भारत में सिक्कों का आकार क्यों घटता जा रहा है?

Jul 8, 2019, 21:24 IST

देश में करेंसी नोटों को छापने के कार्य रिज़र्व बैंक के द्वारा किया जाता है जबकि सिक्कों को बनाने का काम वित्त मंत्रालय के द्वारा किया जाता है. भारत सरकार कोशिश करती है कि किसी भी सिक्के की मेटलिक वैल्यू उसकी फेस वैल्यू से कम ही रहे क्योंकि यदि ऐसा नही होगा तो लोग सिक्के को पिघलाकर उसकी धातु को बाजार में बेच देंगे जिसके कारण भारत के बाजर से सिक्के गायब हो जायेंगे. सिक्कों की मेटलिक वैल्यू घटाने के लिए सरकार उनका आकार छोटा कर रही है.

Evolution of coins in India
Evolution of coins in India

ज्ञातव्य है कि वित्त मंत्रलाय देश के सिक्के बनाने काम रिज़र्व बैंक से नहीं करवाता है लेकिन देश में नोटों और सिक्कों को पूरी आर्थव्यवस्था में फ़ैलाने का काम रिज़र्व बैंक के द्वारा ही किया जाता है.

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) भारत की सबसे बड़ी मौद्रिक संस्था है. RBI देश की अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ती को नियंत्रित करता है. यदि देश में मुद्रा की पूर्ती अधिक है तो यह पॉलिसी रेट जैसे नकद आरक्षी अनुपात (CRR),बैंक रेट और रेपो रेट में बढ़ोत्तरी करके मुद्रा को अर्थव्यवस्था से बाहर निकाल लेता है और यदि पूर्ती बढ़ानी होती है तो मुख्य पॉलिसी रेट में कमी कर देता है.

भारत में एक रुपये के नोट को छोड़कर सभी नोटों की छपाई का काम RBI ही करता है लेकिन 1 रुपये के नोट और सभी सिक्कों को ढालने की जिम्मेदारी वित्त मंत्रालय के ऊपर है. हालाँकि वित्त मंत्रालय एक रूपए के नोट और सिक्कों को अर्थव्यवस्था में RBI में माध्यम से ही बांटता है.
भारत में सिक्के कहाँ बनाये जाते हैं?
भारत में चार जगहों पर सिक्के ढाले जाते हैं:
1. मुंबई
2. कोलकाता
3. हैदराबाद
4. नोएडा

MINT in india
नोट: मुंबई और कलकत्ता मिंट की स्थापना अंग्रजों ने 1829 में की थी जबकि हैदराबाद मिंट की स्थापना हैदराबाद के निजाम ने 1903 में की थी जिसे 1950 में भारत सरकार ने अपने कब्जे ले लिया था और इसने 1953 से सिक्के भारत सरकार के लिए ढालने शुरू किये थे. सबसे अंतिम मिंट की स्थापना भारत सरकार ने 1986 में उत्तर प्रदेश के नॉएडा में स्थापित की थी और यहाँ पर 1986 से सिक्के ढाले जा रहे हैं.

यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि ऊपर दी गयी 3 मिंट अपने ढाले गए सिक्कों पर एक निशान बनाते हैं जिसकी मदद से आप यह जान सकते हैं कि कौन सा सिक्का किस मिंट में ढाला गया है.

निशान से पता चलता है कहां ढला है सिक्का ?
हर सिक्के पर एक निशान छपा होता है जिसको देखकर आपको पता चल जाएगा कि यह किस मिंट का है. यदि सिक्के में छपी तारीख के नीचे एक स्टार नजर आ रहा है तो ये चिह्न हैदराबाद मिंट का चिह्न है. नोएडा मिंट के सिक्कों पर जहां छपाई का वर्ष अंकित किया गया है उसके ठीक नीचे छोटा और ठोस डॉट होता है. मुंबई में ढाले गए सिक्के पर डायमंड का निशान होता है जबकि कलकत्ता मिंट किसी भी निशान को नही बनाती है.

