प्रौद्योगिकी आधारित दुनिया जिसमें हम रहते हैं चुनौतियों से भरी हुई हैं. यहां एक्स-रे पढ़ने वाली मशीनें है, स्वचालित कारें हैं तथा ग्राहक-सेवा केन्द्रों पर प्रश्नों का उत्तर देने वाली स्वचालित एल्गोरिदम मशीने हैं. इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रौद्योगिकी ने उत्पादकता के स्तर को बढ़ाया है, जिसके परिणामस्वरूप हमारे जीवन में काफी सुधार हुआ है. लेकिन ऐसा कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में प्रौद्योगिकी का उपयोग अब तक मनुष्य द्वारा प्रतिपादित होने वाले कार्यों में किया जाएगा. इस घोषणा ने लोगों में चिंता पैदा कर दी है, क्योंकि ऐसा माना जा रहा है कि सार्वजनिक जीवन में प्रौद्योगिकी के अधिक उपयोग से पूरी दुनिया में नौकरियों पर काफी प्रभाव पड़ सकता है.
मैकेंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट (McKinsey Global Institute’s)की नवीनतम रिपोर्ट जनवरी 2017, Jobs lost, jobs gained: Workforce transitions in a time of automation (PDF–5MB) के मुताबिक करोड़ों कर्मचारियों की नौकरियों पर खतरा बहुत ही करीब है. यह अगले 13 वर्षों में यानी 2030 तक स्वचालन या ऑटोमेशन से खो जाने वाली नौकरियों की संख्यां और उसके प्रकार का आकलन करती है. इसलिए इस रिपोर्ट में सलाह दी गई है कि लोगों को नया स्किल सिखने की जरुरत है और साथ ही नया काम ढूंढना शुरू कर देना चाहिए. यहाँ तक की जिन इंडस्ट्रीयों पर खतरा ज्यादा है उसमें काम करने वाले कर्मचारियों को नई इंडस्ट्री के बारे में सोचना शुरू कर देना चाहिए.
इसमें कोई संदेह नहीं है कि ऑटोमेशन कंपनियों की क्षमता को बढ़ा रहा है, इससे काम करना आसान हुआ है. परन्तु इसका सबसे बड़ा असर नौकरियों पर देखने को मिलेगा क्योंकि रोबोट कई लोगों के हिस्से का काम आसानी से कर लेगा जिसके कारण अतिरिक्त लोगों की छंटनी और भारतियों में कमी आएगी.
रोबोटिक मशीन का नौकरीयों पर क्या प्रभाव होगा
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रिपोर्ट में कहा गया है कि अलग-अलग देशों में नौकरियों पर अलग-अलग असर होगा जो कि विकसित और उभरती हुई अर्थव्यवस्था दोनों को ही प्रभावित करेगा. कम से कम एक-तिहाई कार्यों को लगभग 60% नौकरियों में स्वचालित किया जा सकेगा, जिसका अर्थ है नियोक्ताओं और श्रमिकों के लिए पर्याप्त परिवर्तन. मशीन ऑपरेटर, फास्ट फूड श्रमिक और बैक-ऑफिस कर्मचारी सबसे ज्यादा प्रभावित होने की संभावना है. लेकिन ऐसे ऑटोमेशन जिससे नौकरी पर इतना बड़ा असर नहीं होगा वह है रचनात्मकता, विशेषज्ञता, लोगों की नियुक्ति करना, या जिनको अक्सर सामाजिक संपर्क की आवश्यकता होती है.
नैनो टेक्नोलॉजी: महत्व और इसके लाभ
मैकेंजी के मुताबिक माली, प्लंबर,बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल करने वालों को ज्यादा प्रभावित होने की संभावना कम है क्योंकि इनका वेतन ज्यादा नहीं होता हैं.
