आज के समय में सबसे अच्छा और बेहतर आय का साधन किराया है. जिसके पास कोई प्रॉपर्टी खाली पड़ी हो तो उसे प्रॉपर्टी का मालिक किराये पे दे सकता है. परन्तु किराये पर लेते और देते समय जो सबसे महत्वपूर्ण चीज है, वह है रेंट एग्रीमेंट. आपने अगर कभी किराये पर कोई प्रॉपर्टी दी है या किराये पर ली है तो रेंट एग्रीमेंट जरूर साइन किया होगा. क्या आपने कभी सोचा है कि रेंट एग्रीमेंट 11 महीने का ही क्यों करवाया जाता है. 12 या उससे ज्यादा का क्यों नही होता है. आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते है.
सबसे पहले अध्ययन करते है कि रेंट एग्रीमेंट क्या होता है?
रेंट एग्रीमेंट को लीज एग्रीमेंट भी कहते है. यह किरायेदार और मकानमालिक के बीच में एक लिखित समझौता (Written agreement) होता है. इसी एग्रीमेंट में कॉन्ट्रैक्ट की शर्तें लिखी होती है जैसे कि मकान का पता, मकान का साइज, मकान का एड्रेस, टाइप, मासिक किराया, सिक्यूरिटी डिपाजिट (security deposit) और काम जिसके लिए उस प्रॉपर्टी का इस्तेमाल किया जा सकता है. इन सभी टर्म्स एंड कंडीशंस पर साइन करने के बाद कोई बदलाव नहीं हो सकता है. अगर किसी भी प्रकार के बदलाव का प्रस्ताव मकानमालिक या किरायेदार द्वारा रखा जाना हो, तो उस के लिए 30 दिन पहले नोटिस दिया जाता है. ध्यान दें कि इसी एग्रीमेंट पर इसको खत्म करने की भी शर्त लिखी होती है. यानी रेंट एग्रीमेंट वह होता है, जो किसी भी प्रौपर्टी को किराये पर देने से पहले किरायेदार और मकानमालिक के समझौते से तैयार किया जाता है.
रेंट एग्रीमेंट को 11 महीने के लिए ही क्यों बनवाया जाता है?
ज्यादा तर एग्रीमेंट 11 महीने के लिए ही बनवाया जाता है ताकि उन पर स्टाम्प ड्यूटी (Stamp duty) का भुगतान करने के लिए बचा जा सके.
रजिस्ट्रेशन एक्ट,1908 (Registration Act, 1908) के अनुसार किसी लीज का एग्रीमेंट का टाइम पीरियड (time period) अगर 12 महीने से ज्यादा का है तो उस लीज एग्रीमेंट का रजिस्ट्रेशन कराना जरुरी है. अगर किसी लीज एग्रीमेंट को रजिस्टर कराया जाता है तो उस पर रजिस्ट्रेशन फीस और स्टाम्प ड्यूटी का भुगतान करना भी जरुरी हो जाता है.
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उदाहरण के लिए: दिल्ली में 5 साल के लिए स्टाम्प पेपर की कीमत एक साल के किराये के 2% के बराबर है और 5 साल से अधिक के लिए यह सालाना किराये के 3% के बराबर है. 10 साल से ज्यादा और 20 साल से कम के लिए यह सालाना किराये का 6% के बराबर है. अब अगर एग्रीमेंट में सिक्यूरिटी deposit के बारे में भी कॉन्ट्रैक्ट है तो रु. 100 सिक्यूरिटी के जुड़ते है और रु.1100 रजिस्ट्रेशन फीस के भी जुड़ जाते हैं.
अगर कोई मकान 2 साल के लिए किराये पर दिया जाता है जिसमें पहले साल का किराया रु. 20,000 महिना है और दूसरे साल का किराया रु. 22,000 महिना है तो इसका औसत सालाना किराया 2% होता है (21000 का 2%) यानी रु. 5040. इसमें अगर सिक्यूरिटी deposit है तो रु. 100 जुड़ जाएंगे और रजिस्ट्रेशन फीस के रु. 1100 जुड़ेंगे. जो मिलाकर कुल रु. 6,240 का खर्चा बनता है. इसके अलावा वकील और दूसरे कागज़ी कारवाही करने वाले का खर्चा अलग से होता है जो इसमें और जुड़ता है और इस हिसाब से एक एग्रीमेंट को रजिस्टर करवाने में 8 से 10 हजार रूपये लगते हैं.
अब अगर कोई 12 महीने या उससे ज्यादा के लिए एग्रीमेंट करता है तो उसको एग्रीमेंट रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1908 के अनुसार रजिस्टर करवाना पड़ेगा जिसमें 8 से 10 हजार रूपये का खर्चा आएगा जैसे की ऊपर बताया गया है.
इसलिए इन सब खर्चों से बचने के लिए मकानमालिक और किरायेदार आपसी समझौते के आधार पर 11 महीने का एग्रीमेंट बना लेता है. जिससे उन्हें इस एग्रीमेंट को न तो रजिस्टर करवाना पड़ेगा और न ही रजिस्ट्रेशन फीस देनी पड़ती है. हालाकि अगर आप एग्रीमेंट करवाना चाहते है तो जो खर्चा होता है उसको मकानमालिक और किरायेदार आपस में बांट सकते हैं और स्टाम्प पेपर मकान मालिक या किरायेदार किसी के भी नाम पर खारीदा जा सकता है.
अब आप समझ गए होंगे की रेंट एग्रीमेंट 11 महीने का ही क्यों होता है.
रेंट एग्रीमेंट के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
- रेंट एग्रीमैंट पर साइन करते समय मकानमालिक और किरायेदार दोनों को कुछ जरुरी बातों को ध्यान रखना चाहिए जैसे मकानमालिक को किरायेदार से जुड़ी पूरी जानकारी होनी चाहिए और किरायेदार को ध्यान देना चाहिए की मकानमालिक कोई धोका तो नहीं दे रहा है. प्रॉपर्टी कितने समय के लिए किराये पर दी जा रही है, बिजली, पानी और हाउस टैक्स का बिल कौन देगा, क्या ये किराये में ही सम्मिलित है या नहीं पहले से किरायेदार को पता होना चाहिए.
- रेंट एग्रीमैंट में यह साफ होना चाहिए की किराया कितने समय बाद बढ़ाया जाएगा और कितना.
- क्या आप रेंट कंट्रोल ऐक्ट के बारे में जानते है. यह कानून कोई भी रहने वाली या व्यावसायिक प्रौपर्टी, जो किराये पर ली या दी जा रही हो, उस पर लागू होता है. यह कानून किरायेदार एवं मकानमालिक के सिविल राइटस की रक्षा करता है. इस कानून का सही फायदा उस दशा में होता है, जब प्रौपर्टी का किराया रु. 3500 प्रति माह तक या इससे कम हो. यदि किराया रु. 3500 से ज्यादा है और किरायेदार व मकानमालिक में कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो अदालत का दरवाजा खटखटाना पढ़ सकता है.
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