बराक ओबामा की भारत यात्रा
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 5-9 नवंबर, 2010 को भारत की बहुप्रतीक्षित यात्रा की। ओबामा की यह यात्रा कई मायने में महत्वपूर्ण थी। जनवरी 2009 में अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद से ही भारत-अमेरिकी संबंधों में संशय का वातावरण बन रहा था। आउटसोर्र्सिंग व पाकिस्तान के मुद्दे पर ओबामा के सुर भारत को पसंद नहीं आ रहे थे। वीजा के मामले में भी उनके रवैये ने भारत में उनके विरोधियों की संख्या बढ़ा दी थी।
भारतीय संसद को संबोधन
राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारतीय संसद को संबोधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन किया। उन्होंने इस बारे में कहा कि अमेरिका चाहता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार होने चाहिए और भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य होना चाहिए।
अपने संबोधन में ओबामा ने पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश देते हुए कहा कि मुंबई के हमलावरों को सजा मिलनी चाहिए और पाकिस्तान को अपने यहां आतंकवादियों का सफाया करना चाहिए।
ओबामा की भारत के बारे में यह पंक्तियां काफी महत्वपूर्ण रहीं कि भारत उभर नहीं रहा है, भारत उभर चुका है। भारत-अमेरिका के बीच साझेदारी 21वीं सदी की सबसे अहम साझेदारी होगी। भारत संयुक्त राष्ट्र में बड़ी भूमिका निभाए और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बने। भारत को विश्व स्तर के नेता की जिम्मेदारियां भी निभानी होंगी। आजादी के लिए खड़ा होना होगा जैसे की म्यांमार में, आजादी के लिए आवाज उठाना किसी के मामले में दखल नहीं है।
संयुक्त कांफ्रेंस
दोनों देशों के बीच प्रतिनिधिमंडल स्तर की बातचीत के बाद एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया गया। इस अवसर पर भारतीय प्रधानमंत्री व अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि दोनों देश बराबरी की साझेदारी में काम करने के लिए तैयार हैं और दोनों पक्षों ने वाणिज्य, रक्षा, शिक्षा, आंतरिक सुरक्षा और आंतकवाद को रोकने जैसे मुद्दों पर कई समझौते किए हैं। इस अवसर पर अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि अमेरिका भारत पर कश्मीर पर अपना कोई निर्णय नहीं थोप सकता है और आशा व्यक्त की कि भारत-पाकिस्तान इस मुद्दे को बातचीत के जरिए सुलझा लेंगे। इसके पहले भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा कि एक साथ बातचीत व आतंकवाद नहीं चल सकता है। एक बार पाकिस्तान आतंकवाद से बाज आ जाए तो भारत खुशी से सभी मुद्दों पर बातचीत के लिए तैयार है।
व्यापारिक समझौते
अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने अपने भारतीय दौरे के दौरान भारतीय-अमेरिकी उद्योग सम्मेलन में उच्च प्रौद्योगिकी के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने का वादा किया। ओबामा ने भारत की कुछ रक्षा कंपनियों से निर्यात प्रतिबंध हटाने की घोषणा भी की। इन कंपनियों में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो), रक्षा शोध एवं विकास संस्थान (डीआरडीओ) और भारत डायनामिक्स लिमिटेड (बीडीएल) शामिल हैं। अमेरिका ने यह भी कहा कि चार बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्था में भारत की पूर्ण सदस्यता के लिए अमेरिका उसका समर्थन करेगा। इस दौरान दोनों देशों के बीच कुल 15 अरब डॉलर के समझौते हुए जिससे अमेरिका में 54,000 रोजगारों का सृजन होगा। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण सौदे निम्नलिखित हैं-
हैवी ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट: बोइंग कंपनी और भारतीय वायुसेना के बीच 10 सी-17 ग्लोबमास्टर-3 सैन्य परिवहन विमान के लिए प्रारम्भिक समझौता। यह सौदा करीब 4.1 अरब डॉलर का है।