ये हम सब जानते हैं कि प्रौद्योगिकी ने बड़े रोजगार दिए हैं. इसलिए भी मैकेंजी ने सुझाव दिया है कि दुनियाभर में 375 मिलियन श्रमिकों को नौकरी बदलने और नए कौशल सीखने की आवश्यकता है - उनमें अकेले चीन में 100 मिलियन तक होंगे. इसी बीच, अमेरिका और जर्मनी में एक-तिहाई कर्मचारियों की संख्या और लगभग आधे जापानी कर्मचारियों को नए कौशल या नौकरियों में परिवर्तन की जरुरत होगी. यहाँ तक कि 2030 में 8% और 9% के बीच पहले से नई नौकरियां खत्म नहीं होंगी. इसके अलावा, कुछ क्षेत्रों, जैसे कि स्वास्थ्य सेवा और प्रौद्योगिकी, नौकरियों में भारी वृद्धि देखेंगे.
रोबोट को लेकर एसोचैम (भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडल) की रिपोर्ट
इस रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्थर पर जिस तरह की क्रांति हो रहीं है, उससे रोबोटिक्स, थ्री डी प्रिंटिंग, क्रत्रिम बुद्धि, जीनोमिक्स के रूप में कुछ नुकसानदेह प्रोद्योगिकियाँ भी सामने आ रही हैं. जिसके कारण लोग अपनी नौकरी गवां रहे हैं. यहाँ तक की भारत में अगले पांच साल के दौरान करीब 10 लाख नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है.
एसोचैम ने 'डिजिटल इंडिया टू रोबोटिक इंडिया' विषय पर अध्ययन कर लोगों को सटीक क्षमताओं से लैस करने के लिए सरकार, उद्योग क्षेत्र और प्रबुद्ध वर्ग के बीच एक साझीदारी विकसित करने की आवश्यकता को जरुरी बताया है और कहा की केंद्र सरकार को स्वचालन या ऑटोमेशन को लेकर एक राष्ट्रीय निति का स्वरुप तैयार करना चाहिए. मेक इन इंडिया के लिए रोबोटिक्स को प्रमुख तत्व के रूप में जोड़ना चाहिए. साथ ही नौकरियों के खत्म होने की समस्या का समाधान करते हुए यह रिपोर्ट कहती है कि स्वचालन और रोबोटिक्स का इस्तेमाल मानव श्रमिकों के रोजगार की कीमत पर करने की आवश्यकता नहीं है. इन दोनों का सहअस्तित्व संभव है. यहां तक की उद्योगों को रोबोट के इस्तेमाल को प्रतिस्पर्धी लाभ लेने की दिशा में उठाए गये कदम के रूप में देखना चाहिए.
भारत में रोबोटिक्स की संभावनाएं
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यूएसए, यूके, जापान, जर्मनी, कोरिया एवं चीन के मुकाबले रोबोटिक ऑटोमेशन के मामले में भारत काफी पीछे है. इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रोबोटिक्स के अनुसार वर्ष 2014 में भारत में 2100 औद्योगिक रोबोट बच गए थे. 2015 में भारत में बहुउद्देशीय संचालकीय औद्योगिक रोबोट की संख्या 14300 थी, वर्ष 2018 तक 27100 होने की संभावना है. चूंकि इन रोबोट को रखना काफी खर्चीला है इसलिए संख्या के लिहाज से भारत में अभी अधिक रोबोट नहीं देखे जा रहे हैं. लागत के अलावा भारतीय घरों की जटिल संरचना भी रोबोट के विकास में बाधक है. परन्तु मेक इन इंडिया कार्यक्रम से इस क्षेत्र को बल मिलने की सम्भावना है. भारत में फिलहाल रोबोटिक्स का इस्तेमाल औटोमेटिंग वेयरहाउससिंग एवं लॉजिस्टिक क्षेत्र में किया जाता है. इसके अलावा रक्षा क्षेत्र में भी इसका प्रयोग देखा जा रहा है. ऑटोमोबाइल क्षेत्र में टाटा मोटर्स उत्पादन के लिए औद्योगिक रोबोटिक्स एवं ऑटोमेशन का उपयोग करती है. टाटा मोटर्स ने पुणे प्लांट में लगभग 100 रोबोटिक्स स्थापित किए हैं. उपर्युक्त के बावजूद भारत में रोबोटिक्स विकास कई चुनौतियों का सामना कर रहा है. परन्तु इस बात को नजरंदाज़ नहीं किया जा सकता है कि रोबोटिक मशीन के आने से नौकरियों पर प्रभाव पड़ेगा.
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