आईयूसीएन लाल सूची (1964 में स्थापित) एक राज्य या देश की सीमा के भीतर पशु, कवक और पादप प्रजातियों की मौजूदगी के बारे में सबसे विस्तृत रिपोर्ट देती है | अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) विश्व-स्तर पर विभिन्न जातियों की संरक्षण-स्थिति पर निगरानी रखने वाला सर्वोच्च संगठन है। इसकी रिपोर्ट के आधार पर कई देशों की सरकारें विभिन्न जीव जंतुओं और जैवविविधता संरक्षण के उपायों के बारे में सोचने पर मजबूर होतीं हैं |
लाल सूची की श्रेणियां-
जिन प्रजातियों पर किसी प्रकार का खतरा नहीं हैं (सबसे कम चिंता वाले) से लेकर विलुप्त हो चुकी प्रजातियों तक, आईयूसीएन लाल सूची प्रणाली में नौ श्रेणियां होती हैं। संकटग्रस्त श्रेणियां ( कमजोर, खतरे में और गंभीर रूप से संकटग्रस्त) पांच वैज्ञानिक मानदंडों पर आधारित होती हैं जो प्रजाति विशेष के समाप्त होने के जोखिम का आकलन जैविक कारकों जैसे– संख्या कम होने की दर, आबादी, भौगोलिक वितरण का क्षेत्र, आबादी की डिग्री और विखंडन वितरण, पर आधारित होता है। ये मानदंड सभी प्रजातियों (सूक्ष्म जीवों को छोड़कर) पर, सभी इलाकों और सभी देशों में लागू किए जा सकते हैं।
पांच वैज्ञानिक मानदंडों का प्रयोग कर श्रेणियां दी जाती हैं। ये मानदंड प्रजाति के समाप्त होने के जोखिम का आकलन करते हैं जो जैविक कारकों जैसे आबादी के कम होने की दर और आकार पर आधारित होता है।
आईयूसीएन द्वारा प्रजातियों का वर्गीकरणः
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विस्तृत विवरण इस प्रकार है :
1. विलुप्त (Extinct या EX) – जाति का कोई भी जीवित सदस्य नहीं बचा है |
2. वन-विलुप्त (Extinct in the Wild या EW)– जाति वनों से पूर्णतः ख़त्म हो चुकी है और इसके बचे हुए सदस्य केवल चिड़ियाघरों या अपने मूल निवास स्थान से अलग किसी कृत्रिम निवास स्थान पर ही जीवित हैं |
3. घोर-संकटग्रस्त (Critically Endangered या CR) – जाति का वनों से विलुप्त होने का घोर ख़तरा बना हुआ है |
4. संकटग्रस्त (Endangered या EN) – जाति का वनों से विलुप्त होने का ख़तरा बना हुआ है |
5. असुरक्षित (Vulnerable या VU) – जाति की वनों में संकटग्रस्त हो जाने की संभावना है |
6. संकट-निकट (Near Threatened या NT)– जाति की निटक भविष्य में संकटग्रस्त हो जाने की संभावना है |
7. संकटमुक्त (Least Concern या LC) – जाति को बहुत कम ख़तरा है - बड़ी तादाद और विस्तृत क्षेत्र में पाई जाने वाली जाति |
8. आंकड़ों का अभाव (Data Deficient या DD)– जाति के बारे में आंकड़ों की कमी से उसकी संरक्षण स्थिति और संकट का अनुमान नहीं लगाया जा सकता |
9. अनाकलित (Not Evaluated या NE)– जाति की संरक्षण स्थिति का अ॰प्र॰स॰स॰ के संरक्षण मानदंड पर आँकन अभी नहीं किया गया है |
प्रकृति संरक्षण हेतु अंतरराष्ट्रीय संघ IUCN लाल सूची:
तथ्यों पर एक नजर-
1. आईयूसीएन की वैश्विक प्रजाति कार्यक्रम पादप, कवक और पशुओं के संरक्षण के लिए काम करती है। यह स्थानीय से वैश्विक स्तरों पर जैवविविधता के संरक्षण के बारे में सूचित निर्णय करने के लिए जानकारी मुहैया कराता है।
2. आईयूसीएन लाल सूची का मुख्य उद्देश्य उन पौधों और पशुओँ की सूची बनाना और उनको हाइलाइट करना है जिन पर विश्व में विलुप्त होने का सबसे अधिक जोखिम है (यानि गंभीर खतरे, खतरे और तेजी से कम होते, के तौर पर सूचीबद्ध)
3. द इंटरनेशनल यूनियन फॉर द कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) प्रजातियों के संरक्षण स्थिति पर विश्व का प्रमुख प्राधिकरण है।
4. वर्ष 1964 में खतरे की स्थिति में पहुंच चुके स्तनधारियों और पक्षियों की पहली व्यापक सूची को संकलित और प्रकाशित किया गया था। इसने आंकड़ों को सामान्य जनता के लिए उपलब्ध कराया।
5. वर्ष 1988 में पहली बार सभी पक्षियों का पहली बार मूल्यांकन किया गया। अन्य प्रजातियों का भी मूल्यांकन किया गया। 1998 में सभी शंक्वाकार पौधों का मूल्यांकन, 2004 में– सभी उभयचरों का, 2008 में– सभी स्तनधारियों, सिकड और रीफ बनाने वाले कोरलों का, 2011 में सभी टूना और 2012 में सभी शार्क और रेज का।
6. आईयूसीएन रेड डाटा बुक विश्व स्तर पर संकटग्रस्त जैवविविधता के वर्तमान स्थिति पर वैज्ञानिक रूप से सही जानकारी उपलब्ध कराता है।
7. पौधों, कवक और पशुओँ का मूल्यांकन किया जाता है और विलुप्त होने का जोखिम जिन पर कम होता है उन्हें सबसे कम चिंता वाले वर्ग में रखा जाता है।
8. वर्ष 2003 से पहले आईयूसीएन लाल सूची में सबसे कम चिंताजनक मूल्यांकन को शामिल नहीं किया जाता था (1996 में सूचीबद्ध कुछ को छोड़कर)। सिर्फ पारदर्शिता के उद्देश्य से, सभी कम चिंताजनक मूल्यांकनों को भी आईयूसीएन लाल सूची में शामिल किया गया है।
9. आईयूसीएन की लाल सूची समय–समय पर (आमतौर पर चार वर्षों में कम– से– कम एक बार) प्रकाशित की जाती है।
10. खोज की गई प्रत्येक प्रजाति के लिए आईयूसीएन की लाल सूची उनकी आबादी और रुझान, भौगोलिक विस्तार एवं आवास संबंधी आवश्यकताओं के बारे में जानकारी प्रदान करती है। आज तक 76,000 से अधिक प्रजातियों की खोज की जा चुकी है। इनमें से 22,000 से अधिक पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है।
IUCN द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार रेड डाटा बुक में विश्व की विभिन्न प्रजातियों की स्थिति इस प्रकार है
Image source https://www.iucn.org
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