वस्तुओं की कीमतें 99 या 999 रुपये आदि में क्यों लिखी जातीं हैं?

Feb 28, 2018, 19:05 IST

वस्तुओं की कीमतों को 99 या 999 रुपये आदि में लिखा जाता है. ऐसा क्यों होता है, इससे किसको फायदा होता है आदि के बारे में इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं.

Why do prices of products end with .9, .99 ?
Why do prices of products end with .9, .99 ?

अकसर किसी मॉल में या शॉप में आपने शौपिंग करते वक्त प्राइस टैग पर 399, 599 रुपये आदि लिखा देखा होगा. यानी एक रुपये कम होता है, ऐसा क्यों होता है. आखिर ऐसा क्यों किया जाता है. क्यों विक्रेता (sellers) एक रुपये कम करके प्राइस टैग लगाते है. इससे उनको कैसे और क्या फायदा होता है. 299 रुपये वाले सामान को 300 रुपये का भी तो कर सकते थे, इससे राउंड फिगर भी हो जाती और पैसे वापिस करने की जरुरत भी नहीं होती. आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं की ज्यादातर प्राइस टैग पर कीमत को एक रुपये कम करके क्यों लिखा जाता है.
वस्तुओं की कीमतें 99 या 999 रुपये आदि में क्यों लिखी जातीं हैं?
इस बात को नज़र अंदाज नहीं किया जा सकता हैं कि एक रुपये कम करके लिखने से विक्रेता (seller) को बहुत फायदा होता है. परन्तु कैसे? इसके पीछे दो मुख्य कारण हो सकते हैं, आइये देखते है उन कारणों को..
1. फ्रीड-हार्डमेन यूनिवर्सिटी, हेंडरसन (Freed-Hardeman University in Henderson) के मार्केटिंग के एक सहयोगी प्रोफेसर Lee E. Hibbett के अनुसार एक रुपये कम करना एक psychological market strategy होती है यानी मनोवैज्ञानिक तरीके से ग्राहक को उस सामान को खरीदने के लिए तैयार करना. जैसे किसी मॉल में शौपिंग करते वक्त एक सूट पसंद आजाता है और उस पर प्राइस टैग होता है 799 रुपये का. क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि जब हम किसी नंबर को पढ़ते है तो लेफ्ट से राईट करते है ताकि उस नंबर की रेंज (range) पता चल सके. इसको और अच्छे से समझने की कोशिश करते है. मान लीजिये किसी ने बताया की उसका AC  24,490 रुपये का आया था, तो हमारा माइंड या दिमाग सेट होता है कि AC 24,000 रुपये का आया है. क्योंकि हमने लेफ्ट वाली फिगर (figure) पर ध्यान दिया है. बाकि 490 को 24,000 कुछ रुपये मान कर छोड़ दिया. इसी प्रकार से जब लोग प्राइस टैग पर 799 रुपये देखेंगे तो कुछ लोग उसको 800 रूपये ही मानकर खरीदने का निर्णय लेंगे पर कुछ लोग ऐसे भी होंगे जो लेफ्ट की फिगर देख कर 700 कुछ रुपये मानकर उसे खरीदने का निर्णय लेंगे. बस विक्रेताओं (seller) को ऐसे ही लोगो का इंतेज़ार रहता है.
तो यानी ये एक psychological market strategy के तहत ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए और अपनी बिक्री को बढ़ाने के लिए प्राइस टैग पर एक रुपये कम करके दाम को लिखते हैं.

