जनगणना-2011
भारत में प्रत्येक दस वर्र्षों के अंतराल में जनगणना का काम होता है। भारतीय जनगणना-2011 के लिए देश के समस्त निवासियों की गणना का कार्य 1 अप्रैल, 2010 से आरंभ हो गया। ऐसी आशा की जा सकती है कि मार्च 2011 तक देश की कुल जनसंख्या के नए अनुमान प्राप्त हो जाएंगे।
बदल गए हैं उद्देश्य
आज से कुछ दशक पहले जनगणना का उद्देश्य कुछ अलग हुआ करता था, लेकिन समय बदलने के साथ-साथ इसकी दिशा व उद्देश्य पूरी तरह से बदल चुके हैं। वर्तमान में जनगणना से आशय मात्र देश के निवासियों की गिनती करना ही नहीं है, बल्कि वर्तमान में जनगणना देशवासियों के जननांकीय स्वरूप, आर्थिक गतिविधियों, सारक्षता व शिक्षा, आवास व उनमें उपलब्ध मूलभूत सुविधाएं, नगरीकरण की दशा व दिशा, जन्म व मृत्यु दर, धर्म व जातिगत संरचना इत्यादि महत्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक आंकड़ों का सबसे विश्वसनीय स्रोत है। जनगणना की सहायता से सरकारें अपने सामाजिक सरोकार के कार्यक्रमों को लागू करती हैं। जनगणना के आंकड़ों की सहायता से सरकारें व देशवासी यह देखते हैं कि देश ने किन-किन क्षेत्रों में तरक्की की है और किन क्षेत्रों में अभी और तरक्की की जरूरत है। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात है कि जनसंख्या के आंकड़ों से भारत में पंचवर्षीय योजनाएं तैयार की जाती हैं।
भारत की जनगणना-2011 पिछली जनगणनाओं से काफी भिन्न और व्यापक सरोकारों वाली है। इसी वजह से कई पहलुओं को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने इस बार की जनगणना के लिए च्हमारी जनगणना हमारा भविष्यच् थीम निर्धारित की है।
2070 में स्थिर होगी देश की जनसंख्या
सन 2000 की राष्ट्रीय जनसंख्या नीति में सन 2045 तक देश की जनसंख्या को स्थिर करने का दीर्घकालिक लक्ष्य रखा गया था। इसके लिए कई पड़ाव भी निश्चित किए गये थे जैसे सन 2010 तक देश की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate) 2.1 तक नीचे लाने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन दुर्भाग्यवश यह लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सका है और वर्तमान में देश की कुल प्रजनन दर 2.8 है। कुल प्रजनन दर के लक्ष्य को न प्राप्त कर पाने के पीछे मुख्य कारण उत्तर व मध्य भारत के प्रदेश हैं जहां की प्रगति इस दिशा में काफी कम है।
इस परिस्थिति को देखते हुए अब देश की जनसंख्या 2045 तक स्थिर नहीं हो पाएगी। अब यह लक्ष्य 2070 तक ही प्राप्त किया जा सकेगा। लेकिन तब तक देश की जनसंख्या 170 करोड़ तक पहुँच चुकी होगी।
कुल प्रजनन दर: विशेष तथ्य
- कुल 14 राज्यों में प्रजनन दर में गिरावट दर्ज की गई है। इन राज्यों में 2.1 प्रजनन दर का लक्ष्य हासिल किया जा चुका है।
- उत्तर व मध्य भारत के अधिकांश राज्य इस लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल रहे हैं। यहां कुल प्रजनन दर 3-3.9 के मध्य है।
जातिगत जनगणना
