जानें ISRO भारतीय रेलवे को कैसे सुरक्षा प्रदान करेगा?

Apr 2, 2019, 12:23 IST

ISRO अपने इंडियन रीजनल नैविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (IRNSS) या नेविगेशन सिस्टम नाविक (NaVIC) का उपयोग कर रहा है, जिससे भारतीय रेलवे और इसरो के बीच संयुक्त सहयोग की सहायता से रेलवे मानव रहित फाटकों पर हो रहीं दुर्घटनाओं को रोका जा सकेगा. यह लेख भारतीय रेलवे सुरक्षा के लिए इसरो द्वारा उपयोग किए जाने वाले सैटेलाइट सिस्टम से संबंधित है, यह सिस्टम किस प्रकार से सुरक्षा प्रदान करेगा, IRNSS और NaVIC प्रणाली क्या है आदि.

How ISRO will make Indian Railways safe
How ISRO will make Indian Railways safe

इन वर्षों में,ISRO (भारतीय अंतरिक्ष और अनुसंधान संगठन) ने कई उपलब्धियों को हासिल किया है और भारत को अंतरिक्ष में अपनी एक नई पहचान भी दिलाई है. 1969 में अपनी स्थापना के बाद से, समय के साथ ये साबित हो गया कि वे पूरी तरह से 'राष्ट्रीय विकास के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का दोहन' करने के लिए तत्पर है. तकनीक के विकास के साथ भारत को शीर्ष अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच विश्व मानचित्र पर लाने के लिए इसरो कड़ी मेहनत कर रहा है. इसमें कोई संदेह नहीं हैं कि 2019 में ISRO द्वारा रिकॉर्ड-ब्रेकिंग उपलब्धियों का कारण किए गए प्रयास और हार्डवर्क ही तो है. जैसा कि हम जानते हैं कि भारत में मानव रहित रेल फाटकों पर कई हादसे होते हैं. इस हादसे के चलते कई जानें जाती है और लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.
भारतीय रेलवे इन हादसों की समस्याओं को कम करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी ISRO का सहयोग ले रहा है. इस सहयोग से दुर्घटनाओं की समस्या को वास्तविक समय के आधार पर ट्रैकिंग प्रणाली के द्वारा जांचने में मदद मिलेगी. इसके लिए, ISRO, इंडियन रीजनल नैविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (IRNSS) अथवा भारत का GPS नेविगेशन सिस्टम नाविक (NaVIC) का उपयोग कर रहा है.
इंडियन रीजनल नैविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (IRNSS) अथवा NaVIC क्या है?

What is IRNSS
Source:www.i.ytimg.com
- इंडियन रीजनल नैविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (IRNSS) अथवा नेविगेशन सिस्टम नाविक (NaVIC), भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा विकसित एक क्षेत्रीय नेवीगेशन प्रणाली है.
- इस नेविगेशन प्रणाली से भारत में 7 सैटेलाइट हो जाएंगी: तीन geostationary earth orbit (GEO)  में और चार geosynchronous orbit (GSO) में जो कि भूमध्य रेखा से 29 डिग्री पर झुकी होंगी. इससे नेविगेशन सिस्टम अच्छे से काम करेगा और किसी दूसरे देश पर निर्भरता समाप्त हो जाएगी.
- यह सिस्टम अमेरिका के GPS (24 सैटेलाइट), रूस के GLONASS (24 सैटेलाइट), यूरोप के Galileo (27 सैटेलाइट) आदि की भांति ही है. इसको भारत एवं उसके आसपास के 1500 कि.मी. तक के क्षेत्र में रीयल टाइम पोजिशनिंग बताने के लिए डिजाइन किया गया है.
- भारत का यह नेविगेशन सिस्टम मौसम और सभी स्थानों के बारे में जानकारी प्रदान करेगा. यह मानव रहित रेल फाटकों पर दुर्घटनाओं को रोकने में भारतीय रेलवे की सहायता भी करेगा.
IRNSS अथवा NaVIC दो प्रकार की सेवाएं प्रदान करेगा
- नागरिक उपयोग के लिए या सभी उपयोगकर्ताओं के लिए एक स्टैण्डर्ड पोजिशनिंग सर्विस (SPS) होगी. ये सर्विस सटीक स्थिति या पोजीशन के बारे में बताएगी.
- भारतीय सशस्त्र बलों के लिए एक प्रतिबंधित सेवा (Restricted Service RS) या हम कह सकते हैं कि केवल सैन्य और सुरक्षा एजेंसियों जैसे अधिकृत उपयोगकर्ताओं को सेवा प्रदान करेगी.

