हर साल दिल्ली और आस-पास के इलाकों में अक्टूबर में एयर क्वालिटी में गिरावट क्यों आती है?

Oct 22, 2020, 16:47 IST

 जैसा की हम जानते हैं कि हर साल अक्टूबर आते ही दिल्ली और आस-पास के इलाकों कि हवा प्रदूषण के कारण जहरीली होनी शुरू हो जाती है, एयर क्वालिटी में गिरावट आ जाती है. ऐसा क्यों? आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं.

Why does Air Quality drop in October?
Why does Air Quality drop in October?

हर साल दिल्ली और आस-पास के इलाकों की एयर क्वालिटी में गिरावट आ जाती है, हवा, प्रदूषण के कारण जहरीली होनी शुरू हो जाती है.

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के अनुसार दिल्ली के प्रदूषण में पराली जलने से होने वाले धुएं का योगदान 4 प्रतिशत है.

सबसे पहले जानते हैं कि आखिर प्रदूषण होने के पीछे क्या कारण हो सकता है?

दिल्ली और आस-पास के इलाकों में हर साल अक्टूबर और नवम्बर में प्रदूषण काफी गंभीर स्तर तक पहुंच जाता है. ऐसा कहा जाता है कि इसके होने के पीछे हवा में प्रदूषक तत्वों का होना, मौसम और दूसरी अन्य परिस्थितियां जिम्मेदार हो सकती हैं.

हर साल अक्टूबर में आखिर प्रदूषण का स्तर क्यों बढ़ जाता है?

अक्टूबर आमतौर पर उत्तर पश्चिम भारत में मानसून की विदाई को चिह्नित करता है. मानसून के दौरान, हवाएं पूर्वी दिशा की ओर चलती हैं. ये हवाएँ, जो बंगाल की खाड़ी के ऊपर से जाती हैं अपने साथ नमी ले जाती हैं और देश के इस हिस्से में बारिश लाती हैं. यानी बंगाली की खाड़ी के ऊपर से चलने वाली ये हवाएं देश के इस हिस्से में बारिश और नमी लाती हैं. 

परन्तु मानसून के वापस लौटने पर हवाओं की दिशा बदलकर उत्तर-पश्चिमी हो जाती है. गर्मियों में हवाओं की दिशा उत्तर पश्चिमी होती है और राजस्थान और कई बार पाकिस्तान और अफगानिस्तान से अपने साथ भारी मात्रा में धूल उड़ाकर लाती है.

एक स्टडी के अनुसार सर्दियों में दिल्ली में 72 फीसदी हवाएं उत्तर-पश्चिम से आती हैं, जबकि बाकी 28 फीसदी इंडो-गंगा यानी उत्तरी मैदानी इलाकों से आती हैं. इसका मतलब कि इस सीजन में दिल्ली और आस-पास के इलाकों में ज्यादातर हवा धूल वाले इलाकों से आती हैं. 

2017 में जब तूफ़ान इराक, सऊदी अरब और कुवैत में आया था तब दिल्ली की एयर क्वालिटी में कुछ ही दोनों में गिरावट देखने को मिली थी यानि वायु गुणवत्ता को काफी प्रभावित किया था. 

किन प्लांट्स की मदद से घर के वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है?

जब तापमान में गिरावट होती है तब भी प्रदूषण बढ़ता है.

दिल्ली और इसके आस-पास के इलाकों में हवाओं की दिशा के साथ-साथ तापमान में गिरावट भी वायु प्रदूषण के स्तर को प्रभावित करती है. यानी जैसे-जैसे तापमान में गिरावट आती है, तापीय व्युत्क्रमण के कारण एक परत सी बन जाती है, जिसकी वजह से प्रदूषक वायुमंडल की उपरी या उपर की परत में विस्तारित नहीं हो पाते हैं और इसलिए ऐसा होने पर प्रदूषकों की सांद्रता बढ़ जाती है.

एक अन्य कारण हवा की धीमी रफ्तार का होना भी है.