भारत की जनगणना-2011 का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि केेंद्र सरकार ने कई दलों के दबाव के सामने झुकते हुए जातिगत जनगणना करवाने का निश्चय किया है। जातिगत संरचना की जानकारी के लिए जातीय गणना राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर तैयार करने के बाद जून-सितंबर 2011 के दौरान कराई जाएगी। इसका फैसला प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में केद्रीय मंत्रिमंडल की 9 सितंबर, 2010 की बैठक में किया गया। समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल व जनता दल(यूनाईटेड) जैसे दलों ने पिछड़े वर्ग की जातियों के आंकड़े जानने के लिए जातिगत गणना जनगणना के साथ ही कराने के लिए दबाव सरकार पर बनाया था। यहां पर गौरतलब है कि देश में स्वतंत्रता के बाद से कभी भी जनगणना में जाति का पता लगाने का कॉलम नहीं रहा। यद्यपि अनुसूचित जाति व जनजाति की जनगणना अवश्य की जाती थी। हमारे यहां स्वतंत्रता के पहले जातिगत आंकड़े भी एकत्रित किए जाते थे। देश में जनगणना के अंतिम बार जातिगत आंकड़े वर्ष 1931 में एकत्रित किए गए थे। हालांकि वर्ष 1941 में हुई जनगणना में विवरण को हटा दिया गया। लेकिन इस बार जनगणना शुरू होने के बाद भी कई राज्य सरकारों, राजनीतिक दलों इत्यादि ने दबाव डाला कि जातिगत आंकड़ें भी इकठ्ठा किए जाए। इसका परिणाम यह रहा कि खुद प्रधानमंत्री ने संसद के बजट सत्र में स्वतंत्र भारत में पहली बार जाति आधारित आंकड़े एकत्रित करने की घोषणा कर दी।
क्या है जनगणना? यह कैसे महत्वपूर्ण है?
भारतीय जनगणना जननांकीय (जनसंख्या विशेषताएं), आर्थिक गतिविधियों, साक्षरता और शिक्षा, आवास और घरेलू सुविधाओं, शहरीकरण की प्रवृत्ति, जन्मदर व मृत्युदर, अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति, भाषा, धर्म, प्रवजन और कई महत्वपूर्ण सामाजार्थिक आंकड़ों की सबसे विश्वसनीय सूचना का स्रोत है। भारत में सर्वप्रथम जनगणना 1872 में ब्रिटिश शासन के दौरान हुई थी। जनगणना-2011 देश की 15वीं राष्ट्रीय जनगणना है। इसके द्वारा ग्राम, टाउन व वार्ड के स्तर पर विश्वसनीय प्राथमिक आंकड़े प्राप्त होते हैं। केेंद्र व राज्य सरकारें इन्हीं आंकड़ों के आधार पर अपनी योजनाएं तैयार करती हंै और नीतियों का निर्धारण करती हैं। जनगणना के आंकड़ों का प्रयोग राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर की एजेंसियों, विद्वानों, उद्योगपतियों और अन्य लोगों द्वारा किया जाता है। लोकसभा, विधानसभाओं, पंचायत व स्थानीय निकायों के चुनाव क्षेत्रों के परिसीमन व आरक्षण का कार्य भी जनगणना के आंकड़ों के आधार पर ही किया जाता है।
क्या है राष्ट्रीय जनगणना रजिस्टर? इसका क्या प्रयोग है?
राष्ट्रीय जनगणना रजिस्टर देश के मूल निवासियों का रजिस्टर है। इसमें देश के लोगों की पहचान का लेखाजोखा दिया जा रहा है, जिसके द्वारा सरकारें आने वाले वक्त में अपने कार्यक्रमों, नीतियों को बेहतर तरीके से लागू करके इस बात का आंकलन कर सकती है, क्या उनके द्वारा बनाई गई योजनाओं का लाभ लक्षित समूहों को मिल रहा है। राष्ट्रीय जनगणना रजिस्टर को पहली बार देश में तैयार किया जा रहा है।
जनगणना व राष्ट्रीय जनगणना रजिस्टर किस कानून के आधार पर तैयार किये जा रहे हैं?
जनगणना एक सांविधिक प्रक्रिया है जिसे जनगणना कानून 1948 के प्रावधानों के अंतर्गत संचालित किया जाता है। राष्ट्रीय जनगणना रजिस्टर नागरिकता कानून के प्रावधानों के अंतर्गत तैयार किया जा रहा है।
जनगणना की क्या प्रक्रिया है?
