जानें भारत में जमानत प्राप्त करने की प्रक्रिया क्या है

Dec 1, 2017, 18:16 IST

अक्सर हमें टीवी पर और समाचार पत्रों में ऐसी खबरें देखने और सुनने को मिलती है कि किसी प्रमुख व्यक्ति को पुलिस द्वारा गिरफ्तार करने के बाद जमानत पर रिहा कर दिया गया है. लेकिन हम में से अधिकांश व्यक्ति यह नहीं जानते हैं कि जमानत क्या है और किन प्रक्रियाओं के तहत किसी व्यक्ति को जमानत प्रदान किया जाता है? अतः इस लेख में हम जमानत से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों तथा उन प्रक्रियाओं का उल्लेख कर रहे हैं, जिसके माध्यम से किसी व्यक्ति को जमानत प्रदान की जाती है.

procedure for bail
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अक्सर हमें टीवी पर और समाचार पत्रों में ऐसी खबरें देखने और सुनने को मिलती है कि किसी प्रमुख व्यक्ति को पुलिस द्वारा गिरफ्तार करने के बाद जमानत पर रिहा कर दिया गया है. इसके लिए उस व्यक्ति ने कुछ राशि का भुगतान किया है और व्यक्तिगत सुरक्षा बांड भी भरे हैं. लेकिन हम में से अधिकांश व्यक्ति यह नहीं जानते हैं कि जमानत क्या है और किन प्रक्रियाओं के तहत किसी व्यक्ति को जमानत प्रदान किया जाता है? अतः इस लेख में हम जमानत से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों तथा उन प्रक्रियाओं का उल्लेख कर रहे हैं, जिसके माध्यम से किसी व्यक्ति को जमानत प्रदान की जाती है.

जमानत क्या है

जमानत, एक अभियुक्त को कानूनी रूप से यह सुविधा प्रदान करती है कि वह अदालत में एक निश्चित राशि जमा कर अस्थायी रूप से रिहा हो सकता है. यह जमानत तब तक काम करती है, जब तक अभियुक्त अदालत में फिर से मुकदमे का सामना नहीं करता है. किसी अभियुक्त को मिलने वाली जमानत उस अपराध की प्रकृति, जिसमें अभियुक्त शामिल है और अभियुक्त के पिछले आपराधिक आंकड़ों पर निर्भर करता है.

किस आधार पर किसी अभियुक्त को जमानत मिल सकती है?

justice law
Image source: Hindustan Times

किसी व्यक्ति को जमानत देना उस मामले को देखने वाले जज के विवेकाधिकार पर निर्भर करता है. किसी अभियुक्त को जमानत देने के दौरान जज अपराध से जुड़े विभिन्न कारकों को ध्यान में रखता है. किसी अभियुक्त को जमानत देते समय जज निम्नलिखित महत्वपूर्ण कारकों पर विचार करता है:
1. आरोप या अपराध की गंभीरता
2. मुकदमा चलाने के बाद अभियुक्त को क्या सजा मिल सकती है
3. मामले में आरोपी के खिलाफ आरोप की कठोरता
4. आरोपी व्यक्ति का पिछला इतिहास, सामान्य आचरण और चरित्र
5. आरोपी को सुनवाई के लिए कब पेश करना है
6. जमानत पर रिहा होने के दौरान आरोपी का आपराधिक ट्रैक रिकॉर्ड
7. अभियुक्त द्वारा सबूतों के साथ छेड़छाड़ या गवाहों को धमकाने की संभावना
8. जज को इस बात का संदेह होना कि अभियुक्त अदालती मुकदमे के लिए फिर से पेश नहीं हो सकता है
9. जज को इस बात का संदेह होना कि जमानत पर रिहा होने के बाद अभियुक्त किसी अन्य अपराध में संलिप्त हो सकता है
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अभियुक्त को जमानत कौन दे सकता है?

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Image source: YouTube
यदि किसी व्यक्ति को पुलिस गिरफ्तार करती है और उस पर आरोप लगाती है, तो पुलिस को गिरफ्तारी के 24 घंटों के भीतर अभियुक्त को अदालत में पेश करना पड़ता है. यदि पुलिस यह मानती है कि निर्धारित समय के भीतर अदालत में आरोपी को पेश करना संभव नहीं है, तो पुलिस उस अभियुक्त को जमानत दे सकती है और इसे पुलिस द्वारा दी गई जमानत (police bail) कहा जाता है. यह जमानत केवल तब तक काम करती है जब तक कि आरोपी को अदालत के सामने पेश नहीं किया जाता है और एक बार अदालत के सामने आरोपी को पेश करने के बाद जमानत की अवधि समाप्त हो जाती है. इसके बाद आरोपी को फिर से अदालत में जमानत के लिए आवेदन करना पड़ता है.
अगर पुलिस द्वारा आरोपी को जमानत देने के संबंध में कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई जाती है, तो अदालत का रजिस्ट्रार आरोपी को जमानत देने का फैसला करेगा. यदि पुलिस द्वारा अभियुक्त को जमानत देने के संबंध में कोई आपत्ति दर्ज कराई जाती है, तो जज मामले से जुड़े सभी कारकों पर विचार करने के बाद फैसला करता है कि आरोपी को जमानत दी जा सकती है या नहीं. कुछ निश्चित कानूनी स्थिति पर आधारित जमानत प्राप्त करना प्रत्येक भारतीय नागरिक का विशिष्ट अधिकार है. अगर कोई अभियुक्त जमानत के लिए याचिका दायर करने हेतु वकील करने में असमर्थ है, तो अभियुक्त अदालत के कार्यकारी सॉलिसिटर की मदद ले सकता है जो उसे मुफ्त में अपनी सेवाएं प्रदान करेगा.