प्रदूषक तत्वों को बिखेरने के लिए उच्च गति वाली हवाओं की जरूरत होती है परन्तु सर्दियों में इन हवाओं की रफ्तार धीमी रहती है जिसके कारण प्रदूषक तत्व लंबे समय तक एक स्थान पर इकट्ठे रहते हैं. ग्रीष्म ऋतु की तुलना में शीत ऋतु में हवा की गति में कमी आती है. इसलिए इन मौसम संबंधी कारकों के कारण दिल्ली और आस-पास के कई इलाकों में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है यह क्षेत्र प्रदूषण का शिकार हो जाते हैं.

इसके बाद पराली जलाने के कारण उससे होने वाला धुंआ और धूल भरी हवाएं दिल्ली और आस-पास के इलाकों में पहले से मौजूद प्रदूषण के स्तर में जुड़ जाते हैं और एयर क्वालिटी में और ज्यादा गिरावट आ जाती है.

IIT कानपुर के अध्ययन में 2015 में सामने आया कि सर्दियों में दिल्ली की हवा में मौजूद पार्टिकुलेट मैटर में से 17-26 प्रतिशत बायोमास जलाने के कारण आए हैं.

दिल्ली और आस-पास के इलाकों में प्रदूषण बढ़ने के अन्य कारक 

धूल और वाहनों से निकलने वाला धुंआ सर्दियों में दिल्ली में हवा को जहरीली बनाने के मुख्य कारण कहे जा सकते हैं. इन इलाकों में अक्टूबर और जून के बीच में बारिश कम होती है जिसके कारण यह धूल हवा में ही टिकी रहती है, मौसम भी ठंडा होता है और सम्पूर्ण क्षेत्र में धूल का प्रकोप भी बढ़ जाता है. IIT कानपुर के एक अध्ययन के अनुसार धूल PM 10 में 56 प्रतिशत  और PM 2.5 में 38 प्रतिशत की वृद्धि के लिए ज़िम्मेदार है.  IIT कानपुर के अध्ययन के अनुसार, सर्दियों में PM 2.5 का 20 प्रतिशत  वाहन प्रदूषण से आता है. 

साथ ही इस बात को भी नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता है कि वायु प्रदूषण के लिए प्राकृतिक और मानवीय दोनों कारक भी जिम्मेदार होते हैं. प्राकृतिक कारकों जैसे ज्वालामुखी क्रिया, वनाग्नि, कोहरा, परागकण, उल्कापात इत्यादि. यहीं अओको बता दें कि प्राकृतिक स्रोतों से उत्पन्न वायु प्रदूषण कम खतरनाक होता है क्योंकि प्रकृति में स्व-नियंत्रण की क्षमता होती है. 

मानवीय कारक जैसे वनोन्मूलन, कारखाने, परिवहन, ताप विद्युत गृह, कृषि कार्य, खनन, रासायनिक पदार्थ, अग्नि शस्त्रें का प्रयोग तथा आतिशबाजी द्वारा वायु प्रदूषण में भी वृद्धि हो रही है.

वायु प्रदूषण से क्या-क्या प्रभाव हो सकते हैं?

 - हवा में अवांछित गैसों के होने के कारण मनुष्य, पशुओं और पक्षियों को गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं या बीमारियाँ उत्पन्न हो सकती हैं. जैसे दमा, श्रवण शक्ति कमज़ोर होना, त्वचा रोग इत्यादि.

- अम्लीय वर्षा का खतरा भी वायु प्रदूषण के कारण बढ़ता है क्योंकि वर्षा के पानी में सल्फर डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड इत्यादि जैसी ज़हरीली गैसों के घुलने की संभावना बढ़ जाती है जो कि पेड़-पौधे, भवनों और ऐतिहासिक इमारतों को नुकसान पहुंचाती है.

- वायु प्रदूषण के बढ़ने से वातावरण में कार्बन-डाइऑक्साइड (CO2) की मात्रा बढ़ने की संभावना होती है जिससे पृथ्वी के तापमान में लगातार वृद्धि होगी और परिणामस्वरूप ध्रुवीय बर्फ, ग्लेशियर इत्यादि पिघलेंगे. जिससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़ आने को संभावनाएँ बढ़ जाएंगी और यदि वर्षा के पैटर्न में बदलाव हुआ तो इस के कारण कृषि उत्पादन भी प्रभावित होग, .इत्यादि.

Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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