जनगणना एक प्रक्रिया में प्रत्येक परिवार से उसके बारे में सूचनाएं एकत्र की जाती है और एक जनगणना फॉर्म भरा जाता है। इस सूचना को पूरी तरह से गुप्त रखा है। यहां तक कि अदालत तक को यह सूचना उपलब्ध नहीं कराई जाती है। फील्डवर्क के पूरा होने के बाद जनगणना फॉर्म को देश के 15 डेटा प्रोसेसिंग सेंटर्स में भेज दिया जाता है। डाटा प्रोसेसिंग का काम इंटेलीजेंट कैरेक्टर रिकॉग्निशन सॉफ्टवेयर (आईसीआर) द्वारा किया जाता है।
प्राचीन भारत में भी होती थी जनगणना
भारत में आधुनिक काल में सर्वप्रथम 1872 में जनगणना हुई थी। प्राचीन भारत में जनगणना के संदर्भ कौटिल्य और प्लूटॉमी द्वारा रचित ग्रन्थों में काफी विस्तार से उपलब्ध हैं। सम्राट अशोक से लेकर हर्षवद्र्धन के काल तक किसी न किसी रूप में जनगणना का काम होता था। मध्यकाल में अकबर के जमाने में भी जनगणना होने के प्रमाण उपलब्ध हैं।
जाति आधारित जनगणना के पक्ष व विपक्ष में तर्क
पक्ष में तर्क जातिगत आधारित जनगणना के पक्षधरों का कहना है कि देश में जाति एक सच्चाई है जिसकी उपस्थिति से इंकार नहीं किया जा सकता है। सरकार भी आरक्षण जाति के आधार पर देती है और उसकी तमाम योजनाएं भी विभिन्न जाति समूहों को लक्षित करके बनाई जाती हैं। ऐसे में जाति आधारित जनगणना से कमजोर वर्र्गों के बारे में लागू होने वाली योजनाओं को और भी अच्छी तरह से लागू किया जा सकेगा। साथ ही यह भी तर्क दिया जा रहा है कि यदि देश में अनुसूचित जाति-जनजाति की जनगणना की जा सकती है तो अन्य पिछड़े जातियों की क्यों नहीं।
विपक्ष मे तर्क
जाति आधारित जनगणना के विपक्ष में सबसे बड़ा तर्क यह है कि इससे देश में जाति व्यवस्था को एक बार फिर से बल मिलेगा। स्वतंत्रता के 63 वर्र्षों के बाद निश्चित रूप से जाति, धर्म, कुल, गोत्र इत्यादि के बंधन देश में ढीले पड़े हैं। आर्थिक उदारीकरण की बयार और मीडिया के प्रचार-प्रसार ने समाज के अलग-अलग हिस्सों को एक-दूसरे से रूबरु कराया है। इसका पूरा प्रभाव आज की नई पीढ़ी पर दिखाई दे रहा है जिसके लिए जाति, धर्म, कुल, गोत्र इत्यादि के बंधन ज्यादा मायने नहीं रखते हैं। हालांकि हमारी राजनीति आज भी लोगों को आपस में बांटो व राज करो की नीति पर कार्य कर रही है और अक्सर समाज के प्रतिगामी तत्वों के साथ खड़ी नजर आती है। जातिगत जनगणना के विरोधियों के अनुसार जातिगत जनगणना हमारे देश में आम जनता के बीच पनप रहे कॉस्मोपोलीटन कल्चर को नुकसान पहुँचा सकती है। जातीय गणना के रास्ते में सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि अनेक जातियों का दर्जा अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है। कोई जाति किसी राज्य में अन्य पिछड़ी जाति में शामिल है, तो किसी अन्य राज्य में यह अन्य पिछड़े जाति में शामिल नहीं है। ऐसे में सभी राज्यों के जातीय आंकड़े अलग-अलग एकत्र करके उनका अध्ययन करना होगा।
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