लाइटवेट फाइटर इंजन: कनेक्टीकट, अमेरिका की कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक हल्के लड़ाकू विमान तेजस के लिए हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स को 107 इंजनों की आपूर्ति करेगी। यह सौदा करीब 82.2 करोड़ डॉलर का है।
व्यावसायिक विमानों की बिक्री: बोइंग कंपनी 30 737-800 व्यावसायिक विमान स्पाइसजेट को बेचेगी। यह सौदा करीब 2.7 अरब डॉलर का है।
इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में वित्तीय सहयोग: अमेरिका में एक्जिम बैंक एक समझौते के अंतर्गत अनिल अंबानी समूह की कंपनी रिलायंस पावर को अमेरिकी सामानों और सेवाओं की खरीदारी के लिए पांच अरब डॉलर का वित्तीय सहयोग देगा।
डीजल लोकोमोटिव निर्माण संबंधी उद्यम: भारतीय रेल मंत्रालय ने 10 सालों में 1000 डीजल लोकोमोटिव के निर्माण और आपूर्ति के लिए जीई ट्रांसपोर्टेशन और इलेक्ट्रोमोटिव डीजल के पूर्व-चयन की घोषणा की। यह सौदा एक अरब डॉलर से अधिक का है।
मोबाइल फोन विपणन सेवा: कैलीफोर्निया की कंपनी नोकिया एक समझौते के अंतर्गत भारत में एक नया मोबाइल फोन उतारेगी और वेबसाइट आधारित विपणन सेवा शुरू करेगी। इस टेक्नोलॉजी से भारत के छोटे व मध्यम उद्योगों को मदद मिलेगी।
हेलिकॉप्टर बिक्री: टैक्सास के बेल हेलिकॉप्टर ने स्पेन एयर के साथ मिलकर निजी भारतीय एयर चार्टर कंपनी से समझौते की घोषणा की। बेल अब तक भारत में 100 हेलिकॉप्टर बेच चुका है।
भारत आने वाले छठे अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा
बराक ओबामा भारत की यात्रा पर आने वाले छठे अमेरिकी राष्ट्रपति बन गए। उनके पहले ड्विट आइजनहावर, रिचर्ड निक्सन, जिम्मी कार्टर, बिल क्लिंटन और जॉर्ज बुश राष्ट्रपति के रूप में भारत आ चुके हैं।
ड्विट आइजनहावर भारत आने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति थे। वे दिसंबर 1959 में भारत आए थे। आइडनहावर के बाद जुलाई 1969 में रिचर्ड निक्सन ने भारत की यात्रा की। निक्सन को भारत का विरोधी माना जाता था इसलिए उनकी यह यात्रा भारत के लिए कोई ज्यादा उपयोगी नहीं रही।
जनवरी 1978 में भारत दौरे पर आने वाले जिम्मी कार्टर तीसरे अमेरिकी राष्ट्रपति थे। कार्टर के बाद 22 वर्र्षों के अंतराल पर मार्च 2000 में भारत दौरे पर आने वाले बिल क्लिंटन चौथे अमेकिकी राष्ट्रपति थे। क्लिंटन की यात्रा के बाद से ही दोनों देशों के बीच सहयोग के एक नए युग की शुरूआत हुई और संबंधों में उल्लेखनीय सुधार देखा गया।
मार्च 2006 में भारत की यात्रा पर आने वाले जॉर्ज बुश पांचवे अमेरिकी राष्ट्रपति थे। बुश की भारत यात्रा के दौरान भारत अपने असैन्य और सैन्य परमाणु सुविधाओं को अलग करने पर सहमत हो गया। इसी कदम से आगे चलकर भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु करार हुआ।
ओबामा की यात्रा: भारत ने क्या पाया क्या खोया
ओबामा की यात्रा से स्वाभाविक रूप से भारत में काफी उत्साह का माहौल रहा। 2009 में राष्ट्रपति बनने के बाद से ओबामा ने आर्थिक व कूटनीतिक क्षेत्र में कई ऐसे कदम उठाए हैं जिन्हें भारत में पसंद नहीं किया गया है। उनकी यात्रा के दौरान कई मुद्दे उठे जो निम्नलिखित हैं-
सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता: भारत की धरती पर ओबामा ने स्पष्ट शब्दों में भारत की आर्थिक शक्ति को सराहा और सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता का समर्थन किया। लेकिन समस्या यह है कि अमेरिका वर्तमान में दुनिया की एकमात्र महाशक्ति है और वह भारत से कई ऐसे कदमों की अपेक्षा करता है जो दीर्घावधि में भारत के हित में नहीं हैं। अमेरिका, भारत से ईरान व म्यांमार के मुद्दे पर स्पष्ट राय चाहता है जो वर्तमान परिस्थितियों में संभव नहीं हैं। सुरक्षा परिषद की सदस्यता के मुद्दे पर ओबामा का रवैया भारत की धरती छोड़ते ही ढुलमुल हो गया।