स्पेस स्टेशन क्या है और दुनिया में कितने स्पेस स्टेशन पृथ्वी की कक्षा में हैं?
IRNSS अथवा NaVIC का उपयोग कहाँ किया जाएगा?
- नौसेना के नेविगेशन
- गाडि़यों की ट्रैकिंग
- मोबाइल फोन के इंटिग्रेशन
- मैप और जियोग्राफिकल डेटा
- वॉयस नेविगेशन
- आपदा प्रबंधन
- सटीक समय और पोजीशन बताने के लिए

भारतीय रेलवे में IRNSS अथवा NaVIC प्रणाली कैसे कार्य करेंगी

How safety is provided to Indian railway
Source: www. firstpost.com
- ISRO ने उपग्रह आधारित चिप प्रणाली विकसित की है. इसकी मदद से अब सड़क मार्ग से सफर करने वाले लोगों को मानव रहित रेल फाटकों पर आगाह किया जाएगा की ट्रेन आ रही है.
- इसके लिए कुछ रेल इंजनों पर इंटिग्रेटेड सर्किट चिप (IC) लगाई जाएंगी.
- जब ट्रेन किसी मानव रहित फाटक के नजदीक पहुंचेगी तो हूटर सड़क मार्ग उपयोग करने वाले लोगों को आगाह करेगा.
- जब ट्रेन क्रासिंग से करीब 4 किलोमीटर से 500 मीटर दूर होगी तब IC चिप के माध्यम से हूटर सक्रिय हो जाएगा.
- इससे सड़क मार्ग का उपयोग कर रहे लोग और उनके साथ ही फाटक के नजदीक ट्रेन चालक भी सचेत हो जाएंगे. जैसे-जैसे ट्रेन रेल फाटक के नजदीक पहुंचेगी, हूटर की आवाज तेज होती जाएगी. ट्रेन के पार होते ही हूटर शांत हो जाएगा.
- इस सैटेलाइट आधारित प्रणाली के उपयोग से सड़क मार्ग को इस्तेमाल करने के साथ ट्रेन पर निगाह रखने और रियल-टाइम के आधार पर उसके आवागमन के बारे में बताने के लिए भी होगा.
- इसके अलावा, इसका प्रयोग गाड़ियों द्वारा कवर क्षेत्र को मैप करने के लिए भी किया जाएगा. अर्थार्त ट्रेन की स्थिति और आवाजाही का भी पता लगाया जा सकेगा.
IRNSS और GPS की तुलना में कौन अधिक सटीक होगा

Which is better IRNSS or GPS
Source: www.i2.wp.com
तुलना करने से पहले, एक सवाल मन में आता है कि GPS (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) में कुल 31 सैटेलाइट हैं, जबकि IRNSS (भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) में कुल 7 ही सैटेलाइट होंगी. तो, IRNSS, GPS से ज्यादा सटीक प्रणाली कैसे हो सकती है.
ISRO के अध्यक्ष ए.एस. किरण कुमार के अनुसार, GPS की 24 कार्यात्मक सैटेलाइट पूरे विश्व को कवर करती हैं, जबकि IRNSS की 7 सैटेलाइट केवल भारत और इसके पड़ोसी देशों को कवर करेंगे. हर समय ये 7 सैटेलाइट ग्राउंड  रिसीवर के लिए होंगी.
GPS में कुल 31 सैटेलाइट हैं, लेकिन केवल 24 सैटेलाइट सटीक स्थानों की स्थिति बताती हैं, बाकी सैटेलाइट अतिरित (spare) हैं. क्या आप जानते हैं कि दिन में दो बार GPS की सैटेलाइट धरती की परिकृमा करती हैं.
तुलनात्मक विवरण इस प्रकार है
- GPS की 24 सैटेलाइट मीडियम एअर्थ ऑर्बिट (Medium Earth Orbit )में हैं. इसमें ग्राउंड रिसीवर को दिखाई देने वाली सैटेलाइट की संख्या सीमित है, यानी किसी भी स्थान पर, किसी भी समय कम से कम 4 सैटेलाइट रिसीवर को दिखाई देंगी, जबकि IRNSS की 7 सैटेलाइट जियोसिंक्रोनस कक्षाओं (geosynchronous orbits) में होंगी, अर्थात् भारत के लगभग 1500 किमी के क्षेत्र में एक रिसीवर को हमेशा दिखाई देंगी.
- IRNSS की सैटेलाइट भारत में लगभग शीर्ष (vertical) पर होंगी और इसलिए 'शहरी क्षेत्रों में'  दृश्यता GPS से बेहतर होगी.
- GPS, L-Band सिग्नल का इस्तेमाल करता है जबकि NaVIC, L और S-band सिग्नल का उपयोग करेगा. ऐसा कहा जाता है कि NaVIC भीड़ वाले स्थानों में बेहतर काम करेगा. L और S-band दोनों का उपयोग करके, सटीकता 5 मीटर से अधिक होगी. GPRS और GPS संयुक्त होकर जितनी सटीकता देते है उतनी NaVIC अकेला दे सकेगा. लेकिन ये सटीकता शहरों के लिए ही नहीं बल्कि देश के हर ग्रामीण हिस्सों के लिए भी होगी.
भारतीय रेलवे सुरक्षा बनाए रखने के लिए जो संघर्ष कर रही थी वो अब इस  अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के प्रयोग से दूर हो सकेगी. इसके अलावा, इस लेख के माध्यम से ज्ञात हुआ है कि IRNSS और NaVIC सिस्टम क्या है, यह GPS आदि की तुलना में कैसे काम करेगा.

Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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