उत्तर प्रदेश सरकार ने अप्रैल 2020 माह में सैलरी, पेंशन इत्यादि पर कुल 12000 करोड़ रुपये खर्च किये थे जबकि इसी माह में इसकी आय केवल 2284 करोड़ रुपये थी.
इसी प्रकार की आर्थिक दशा भारत के लगभग सभी राज्यों की थी. इसलिए कोरोना की लड़ाई और राज्यों के अन्य खर्चों को पूरा करने के लिए राज्यों ने केंद्र से मांग की थी कि उन्हें इस बात की अनुमति दी जाये कि वे राज्य के सकल घरेलू उत्पाद के 4% के बराबर उधार ले सकें.
अर्थात उन्हें राजकोषीय घाटा जो कि FRBM एक्ट के कारण राज्य की जीडीपी का 3% हो सकता है उसे 4% करने की इज़ाज़त दी जाये.
मुख्य मुद्दे की बात करने से पहले राजकोषीय घाटा और FRBM एक्ट के बारे में जानना जरूरी है.
राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit): राजकोषीय घाटा वह समग्र घाटा है जो कि वास्तव में सरकार की समस्त बजटरी आय तथा समग्र बजटरी व्यय से उत्पन्न कुल देयता दिखाता है. भारत में राजकोषीय घाटा का कांसेप्ट शुरू करने का श्रेय मनमोहन सिंह को जाता है.
इसे इस प्रकार भी लिख सकते हैं:-
राजकोषीय घाटा = (सम्पूर्ण व्यय – सम्पूर्ण प्राप्तियां)+सरकारी दायित्व
अर्थात यदि सरकार, अपनी राजस्व प्राप्तियों से अधिक व्यय कर रही है तो व्यय आधिक्य को राजकोषीय घाटा कहेंगे. यदि सरकार की आय 90 करोड़ रूपये है और उसका खर्च 100 करोड़ है तो सरकार को इस खर्चे को पूरा करने के लिए 10 करोड़ रूपये उधार लेने होंगे. अतः सरकार द्वारा लिया गया ऋण ही राजकोषीय घाटा कहलाता है.
राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन एक्ट (FRBM Act, 2003)
इस कानून को भारतीय संसद द्वारा 26 अगस्त 2003 को पारित किया गया था जबकि इसे 5 जुलाई 2004 से लागू किया गया था. इसका उद्देश्य वित्तीय अनुशासन को संस्थागत बनाना, भारत के राजकोषीय घाटे को कम करना, वृहद आर्थिक प्रबंधन और सार्वजनिक धन के प्रबंधन में सुधार करना था.
इस एक्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों के लिए राजकोषीय घाटा की सीमा को GDP के 3% पर फिक्स कर दिया था.
इसमें यह प्रावधान था कि 31 मार्च 2008 तक राजकोषीय घाटे को जीडीपी के कम से कम 3% तक लाया जाना चाहिए और इसमें न्यूनतम वार्षिक कमी जीडीपी की 0.3% करने का लक्ष्य रखा गया था.
इसके साथ ही इसमें राजस्व घाटा को 31 मार्च 2009 तक पूरी तरह ख़त्म करने का लक्ष्य रखा गया था. ध्यान रहे कि इस एक्ट के लक्ष्यों में हर बजट में परिवर्तन किया जाता है.
वर्तमान में केंद्र द्वारा राज्यों को इसी एक्ट के तहत अब ज्यादा उधार लेने की छूट दे दी गयी है. यानी कि अब राज्य अपनी GDP के 5% तक उधार ले सकते हैं जो कि पहले 3% था.
भारत के राज्यों की GDP का आकार इस प्रकार है;
महाराष्ट्र की GDP पूरे देश में सबसे ज्यादा है अर्थात अब FRBM एक्ट के तहत महाराष्ट्र कुल 1 लाख करोड़ का उधार ले सकता है और तमिलनाडु 60 हजार करोड़ रुपये उधार ले सकता है. इससे ज्यादा रुपया ये राज्य उधार नहीं ले सकते हैं.
यदि वर्तमान लिमिट के हिसाब से देखा जाये तो सभी राज्य, वित्त वर्ष 2020-21 के लिए कुल 6.41 लाख करोड़ रुपये उधार ले सकते हैं.
लेकिन कोरोना के कारण राज्यों की आय काफी कमी हुई है और वे अपने कामों को ठीक से नहीं कर पा रहे हैं, इसलिए केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों की उधार लेने की सीमा को 3% से बढाकर 5% कर दिया है इससे अब राज्य कुल 11 लाख करोड़ रुपये उधार ले सकेंगे जो कि पहले की तुलना में 4.28 लाख करोड़ ज्यादा है. ध्यान रहे कि यह छूट केवल वित्त वर्ष 2020-21 के लिए है.
क्या राज्य सरकारें या उधार लिया धन कहीं भी खर्च कर सकतीं हैं?
नहीं, इसके लिए केंद्र सरकार ने दिशा निर्देश जारी किये हैं.
1.यदि राज्य, GDP के 3% से केवल 0.5% अधिक खर्च करना चाहते है, तो किसी भी मद पर खर्च कर सकते हैं लेकिन अगर 3.5% से आगे भी 1% और ज्यादा खर्च करना चाहते हैं तो इसे चार भागों में (0.25%,0.25%,0.25%,0.25%), में बाँटना होगा और केवल ‘वन नेशन वन राशन कार्ड, ईज ऑफ़ डूइंग बिज़नेस, पॉवर डिस्ट्रीब्यूशन और अर्बन लोकल बॉडी में हर एक पर केवल पर 0.25% खर्च किया जा सकता है.
2. अगर राज्य सरकार 3%+.5%+1% के बाद बकाया का 0.5% भी खर्च करना चाहती हैं तो ऐसा तभी कर सकती हैं जब उपर दिए गए 4 लक्ष्यों में से 3 प्राप्त कर लिए हों.
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि केंद्र सरकार ने राज्यों को मुसीबत में उधार लेने की छूट तो दे दी है लेकिन इस बात का भी ख्याल रखा है कि राज्य फिजूलखर्ची ना करें.
उम्मीद है कि इस लेख को पढने के बाद आपको समझ आ गया होगा कि राज्यों को ज्यादा उधार लेने की छूट क्यों दी गयी है और इसके क्या फायदे निकट भविष्य में प्राप्त हो सकते हैं?
Mutual Fund: मीनिंग, प्रकार और अर्थव्यवस्था के विकास में भूमिका
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