ फट गया. बांस में खोखले गड्ढे होते हैं जिनमें वायु होती है, जो गर्म होने पर एक बड़ी आवाज के साथ फूलती है और फट जाती है.

यह चीन के लोगों के लिए एक रोमांचक अनुभव था. उन लोगों को विश्वास था कि बुरी आत्माएं होती हैं और उन लोगों को लगा कि लकड़ी के विस्फोट से जो आवाज़ होती है वो बुरी आत्माओं को डराने के लिए काफी है. बुरी आत्माओं से छुटकारा पाना एक ख़ुशी का संकेत था. इसलिए बांस का फटना खुशी और उत्सव से जोड़ा जाने लगा. तब से, चीन के लोगों ने हर साल भूत और आत्माओं को रोकने के लिए 'बांस फटने' की इस अवधारणा को पारंपरिक बना दिया.

बाद में, बांस का फटना, नव वर्ष, शादियों, पार्टियों इत्यादि जैसे जश्न मनाने वाली घटनाओं का एक हिस्सा बन गया. जब तक 'गनपाउडर' की खोज नहीं हुई थी ये ही चलता रहा. बाद में गनपाउडर को विस्फोट करने के लिए खोखले बांस ट्यूबों में भर दिया जाता था, जिससे जोर से आवाज़ उत्पन्न होती थी.

एक चीनी किंवदंती के अनुसार, पटाखों का आविष्कार एक दुर्घटना के कारण चीन में हुआ. मसालेदार खाना बनाते समय एक चीनी रसोइए ने गलती से साल्टपीटर (पोटैशियम नाइट्रेट) को आग पर डाल दिया था. इससे जो लपेटें उठ रहीं थी वो रंगीन हो गई, जिससे लोगों में उत्सुकता बढ़ गई. फिर रसोइए के प्रधान ने साल्टपीटर के साथ कोयले व सल्फर का मिश्रण आग में डाल दिया, जिससे काफी तेज़ आवाज़ के साथ रंगीन लपटें उठी, बस, यहीं से पटाखों या आतिशबाजी की शुरुआत मानी जाती है.

How fireworks were invented
Source: www. yinjiangfireworks.com

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वैसे पटाखों का पहला प्रमाण वर्ष 1040 में मिलता है, जब चीनियों ने इन तीन चीज़ों के साथ कुछ और रसायन मिलाते हुए कागज़ में लपेट कर ‘फायर पिल’ बनाई थी.

आतिशबाजी को रंगीन कैसे बनाया गया?

हम आपको बता दें कि पटाखों के द्वारा की गई आतिशबाजी को रंगीन बनाने के लिए उसमें स्ट्रोंशियम तथा बोरियम नामक धातुओं के लवणों का इस्तेमाल किया जाता है, इन्हें पोटैशियम क्लोरेट के साथ मिलाते हैं. स्ट्रोंशियम नाइट्रेट लाल रंग पैदा करता है जबकि स्ट्रोंशियम कार्बोनेट पीला रंग. बेरियम के लवणों से हरा रंग तथा स्ट्रोंशियम सल्फेट से हल्का आसमानी रंग पैदा होता है. इस तरह आतिशबाज़ी के दौरान अनेक रंग पैदा हो जाते हैं जो उसे और खुबसूरत बनाते हैं.

आइये अब अध्ययन करते हैं कि अन्य देशों में पटाखे कब से इस्तेमाल किए गए?

भारत सहित अन्य पूर्वी देशों में भी पटाखे बनाने की कला आती थी. वर्ष 158 में यूरोप में पटाखों का चलन शुरू हुआ था. इटली ने यहां सबसे पहले पटाखों का उत्पादन किया था. युद्ध के मैदानों में जर्मनी के लोग बमों का इस्तेमाल करते थे.

इंग्लैंड में भी पटाखों का इस्तेमाल समारोह में किया जाता था. महाराजा चार्ल्स (पंचम) अपनी हरेक विजय का जश्न आतिशबाज़ी कर के मनाते थे. इस प्रकार से 14वीं शताब्दी के शुरुआत से ही लगभग सभी देशों ने बम बनाना शुरू कर दिया था.

16वीं शताब्दी से अमेरिका में इनकी शुरुआत मिलिट्री ने की थी. इस प्रतिक्रिया में पटाखें बनाने की कई कंपनियां खुली और सैकड़ों लोगों को रोजगार भी मिला. हाथ से फेके जाने वाले बम बाद में पश्चिमी देशों ने बनाए. बंदूके और तोप भी इसी कारण बनी थी.

क्या आप जानते हैं कि अमेरिका में 1892 में कोलंबस के आगमन पर ब्रकलिन ब्रिज पर जमकर आतिशबाजी की गई थी जिसे लाखों लोगों ने देखा था. परन्तु 19वीं शताब्दी के अंत में पटाखों से होने वाले खतरों को देखते हुए “सोसायटी फॉर सप्रेशन ऑफ अननेससरी नाइस” का गठन किया गया.
क्या आप जानते हैं कि सबसे लंबा पटाखा छोड़ने का प्रदर्शन 20 फरवरी, 1988 को यूनाईटेट ग्लाएशियन यूथ मूवमेंट द्वारा किया गया था.

भारत में पटाखों का इतिहास

History of fireworks in India
Source: www.indianexpress.com

पंजाब विश्वविद्यालय में इतिहास पढ़ाने वाले राजीव लोचन और मुगलकालीन इतिहास के प्रोफ़ेसर नजफ़ हैदर के अनुसार भारत में पटाखे मुघल के पहले ही आ चुके थे. जैसे कि:

- दारा शिकोह की शादी की पेंटिंग में लोगों को पटाखे चलाते हुए देखा गया है. फिरोजशाह के जमाने में भी आतिशबाजी खूब हुआ करती थी. यानी मुगलों से पहले ही भारत में पटाखे आ गए थे.

- दरअसल, मुगल शुरूआती काल में जानवरों को डराने खासकर बाघ, शहर और हाथियों को डराने और उनको काबू करने के लिए पटाखों का इस्तेमाल किया करते थे. बाद में ये शादी या जश्न में भी पटाखे या आतिशबाजी करते थे.

- कुछ इतिहासकार पटाखों का इतिहास ईसा पूर्व मानते हैं. कौटिल्य अर्थशास्त्र में भी एक ऐसे चूर्ण का विवरण है जो तेज़ी से जलता था. तेज़ लपटे पैदा करता था और अगर इसे एक नलिका में ठूस दिया जाए तो पटाखा बन जाता था. किताब के मुताबिक बारिश के मौसम में बंगाल में कई इलाकों में सूखती हुई जमीन पर लवण की एक परत भी बन जाती थी.

हम आपको बता दें की पटाखों के इतिहास में क्रांतिकारी बदलाव बारूद के आने से हुआ था. सन 1270 के बाद से बारूद ने पटाखों को एक नया स्वरुप दिया.

1526 में भारत में सबसे पहले काबुल के सुलतान बाबर ने भारत में हमले के दौरान किया था. ऐसा कहा जाता है कि बाबर की भारत पर विजय का कारण बारूद ही था और यहीं से मुगलों का इतिहास भारत में शुरू हुआ.

तो अब आप जान गए होंगे कि किस प्रकार दुनिया में पटाखों का अविष्कार हुआ और कैसे ये अन्य देश में इस्तेमाल किए जाने लगे.

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Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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