प्रचंड गर्मी से राहत की कड़ी में भारत के विभिन्न क्षेत्रों में इस समय बारिश की हल्की फुहारें पड़ रही हैं। इसे प्री-मानसून के तौर पर देखा जा रहा है, जो कि मानसून आने से पहले का समय होता है।
यह आमतौर पर मार्च से मई तक चलती है। इस दौरान बीच-बीच में बारिश की हल्की फुहारें गर्मी से राहत देने का काम करती हैं। इस लेख में हम प्री-मानसून और भारत में इसे कहे जाने वाले अलग-अलग नामों के बारे में जानेंगे।
क्या होता है प्री-मानसून
प्री-मानसून वास्तविक मानसून से पहले का समय होता है। भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक, प्री-मानसून की अवधि मार्च से मई तक होती है। ऐसे में इस दौरान होने वाली बारिश को प्री-मानसून बारिश के तौर पर भी जाना जाता है।
प्री-मानसून की मुख्य विशेषताएं क्या हैं-
समय अवधि: भारत में यह मार्च से लेकर मई तक होती है। लेकिन, उत्तर-पश्चिम भारत के हिस्सों में इसकी अवधि जुलाई तक होती है।
तापमान: यह बारिश तब होती है, जब वातावरण में अधिक गर्मी दर्ज की जाती है। इस दौरान दिन और रात का तापमान अधिक दर्ज किया जाता है। वहीं, मई में तो प्रचंड गर्मी का दौर शुरू हो जाता है। ऐसे में राहत के तौर पर यह महत्त्वपूर्ण है। साथ ही, कृषि के लिए भी इसका उतना ही महत्त्व है।
क्या होते हैं कारण
प्री-मानसून मुख्य रूप से स्थानीय कारकों पर निर्भर करता है। वातावरण में गर्मी अधिक होने की वजह से हवा गर्म होकर ऊपर उठती है और नमी को सोख लेती है, जिससे संवहन(Convection) होता है व बारिश दर्ज की जाती है।
गरज और बिजली के साथ होती है बारिश
प्री-मानसून वर्षा आमतौर पर बिजली और गरज के साथ होती है। इस दौरान धूल भरी आंंधियां चलती हैं। भारत के उत्तरी मैदानों में अधिक धूल भरी आंधी दर्ज की जाती है।
कुछ समय के लिए होती है बारिश
प्री-मानसून बारिश लंबे समय तक नहीं होती है, बल्कि यह कुछ समय के लिए होती है। वहीं, यह एक साथ पूरे एरिया को कवर नहीं करती है, बल्कि बिखरी हुई होती है।
भारत में अलग-अलग नामों से है पहचान
भारत के विभिन्न हिस्सों में प्री-मानसून वर्षा को स्थानीय नामों से जाना जाता है, जो कि इस प्रकार हैंः
मैंगो शावर: दक्षिण भारत के केरल और कर्नाटक में प्री-मानसून वर्षा आमों को जल्दी पकने में मदद करती है। ऐसे में इन्हें "मैंगो शावर" कहा जाता है।
काल बैसाखी: पश्चिम बंगाल और असम में यह चावल, जूट और चाय की खेती के लिए जरूरी होती है। यहां इन्हें काल बैसाखी कहा जाता है।
बारडोली चीरहा : असम में प्री-मानसून वर्षा को "बारडोली चीरहा" के नाम से भी जाना जाता है।
ब्लॉसम शावर: केरल में प्री-मानसून वर्षा कॉफी के फूलों को खिलने में मदद करती है। ऐसे में इन्हें ब्लॉसम शावर के तौर पर भी जाना जाता है।
टी शावर: असम और पश्चिम बंगाल में ये चाय के बागानों के लिए फायदेमंद है, इसलिए इन्हें टी-शावर भी कहा जाता है।
क्या रहती है हवा की दिशा
प्री-मानसून में उत्तर-पश्चिम से आने वाली हवाएं दक्षिण-पश्चिम से आने वाली नम हवाओं के साथ मिलती हैं, जिससे एक विशेष जोन बनता है और यह तूफान का कारण बनता है।
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