जमानत प्रदान करने की सामान्य शर्तें क्या हैं?

किसी अभियुक्त को कुछ निश्चित शर्तों के आधार पर जमानत दी जाती है. इन शर्तों में से किसी का भी उल्लंघन करने पर जमानत रद्द भी हो सकता है. ये शर्तें निम्न हैं:
1. अभियुक्त को किसी विशेष निवास क्षेत्र में रहना होगा.
2. जिस व्यक्ति को जमानत मिलती है वह जमानत में निर्दिष्ट क्षेत्र को छोड़कर नहीं जा सकता है.
3. उस व्यक्ति को समय-समय पर पुलिस के सामने पेश होना पड़ेगा और पुलिस स्टेशन के रिकॉर्ड में नियमित रूप से हस्ताक्षर करना होगा.
4. अभियुक्त, पीड़ित व्यक्ति के साथ संपर्क नहीं कर सकता है.
5. अभियुक्त सबूतों के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकता है.

जमानत के प्रकार

indian court hammer 
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अलग-अलग परिस्थितियों में अभियुक्त को अलग-अलग प्रकार के जमानत जारी किए जाते हैं.

नकद जमानत

इस प्रकार की जमानत में, अभियुक्त को पूरी निर्धारित राशि नकद या क्रेडिट कार्ड द्वारा भुगतान करना पड़ता है. जमानत प्राप्त करने के लिए आवश्यक राशि मामले की गंभीरता पर निर्भर करती है. अगर अपराध संगीन है तो जमानत देने के लिए एक बड़ी राशि निर्धारित की जाती है. जमानत के लिए बड़ी राशि का निर्धारण इसलिए किया जाता है ताकि आरोपी उस राशि को जमा करने से बचने हेतु सुनवाई के लिए तय समय पर अदालत में पेश हो सकें.

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जमानत पत्र

इस प्रकार के जमानत में आरोपी का एक मित्र या रिश्तेदार भी शामिल होता है तथा एक जमानत एजेंट की मदद से आरोपी को जमानत मिलती है. यदि कोई अभियुक्त जमानत के लिए आवश्यक नकद रकम का भुगतान नहीं कर पाता है, तो एक जमानत एजेंसी का जमानत एजेंट आरोपी के जमानत के लिए बांड की पूरी रकम का भुगतान करने का वादा करता है.
जमानत एजेंसियां जमानत के लिए आवश्यक नकद रकम का दस प्रतिशत प्रीमियम का भुगतान करती हैं और बदले में घर, कार, आभूषण, भूमि सम्पत्ति आदि के रूप में आरोपी से गारंटी लेती है. यदि अभियुक्त तय समय पर अदालत में पेश नहीं होता है, तो जमानत एजेंट को बांड में निर्धारित पूरी राशि का भुगतान करना पड़ता है. चूँकि इस जमानत पत्र में आरोपी का दोस्त या रिश्तेदार शामिल होता है, अतः बांड एजेंट का यह मानना होता है कि अभियुक्त तय समय पर मुकदमे के लिए अदालत में पेश हो जाएगा.

संपत्ति बांड

यदि अभियुक्त जमानत राशि को नकद में भुगतान करने में सक्षम नहीं है, तो वह नकदी के बदले अपनी संपत्ति दिखाकर जमानत प्राप्त कर सकता है. अभियुक्त को नकदी के बदले नकदी के बराबर मूल्य की संपत्ति को दिखाना होगा. लेकिन यदि अभियुक्त निर्धारित तिथि पर अदालत के सामने पेश होने में विफल रहता है, तो जिस संपत्ति को गारंटी के रूप में अदालत में रखा जाता है, उसके उपयोग पर अदालत द्वारा रोक लगा दिया जाता है.

व्यक्तिगत पहचान के आधार पर रिहाई

जज द्वारा किसी अभियुक्त को निजी पहचान के आधार पर रिहा करने की अनुमति दी जा सकती है. यदि अभियुक्त द्वारा किया गया अपराध गंभीर नहीं है या गैर हिंसक प्रकृति का मामूली अपराध है तो आरोपी को उसके वादे के आधार पर जेल से रिहा किया जा सकता है. ऐसे मामलों में जमानत के लिए किसी भी राशि का भुगतान करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है.

सम्मन के आधार पर रिहाई

कुछ मामलों में, पुलिस अधिकारी अपराधी को गिरफ्तार नहीं करते हैं, बल्कि अपराधी को अदालत के समक्ष पेश होने के लिए सम्मन भेजते हैं. यदि अपराधी निर्धारित समय पर अदालत में पेश नहीं होता है तो अपराधी को गिरफ्तार किया जा सकता है.

निष्कर्ष

जमानत, किसी आरोपी को प्राप्त एक ऐसी कानूनी व्यवस्था है जिसके तहत अदालत में प्रतिभूति या गारंटी के रूप में पैसे या संपत्ति या कुछ संपार्श्विक बांड (collateral bond) जमा कर रिहाई प्राप्त की जाती है. जमानत के माध्यम से किसी अभियुक्त या अपराधी को अपनी जिन्दगी को सामान्य रूप से जीने का या बिना किसी रुकावट के कमाई करने का अधिकार प्राप्त होता है. वास्तव में जमानत प्रत्येक नागरिक को खुद को बचाने का अधिकार प्रदान करता है.
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