भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, जिसका संविधान दुनिया में सबसे बड़ा है। भारतीय संविधान को 2 साल 11 महीने और 18 दिनों में बनाकर तैयार किया गया था। संविधान में राष्ट्रपति की शक्तियों और उनके कर्तव्यों के बारे में भी जिक्र किया गया है। संविधान में भारत का राष्ट्रपति देश का प्रथम नागरिक बताया गया है। यह देश में सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर भी होता है।
राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् की सलाह से अपना काम करता है। हालांकि, कुछ मामलों में राष्ट्रपति के पास अपनी शक्तियां हैं, जिन्हें वीटो शक्तियां कहा गया है। कौन-सी हैं ये शक्तियां और कब किया जाता है, इनका इस्तेमाल, जानने के लिए यह लेख पढ़ें।
क्या होती है Veto Power
सबसे पहले हम वीटो शक्ति के बारे में जान लेते हैं। संविधान में राष्ट्रपति को वीटो शक्तियां दी गई हैं, जिनका उपयोग कर संसद में पारित किए गए बिलों पर रोक लगाई जा सकती या फिर उनमें देरी की जा सकती है। यह कार्य राष्ट्रपति द्वारा अपने विवेक का इस्तेमाल कर किया जा सकता है, जिसमें उन्हें मंत्रिपरिषद् की सलाह की आवश्यकता नहीं है।
राष्ट्रपति के पास कौन-सी तीन वीटो शक्ति होती हैं
आत्यंतिक वीटो(Absolute Veto)
इसके तहत राष्ट्रपति द्वारा किसी बिल को मंजूरी देने के बजाय अपने पास सुरक्षित रख लिया जाता है। ऐसे में वह बिल अपने आप समाप्त हो जाता है। ऐसा अमूमन निजी सदस्य यानि कि वह सांसद जो मंत्री नहीं है, उसके द्वारा बिल पेश करने या बिल पास होने के बाद, लेकिन राष्ट्रपति की मुहर से पहले सरकार गिरने पर किया जाता है।
निलंबनकारी वीटो (Suspensive Veto)
इसके तहत राष्ट्रपति द्वारा किसी भी बिल को पुनर्विचार के लिए संसद में दोबारा भेजा जाता है। हालांकि, यदि संसद द्वारा बिल को दोबारा बिना कोई बदलाव किए राष्ट्रपति के पास भेज दिया जाता है, तो उस पर राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर करने ही होंगे। हालांकि, यहां एक अपवाद भी है कि राष्ट्रपति द्वारा धन विधेयक(Money Bill) को वापस नहीं भेजा जा सकता है।
पॉकेट वीटो (Pocket Veto)
यह सबसे शक्तिशाली वीटों में गिना जाता है। इसमें राष्ट्रपति द्वारा न ही बिल को स्वीकार किया जाता है और न ही अस्वीकार किया जाता है। साथ ही, राष्ट्रपति इसे संसद में भी वापस भी नहीं भेजते हैं। राष्ट्रपति द्वारा बिल को एक अनिश्चितकाल के लिए अपनी ‘जेब’ में रख लिया जाता है। क्योंकि, संविधान में यह नहीं लिखा है कि राष्ट्रपति को कितने समय में बिल पर फैसला लेना है।
इस मामले में राष्ट्रपति स्वतंत्र है। इसे उदाहरण से समझें, तो साल 1986 में एक ऐसा मामला सामने आया था। तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह द्वारा भारतीय डाक संशोधन विधेयक के खिलाफ इस वीटो शक्ति का इस्तेमाल किया गया था, जिसमें राष्ट्रपति द्वारा इसे निजता का हनन बताया था और वीटो शक्ति लगा दी थी।
रोचक तथ्यः अमेरिका से बड़ी ‘जेब’ भारत के राष्ट्रपति की कही जाती है। क्योंकि, अमेरिका में राष्ट्रपति को 10 दिनों में बिल वापस करना है, लेकिन भारतीय संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
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