भारतीय स्वतंत्रता के लिए क्रांतिकारी आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक हिस्सा है, जिसमें भूमिगत क्रांतिकारी गुटों की गतिविधियां शामिल हैं। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अनेक ज्ञात एवं अज्ञात योगदानकर्ता थे। इसमें उदारवादी नेतृत्व, उग्रवादी नेतृत्व और भारतीय युवाओं की क्रांतिकारी गतिविधियां शामिल थीं।
वे सभी अपनी-अपनी पद्धतियों से ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को समाप्त करने के लिए लड़े। ब्रिटिश सरकार भी अपने साम्राज्यवादी शासन के विरुद्ध क्रांतिकारी गतिविधियों को दबाने के षडयंत्र में शामिल थी।
-मुजफ्फरपुर षड्यंत्र केस (1908 ई.)
खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी द्वारा मुजफ्फरपुर के मुख्य प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट डी.एच. किंग्सफोर्ड की हत्या करने की एक क्रांतिकारी साजिश थी । उन्होंने डी.एच. किंग्सफोर्ड के वाहन पर बम फेंके, लेकिन वह हमले से बच गए और दुर्भाग्यवश, दो ब्रिटिश महिलाएं मारी गईं।
बाद में खुदीराम बोस को भारतीय ब्रिटिश पुलिस अधिकारी नंदलाल बनर्जी ने गिरफ्तार कर लिया, जिनकी बाद में नरेन्द्रनाथ बनर्जी ने गोली मारकर हत्या कर दी । प्रफुल्ल चाकी ने उस समय आत्महत्या कर ली, जब उन्हें पुलिस गिरफ्तार करने ही वाली थी। खुदीराम बोस सबसे कम उम्र के भारतीय थे, जिन्हें अंग्रेजों ने फांसी दी थी।
-दिल्ली षड्यंत्र केस (1912 ई.)
इस घटना को दिल्ली-लाहौर षडयंत्र के नाम से भी जाना जाता है । यह बंगाल और पंजाब में भूमिगत भारतीय क्रांतिकारी द्वारा संगठित किया गया था और इसका नेतृत्व रास बिहारी बोस ने भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड हार्डिंग की हत्या के लिए किया था । इस दिल्ली षडयंत्र केस के मुकदमे में बसंत कुमार विश्वास, अमीर चंद और अवध बिहारी को दोषी ठहराया गया और उन्हें फांसी दे दी गई।
-पेशावर षड्यंत्र केस (1922-1927 ई.)
यह उन मुजाहिरों के खिलाफ मुकदमा था, जिन्होंने भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन शुरू करने के लिए रूस से भारत में घुसने की कोशिश की थी। ऐसे पांच मामले थे, जो 1922 से 1927 ई. तक जारी रहे। भारतीय उपमहाद्वीप में ब्रिटिश सरकार साम्यवाद के प्रसार के विचार से भयभीत थी।
यह एकमात्र ऐसा मामला नहीं था, जो लोकप्रिय हुआ और जिसने भारतीय उपमहाद्वीप की युवा आबादी की कल्पना को प्रेरित किया, ऐसे कई अन्य मामले भी थे। इनमें मई 1924 के कानपुर बोल्शेविक मामले को एक पुष्ट मामले के रूप में उद्धृत किया जा सकता है।
-कानपुर बोल्शेविक षड्यंत्र केस (1924 ई.)
इस मामले में भारत के नव-उभरते कम्युनिस्टों को ब्रिटिश सरकार द्वारा अपमानित किया गया। एमएन रॉय, मुजफ्फर अहमद, एसए डांगे, शौकत उस्मानी, नलिनी गुप्ता, सिंगरावेलु चेट्टियार, गुलाम हुसैन को सरकार ने पकड़ लिया और सरकार के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में उन पर मुकदमा चलाया गया। उन पर आरोप लगाया गया:
“हिंसक क्रांति द्वारा भारत को साम्राज्यवादी ब्रिटेन से पूर्णतः अलग करके, राजा-सम्राट को ब्रिटिश भारत की संप्रभुता से वंचित करना।”
यह मामला कोई जनांदोलन नहीं था, बल्कि उस समय के उभरते कम्युनिस्ट नेताओं को बर्खास्त करने के लिए ब्रिटिश आंदोलन था।
-काकोरी षड्यंत्र केस (1925 ई.)
इसे काकोरी ट्रेन डकैती या काकोरी कांड भी कहा जाता है , यह ब्रिटिश भारतीय सरकार के खिलाफ एक ट्रेन डकैती थी।
इसका आयोजन एक क्रांतिकारी संगठन द्वारा किया गया था। हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) का गठन राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में किया गया था और इसका समर्थन अशफाकउल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी, चंद्रशेखर आज़ाद, सचिंद्र बख्शी, केशव चक्रवर्ती, मन्मथनाथ गुप्ता, मुरारी लाल गुप्ता (मुरारी लाल खन्ना), मुकुंदी लाल (मुकुंदी लाल गुप्ता) और बनवारी लाल ने किया था।
इस डकैती का उद्देश्य
-ब्रिटिश प्रशासन से चुराए गए धन से हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) को वित्त पोषित करना।
-भारतीयों के बीच हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) की सकारात्मक छवि बनाकर जनता का ध्यान आकर्षित करना।
-मेरठ षड्यंत्र केस (1929 ई.)
भारतीय मजदूर वर्ग के आंदोलन के लिए यह अत्यधिक राजनीतिक महत्त्व था, क्योंकि यह भारत में साम्यवाद के उदय के खिलाफ ब्रिटिश सरकार की एक साजिश थी। इस मामले के दौरान तीन अंग्रेजों सहित 31 मजदूर नेताओं को षड्यंत्र के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
मुजफ्फर अहमद, एसए डांगे, एसवी घाटे, डॉ. जी अधिकारी, पीसी जोशी, एसएस मिराजकर, शौकत उस्मानी, फिलिप स्ट्रेट आदि को हड़तालों और अन्य उग्रवादी तरीकों से भारत की ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
यह जानना दिलचस्प है कि मेरठ मामले के आरोपियों को राष्ट्रवादियों की सहानुभूति प्राप्त हुई।
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