वर्ष 1989-91 की अवधि में भारत में आर्थिक अस्थिरता की वजह से कोई भी पंचवर्षीय योजना जारी नहीं रखी गयी. 1990 और 1992 की अवधि के बीच, भारत में वार्षिक योजना को जारी रखा गया था.
वर्ष 1991 की अवधि में भारत में विदेशी मुद्रा भंडार में काफी कमी आ गयी थी जिसके वजह से भारत को इस रूप में आपदा का सामना करना पड़ा था. इस दौरान भारत के विदेशी खजाने में सिर्फ 1 अरब डॉलर का भंडार बचा था. इसलिए
भारत सरकार ने दबाव में भारत की समाजवादी अर्थव्यवस्था में सुधार के खतरे को मोल लिया.
पीवी नरसिंह राव इस समय भारत के 12 वें प्रधानमंत्री थे साथ ही कांग्रेस पार्टी के प्रमुख भी थे. उनके प्रधान्मंत्रित्व काल में भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करने वाले और भारत की प्रमुख आर्थिक घटनाओ से सम्बंधित बदलाव के सन्दर्भ में अनेक कदम उठाये गए थे.
इसी समय भारत के वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने भारत के मुक्त बाजार सुधारों की प्रक्रिया की शुरूआत की जिसके वजह से भारत की अर्थव्यवस्था जोकि पूरी तरह से दिवालिया हो चुका था वापस पटरी पर आया. इसी समय भारत में उदारीकरण और निजीकरण की प्रक्रिया को भी प्रारंभ किया गया था.
उद्योगों के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया आठवीं पंचवर्षीय योजना का एक प्रमुख आकर्षण था. इस योजना के तहत, भारतीय अर्थव्यवस्था के स्थिर विकास को एक सहारा मिला और विदेशी कर्ज दूर करने के लिए अनेक कदम उठाये गए.
इस बीच, भारत 1जनवरी 1995 को विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बन गया. इस योजना आर्थिक विकास के सन्दर्भ में इस योजना को राव-मनमोहन मॉडल के रूप में जाना जाता है.
आठवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान, लक्षित 5.6 प्रतिशत वार्षिक विकास दर की तुलना में 6.78 प्रतिशत की औसत वार्षिक विकास दर हासिल की गयी थी.
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