Why Price tags end with 999

Source:download.com

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2. दूसरा कारण यह हो सकता है कि एक रुपये कम लिखकर विक्रेता (seller) का ही फायदा होता है. आइये जानते हैं कैसे?
जब हम किसी सुव्यवस्थित रिटेलर आउटलेट पर 799 रुपये का सामान खरीदतें है तो ज्यादातर पेमेंट करते वक्त हम एक रुपये वापिस नहीं लेते है और छोड़ देते है, यह सोच कर की इतनी बड़ी जगह से सामान खरीद रहें है और एक रुपये के लिए काउंटर पे खड़े है. इसलिए हम काउंटर वाले व्यक्ति को बोल देते है कि रख लो भाई और कभी-कभी काउंटर वाला व्यक्ति एक रुपये की जगह कोई मामूली सी टॉफी दे देता है. क्या आप जानते है ऐसा करने में भी विक्रेता का ही फायदा है वो ऐसे की लगभग 100 टॉफी का पैकेट मात्र 25 या 30 रुपये में आजाता होगा और इस तरह से उनकी 25 या 30 रुपये की टॉफी 100 रूपये में बिक जाती हैं, इस तरह से भी हो गया न उनका फायदा. कभी-कभी हम टॉफी देखकर लेते भी नहीं है कि ये टॉफी अच्छी नहीं है और उसको छोड़ देते है, इस तरह से भी उनका फायदा हो जाता है.
उदाहरण: मान लीजिये किसी कंपनी के भारत में 150 रिटेल आउटलेट है और हर आउटलेट पर औसत 100 कस्टमर एक रुपये वापिस नहीं लेते तो 365 दिनों में ---- 150 *100 *365 = 54,750,00 या 54 लाख रूपये से ज्यादा हुआ.
यानी की 54,750,00 रुपये हम लोग छोड़ देते है, जो कि किसी भी बुक ऑफ अकाउंट में रिकॉर्ड नहीं होते हैं. मतलब ये एक प्रकार की ब्लैक मनी हुई क्योंकि इस मनी की किसी भी बिल पर कोई एंट्री नहीं होती है. इसलिए फायदा हर तरह से विक्रेता (seller) का ही हो जाता है. तो अब आगे से एक रुपया वापिस लेना न भूले और न ही छोड़े.
यहां तक की एरिक एंडरसन (Eric Anderson), नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के केलॉग स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट में मार्केटिंग के प्रोफेसर और डंकन सिमेस्टर (Duncan Simester), एम.आई.टी. के स्लोअन स्कूल ऑफ मैनेजमेंट में प्रबंधन लेख के प्रोफेसर, ने अपने लेख में लिखा की जब हमने एक विक्रेता से अपने प्राइस टैग पर एक रूपये बढ़ाने के लिए कहा क्योंकि आप आम तौर पर कीमतों में बढ़ोतरी के लिए एक वस्तु की मांग की उम्मीद करते हैं तो विक्रेता संतुष्ट नहीं हुआ क्योंकि रियायती वस्तु (discounted item) दिखाने से ही बिक्री अच्छी होती है. साथ ही लिखते हैं कि जब दाम को $34 से  $39 किया तो वह मांग में वृद्धि करने में सक्षम रहे परन्तु जब उन्होंने $34 से  $44 किया तो मांग में कोई वृद्धि नहीं हुई.
तो ये दो कारण होते है रिटेल आउटलेट के केस में. परन्तु इस तरह के प्राइस ई-कॉमर्स वेबसाइट पर भी होते हैं मगर वहां सिर्फ पहला कारण ही काम करता है यानी मनोवैज्ञानिक वाला क्योंकि ऑनलाइन शौपिंग करते वक्त हम ज्यादातर पेमेंट डेबिट या क्रेडिट कार्ड, इंटरनेट बैंकिंग के द्वारा कर देते हैं और उतना ही करते है जितना प्राइस टैग पर लिखा होता है. इसलिए कह सकते है कि ई-कॉमर्स से शौपिंग करने से ब्लैक मनी नहीं बनती है.
उपरोक्त कारणों से आप समझ गए होंगे की क्यों सामान या वस्तु की कीमत को एक रुपये कम करके लिखा जाता है या वस्तुओं की कीमतें 99 या 999 रुपये आदि में क्यों लिखी जातीं हैं.

Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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