भारतीय इतिहास कई राजा-महाराजाओं के शासन से भरा पड़ा है। इतिहास के पन्ने राजाओं द्वारा अपना अधिकार क्षेत्र स्थापित करने के लिए किए युद्ध व उनके शासन काल से भरे हुए हैं। इनमें आपने कई महत्वपूर्ण युद्धों के बारे सुना और पढ़ा भी होगा।
इनमें से कुछ शासकों को देश के बेहतरीन शासक के तौर पर भी जाना जाता है और इस वजह से उन्हें महान शासक जैसी उपाधि भी दी गई है। इन शासकों ने उस समय के अखंड भारत की अलग-अलग दिशाओं में जाकर भारतीय संस्कृति को स्थापित भी किया और अपने अधिकार क्षेत्र को आगे बढ़ाया।
हालांकि, क्या आपको पता है कि भारत का सबसे बड़ा साम्राज्य कौन-सा है। यदि नहीं, तो इस लेख के माध्यम से हम भारत के सबसे बड़े साम्राज्य के बारे में जानेंगे।
कौन-सा है भारत का सबसे बड़ा साम्राज्य
भारत के सबसे बड़े साम्राज्य की बात करें, तो यह मौर्य साम्राज्य है, जो कि भारत के सबसे बड़े, पुराने और शक्तिशाली साम्राज्य के तौर पर जाना जाता है। इस साम्राज्य में ही हमें सम्राट अशोक का जिक्र मिलता है, जिनका नाम भारतीय इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है।
किसने की थी मौर्य साम्राज्य की स्थापना
मौर्य साम्राज्य की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने 323 ई.पू. में अपने मंत्री चाण्क्य की मदद से की थी। इस शासन ने भारत में कुल 137 सालों तक राज किया और अपनी सरहदों को भारत के पश्चिम से लेकर उत्तर-पश्चिम तक फैलाया। इस शासन का अंत 185 ई.पू. में हो गया था।
किस प्रकार की मौर्य साम्राज्य की स्थापना
मौर्य वंश के चंद्रगुप्त ने 322 ई पू में मौर्य साम्राज्य की स्थापना की नींव डाली थी। उन्होंने 323 ई पू में नंद शासक रहे धनानंद को युद्ध भूमि में हरा दिया था, जिसके बाद नंद साम्राज्य के बाद मौर्य साम्राज्य की शुरुआत हुई थी।
कितना बड़ा था मौर्य शासन
मौर्य साम्राज्य करीब 52 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ था, जिसमें काबुल, हेरात, कंधार, बलूचिस्तान, पंजाब, यमुना-गंगा के मैदान, बिहार, बंगाल, गुजरात, कश्मीर और विंध्य के कुछ हिस्से शामिल थे।
चंद्रगुप्त मौर्य ने जब मगध साम्राज्य पर कब्जा कर लिया था, तब वह अधिक सत्ता में आ गए थे। क्योंकि, उस समय मगध साम्राज्य सबसे अधिक शक्तिशाली हुआ करता था।
कैसे हुआ मौर्य वंश का पतन
मौर्य वंश 185 ई. पू. तक रहा था इससे कुछ वर्ष पहले ही इसका पतन होना शुरू हो गया था। इस वंश के आखिरी शासक वृहद्रथ की हत्या उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने कर दी थी।
वहीं, कुछ इतिहास इस वंश के पतन के अलग-अलग कारण बताते हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं, अयोग्य और निर्बल उत्तराधिकारी की नियुक्ति, कर की अधिकतता, राष्ट्रीय चेतना की कमी, आर्थिक व सामाजिक असामनताएं, अशोक की धम्म नीति और प्रशासन का अधिक केंद्रीयकरण होना आदि।
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