जलवायु परिवर्तन

जलवायु परिवर्तन हजारों लाखों सालों से मौसम के स्वरूप के सांख्यिकीय वितरण में एक महत्वपूर्ण और स्थायी परिवर्तन है | यह औसत मौसम की स्थिति में एक बदलाव हो सकता है, या औसत स्थिति (यानी, अधिक या कम चरम मौसम की घटनाओं) में  आसपास के मौसम के वितरण के बारे बताता  है।

Nov 17, 2015, 15:17 IST

जलवायु परिवर्तन हजारों लाखों सालों से मौसम के स्वरूप के सांख्यिकीय वितरण में एक महत्वपूर्ण और स्थायी परिवर्तन है | यह औसत मौसम की स्थिति में एक बदलाव हो सकता है, या सामान्य स्थिति (यानी, अधिक या कम चरम मौसम की घटनाओं) में  आसपास के मौसम के वितरण के बारे में हो सकती है।

पृथ्वी का तापमान एक संतुलनकारी प्रक्रिया है

पृथ्वी का तापमान सूर्य ऊर्जा के प्रवेश करने और पृथ्वी के पर्यावरण से वापिस जाने के अंतर पर निर्भर करता है । सूर्य से आने वाली ऊर्जा को जब पृथ्वी द्वारा अवशोषित कर लिया जाता  है, तब पृथ्वी गरम हो जाती है। जब  सूर्य की ऊर्जा वापस अंतरिक्ष में चली जाती हैं , तब पृथ्वी गरम होने से बचती है। जब ऊर्जा अंतरिक्ष में वापस जाती है,तब  पृथ्वी ठंडी हो जाती है । कई कारक, जैसे प्राकृतिक और मानवीय दोनों,  पृथ्वी की ऊर्जा के संतुलन में परिवर्तन पैदा कर सकते  हैं:

ऊपर ग्राफ के अनुसार:

रेखा ग्राफ के साथ की रेखा बढ़ते हुए तापमान को दर्शाती है, नीला बैंड यह दर्शाता है कि पिछली सदी में किस तरह  केवल प्राकृतिक प्रभाव के कारण तापमान में बदलाव आया है और लाल बैंड प्राकृतिक और मानव दोनों के संयुक्त प्रभाव को दर्शाती है | नीला बैंड प्राकृतिक प्रभाव को दर्शाता है जिसकी शुरुआत और अंत 20 वीं सदी में 56 डिग्री फारेनहाइट से ऊपर हुई | वास्तविक औसत भूमंडलीय तापमान का निरीक्षण किया गया तब ये पता चला कि  ये मॉडल प्रेक्षेपण के बिलकुल करीब था जिसका प्रयोग मानव तथा प्रकृति द्वारा किया गया है, 1900 में 56 डिग्री फारेनहाइट के ऊपर शुरुआत और 2000 में  58 डिग्री के आस पास समाप्त।

मॉडल जो केवल प्राकृतिक प्रक्रियाओं के प्रभाव की व्याख्या कर सकते हैं वे पिछली सदी के वार्मिंग की व्याख्या करने में सक्षम नहीं हैं।  मनुष्य के द्वारा छोड़ी गई ग्रीनहाउस गैसों की वार्मिंग की व्याख्या करने में ये मॉडल सक्षम हैं |

  1. ग्रीनहाउस के प्रभावों में बदलाव, जो पृथ्वी के वायुमंडल में गर्मी की मात्रा को प्रभावित करता है | 
  2. पृथ्वी तक पहुंचने वाली सूर्य की ऊर्जा में बदलाव
  3. पृथ्वी के वायुमंडल और सतह के प्रतिबिंब में परिवर्तन

पृथ्वी की जलवायु के कई बार बदलने के कारण निम्न है

वैज्ञानिकों ने कई हजारों वर्षों की तिथियों से अप्रत्यक्ष उपायों  का विश्लेषण कर जैसे हिम तत्व, पेड़ के छल्ले ,ग्लेशियर की लंबाई , पराग अवशेषों और समुद्र की तलछटों और सूर्य की चारों और पृथ्वी की कक्षा का अध्ययन कर  पृथ्वी की जलवायु की तस्वीर को आपस में जोड़ा है | ऐतिहासिक डेटा से पता चलता है कि जलवायु प्रणाली विभिन्न समय पर बदलती रही है |1700 के दशक में औद्योगिक क्रांति को प्राकृतिक कारकों  जैसे सौर ऊर्जा के क्षेत्र में परिवर्तन, ज्वालामुखी विस्फोट और ग्रीन हाउस गैस की सांद्रता, मनुष्य की बदलती आदतों के द्वारा समझाया जा सकता है|

हालांकि हाल के जलवायु परिवर्तन को, अकेले प्राकृतिक कारणों के रूप में नहीं समझाया जा सकता है। अन्वेषण ये दर्शाते हैं कि वार्मिंग के प्राकृतिक कारणों को विशेष रूप से मध्य 20 वीं सदी के बाद से वार्मिंग, को समझाना संभव नहीं है। बल्कि, मानव गतिविधियाँ बहुत हद तक वार्मिंग की व्याख्या कर सकतीं हैं |

जलवायु परिवर्तन के कारणों में समुद्री प्रक्रिया (जैसे समुद्री परिसंचरण के रूप में) , पृथ्वी द्वारा ग्रहण सौर विकिरण में बदलाव, प्लेट टेक्टोनिक्स और ज्वालामुखी विस्फोट, और मानव प्रेरित परिवर्तन इत्यादी शामिल हैं जिसके  कारकों के प्रभाव से  वर्तमान में ग्लोबल वार्मिंग, और "जलवायु  में परिवर्तन" हो रहा है  जिसका प्रयोग अक्सर मानव के विशिष्ट प्रभावों के वर्णन के लिए प्रयोग किया जाता है | वैज्ञानिक सक्रिय रूप से अतीत व भविष्य के जलवायु को समझने के लिए पर्यवेक्षण  और सैद्धांतिक मॉडल का उपयोग कर रहे हैं |

जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार अन्य कारक:। वे कारक जो जलवायु को आकार देते हैं उसे  "बलशाली तंत्र " कहा जाता है |इनमें निम्न  प्रक्रियाएं शामिल हैं

  • सौर विकिरण में उतार/चढ़ाव ,
  • पृथ्वी की कक्षा में उतार /चढ़ाव
  • पर्वत निर्माण और महाद्वीपीय बहाव और
  • ग्रीन हाउस गैस की सांद्रता में परिवर्तन।

 

Jagran Josh
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Education Desk

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