अब सबसे बड़ा प्रश्न लोगों के दिमाग में यह आता है कि आखिर वित्त मंत्रालय सिक्कों का आकार साल दर साल घटाता क्यों जा रहा है और सिक्कों में इस्तेमाल होने वाली धातु भी बदल क्यों रही है.

metal used in indian coins

भारत की करेंसी नोटों का इतिहास और उसका विकास
जब भारत सरकार के पास ज्यादा सिक्के ढालने की मशीनरी नही थी तो कई विदेशी टकसालों में भारत के सिक्के ढलवाए गए और फिर उनका आयात भारत में किया गया था.

भारत ने 1857-58, 1943, 1985, 1997-2002 के दौरान सिक्कों का आयात किया था. इस समय तक सिक्के ताम्र निकल (Cupro Nickel) के बनाये जाते थे. लेकिन 2002 के बाद जब ताम्र निकल की कीमतों में वृद्धि हो गयी तो सिक्कों को बनाने की लागत भी बढ़ गई इस कारण सरकार को सिक्के बनाने के लिए "फेरिटिक स्टेनलेस स्टील" का प्रयोग करना पड़ा और वर्तमान में सिक्के इसी स्टील से बनाये जा रहे हैं. "फेरिटिक स्टेनलेस स्टील" में 17% क्रोमियम और 83% लोहा होता है.

सिक्कों का आकार छोटा क्यों किया जा रहा है?

दरअसल किसी भी सिक्के की दो वैल्यू होतीं हैं; जिनमे एक को कहा जाता है सिक्के की “फेस वैल्यू” और दूसरी वैल्यू होती है उसकी “मेटलिक वैल्यू”.

सिक्के की फेस वैल्यू: इस वैल्यू से मतलब उस सिक्के पर “जितने रुपये लिखा” होता है, वही उसकी फेस वैल्यू कहलाती है; जैसे अगर किसी सिक्के पर 1 रुपया लिखा होता तो उसकी फेस वैल्यू 1 रुपया ही होती है.

1 rupee coin
सिक्के की मेटलिक वैल्यू: इसका मतलब है सिक्का जिस धातु से बना है अगर उस सिक्के को पिघला दिया जाये तो उस धातु की मार्किट वैल्यू कितनी होगी.

“अब आप यह बात आसानी से समझ सकते हैं कि सरकार सिक्कों को छोटा क्यों कर रही है.”

अगर मान लो कि किसी सुनार/व्यक्ति के पास 1 रुपये का ऐसा सिक्का है जिसे यदि पिघला दिया जाये और उस धातु को बाजार में 2 रुपये में बेच दिया जाये तो उसको 1रुपये का फायदा हो जायेगा. 

अब यदि सभी लोग सिक्का पिघलाकर बाजार में बेच देंगे तो सिक्के बाजार से गायब हो जायेंगे जो कि सरकार और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए बहुत ही घातक स्थिति होगी. यही कारण है कि सरकार कोशिश करती है कि किसी भी सिक्के की मेटलिक वैल्यू उसकी फेस वैल्यू से कम ही रहे ताकि लोग सिक्के को पिघलाने की कोशिश ना करें क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें घाटा उठाना पड़ेगा. जै

से अगर किसी ने 2 रुपये का सिक्का (फेस वैल्यू) पिघला दिया और उस धातु को बाजार में बेचने पर उसे सिर्फ 1 रूपया (मेटलिक वैल्यू) मिला तो उसको 1 रुपये का घाटा हो जायेगा.  

अतः बाजार में सिक्कों की उपलब्धता बनाये रखने के लिए सरकार हर साल सिक्के का आकार घटाती रहती है और उनको बनाने में सस्ती धातु का प्रयोग करती है.

नोट: भारत में सुनारों (Goldsmith)ने पुराने सिक्कों को पिघलाकर चांदी के गहनों में खूब इस्तेमाल किया था इसलिए आज ये सिक्के बाजार में नजर नही आते हैं. ख़बरों में ये बात भी सामने आई है कि भारत के पुराने सिक्के बांग्लादेश में तस्करी किये जाते हैं क्योंकि इस धातु से वहां पर “ब्लेड” बनाये जाते हैं.

इस प्रकार आपने पढ़ा कि भारत में सिक्कों के आकार में कमी और धातु में परिवर्तन क्यों किया जा रहा है. उम्मीद है कि आप इसके पीछे पीछे तर्क को समझ गए होंगे.

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Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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