पीएम मोदी के नेतृत्व में नई सरकार का गठन हो गया और सभी मंत्रियों ने अपने मंत्रालय और विभाग की जिम्मेदारी संभाल भी ली है. अब सबको इंतजार है तो नई सरकर के गठन के बाद लोकसभा की पहले बैठक का, साथ ही सबकी नजरें लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष (Leader of Opposition, LoP) पर भी टिकी हुई है, क्योंकि देश में 10 साल बाद कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष घोषित करने का मौका मिला है. यह पद पिछले 10 साल से खाली था. इस लेख में हम लोकसभा के पहले नेता प्रतिपक्ष के बारें में भी जानेंगे.
बता दें कि INDIA गठबंधन, भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को तीसरी बार सत्ता में आने से रोकने में असफल रहा लेकिन इस बार वापसी जरुर की है. इस चुनाव में कांग्रेस ने 543 लोकसभा सीटों में से 99 सीटें जीतीं, जो 2014 के बाद से उसका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है.
राहुल गांधी बने विपक्ष के नेता:
कांग्रेस नेता राहुल गांधी को लोकसभा में विपक्ष का नेता नियुक्त किया गया, पार्टी सांसद केसी वेणुगोपाल ने यह जानकारी दी. मीडिया को संबोधित करते हुए वेणुगोपाल ने कहा कि कांग्रेस संसदीय दल (सीपीपी) की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रोटेम स्पीकर भर्तृहरि महताब को पत्र लिखा और उन्हें सूचित किया कि राहुल गांधी लोकसभा में विपक्ष के नेता होंगे. बता दें कि राहुल गांधी ने रायबरेली से संसद सदस्य के रूप में लोकसभा सदस्य की शपथ ली है. उन्होंने वायनाड की सीट से इस्तीफा दे दिया है जहां से उनकी बहन और कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी उपचुनाव लड़ेंगी.
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नेता प्रतिपक्ष कांग्रेस के खाते में:
लोकसभा में दस साल के लंबे इंतजार के बाद कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष का पद अधिकृत रूप से मिल गया है. मोदी सरकार के पहले और दूसरे कार्यकाल में कांग्रेस के लोकसभा सांसदों की संख्या 10 फीसदी से कम होने के कारण यह पद खाली था. इस बार कांग्रेस के 99 सांसद जीतकर आए हैं, जो लोकसभा की कुल संख्या का 18 फीसदी हैं.
नेता प्रतिपक्ष की क्या है शक्तियां:
Leader of Opposition in Lok Sabha: लोकसभा में विपक्ष के नेता (Leader of Opposition, LoP) का पद महत्वपूर्ण होता है साथ ही नेता प्रतिपक्ष की कई महत्वपूर्ण शक्तियां और भूमिकाएँ होती हैं. भारतीय लोकतंत्र में संतुलन बनाए रखने के लिए विपक्ष के नेता का रोल महत्वपूर्ण हो जाता है. साथ ही साथ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर विपक्ष के नेता की भूमिका महत्वपूर्ण होती है.
कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने राहुल गांधी के नाम का प्रस्ताव पारित किया जिसे मंजूर कर लिया गया है. साथ ही कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता भी चाहते थे कि राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष बनें.
1. संसदीय कार्यों में भूमिका:
विपक्ष का नेता संसद में सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों की आलोचना करने और सवाल उठाने के लिए स्वतंत्र होता है. साथ ही प्रमुख विधेयकों और नीतिगत मामलों पर विपक्ष का दृष्टिकोण संसद में रखते है.
2. संसदीय समितियों में रोल:
नेता प्रतिपक्ष को विभिन्न संसदीय समितियों, जैसे लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee) और चयन समिति (Select Committees) में सदस्यता दी जाती है, साथ ही संसदीय समितियों द्वारा लिए गए निर्णय में विपक्ष के नेता का अहम रोल होता है.
3. संवैधानिक पदों की नियुक्ति में भूमिका:
संवैधानिक पदों पर होने वाली नियुक्तियों में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका भी मायने रखती है. उदाहरण के लिए बात करें तो केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (CVC), सूचना आयुक्त, और लोकपाल की नियुक्ति में नेता प्रतिपक्ष की राय भी ली जाती है.
साथ ही प्रवर्तन निदेशालय (ED) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) जैसी केंद्रीय एजेंसियों के प्रमुखों की नियुक्ति में नेता प्रतिपक्ष का रोल अहम होता है. चयन समितियों में नेता प्रतिपक्ष की उपस्थिति सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करती है.
नेता प्रतिपक्ष की सैलरी और सुविधाएं:
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद बेहद प्रभावशाली होता है, बता दें कि ता प्रतिपक्ष का पद कैबिनेट मंत्री के समान होता है. नेता प्रतिपक्ष को केंद्रीय मंत्री के समकक्ष वेतन, भत्ते और अन्य सुविधाएं मिलती है. नेता प्रतिपक्ष की मासिक सैलरी 3,30,000 रुपये होती है. साथ ही कैबिनेट मंत्री स्तर के आवास की सुविधा ड्राइवर सहित कार जैसी सुविधाएं मिलती है. साथ ही नेता को स्टाफ की भी सुविधा दी जाती है.
लोकसभा में विपक्ष के पहले नेता:
लोकसभा में विपक्ष के पहले नेता कांग्रेस (O) के राम सुभाग सिंह थे. वह साल 1962 और 1967 में क्रमशः तीसरी और चौथी लोकसभा के सदस्य के रूप में चुने गए थे. वह 1969 में लोकसभा में विपक्ष के पहले नेता बने थे. बता दें कि लोकसभा ने 1969 तक विपक्ष के किसी आधिकारिक नेता को मान्यता नहीं दी थी. यह पद 1980 और 1989 और 2014 से 2024 के बीच भी खाली था.
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