कश्मीर का मुद्दा: काफी लंबे समय से अमेरिका कहता रहा है कि वह कश्मीर के मुद्दे में किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं करेगा। यही बात ओबामा ने भारत में भी दोहराई। ओबामा की यात्रा के तुरंत बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने कश्मीर को विवादास्पद मुद्दों की सूची से बाहर कर दिया। लेकिन एक-दो दिन के अंदर ही यह मुद्दा फिर से विवादस्पद मुद्दों की सूची में शामिल कर लिया गया जो अमेरिका की इस मुद्दे पर ढुलमुल नीति को दर्शाता है।
व्यापार: भारत-अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंध शुरुआत से ही काफी मजबूत रहे हैं। यह बात दीगर है कि ओबामा ने व्यापार के क्षेत्र में भारत से लिया ज्यादा और दिया कम। अमेरिका वर्तमान में आर्थिक संकट से जूझ रहा है जिसे देखते हुए ओबामा ने भारत से कई समझौते किए जिससे वहां लगभग 50,000 नौकरियों का सृजन होगा।
भारत-अमेरिकी संबंधों का सफर
इसे विडंबना ही कहेंगे कि दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों- भारत व संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच लंबे समय तक संबंध ठीक नहीं रहे। हालांकि जहां तक व्यापार व आपसी आदान-प्रदान की बात है तो इस स्तर पर दोनों देश हरदम एक-दूसरे के काफी करीब रहे हैं।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भारत-अमेरिका के रिश्ते काफी मजबूत रहे हैं। 19वीं शताब्दी के आखिरी दौर में स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका में ही विश्व को भारत के धर्म व अध्यात्म से दुनिया को पहली बार परिचित कराया था।
भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद से शीतयुद्ध के समाप्त होने तक, दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य नहीं कहा जा सकता था। हालांकि इस दौरान भी बीच-बीच में कई बार भारत को अमेरिका से भरपूर सहयोग व समर्थन मिला। 1959 में ड्विट आइजनहावर भारत का दौरा करने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बने। वह भारत समर्थक माने जाते थे।
बाद में 60 के दशक में राष्ट्रपति जॉन कैनेडी ने भारत को कम्युनिस्ट चीन के खिलाफ एक रणनीतिक भागीदार के रूप में देखा। 1962 में भारत पर चीनी आक्रमण के खिलाफ कैनेडी ने हर तरह से भारत की मदद की। 1965 व 1971 के भारत-पाक युद्धों के दौरान दोनों देशों के बीच संबंधों में काफी खटास आ गई। शीत युद्ध के दौरान अमेरिका ने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया क्योंकि भारत का स्पष्ट झुकाव कम्युनिस्ट सोवियत संघ की ओर था।
संबंधों में सुधार: 1991 में सोवियत संघ के विखंडन के साथ ही शीतयुद्ध की समाप्ति हो गई और विश्व में अमेरिका ही एकमात्र महाशक्ति के रूप में रह गया। यह वह दौर था जब भारत में आर्थिक संकट का दौर जारी था। आर्थिक संकट से उबरने के लिए भारत में नरसिंह राव सरकार ने व्यापक स्तर पर आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया लागू की। यही से भारत-अमेरिका के बीच संबंधों में गर्माहट आनी आरंभ हो गई। लेकिन दोनों देशों के मध्य मुख्य रूप से रिश्तों में सुधार 2000 में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत यात्रा से हुआ। यह वह दौर था जब दोनों देशों ने अपने आर्थिक संबंधों को नया आयाम देने का निश्चय किया।
अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के शासनकाल के दौरान दोनों देशों के बीच संबंधों में उल्लेखनीय सुधार हुआ और नागरिक परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए गये। इस समझौते को दोनों देशों के बीच संबंधों में टर्र्निंग प्वाइंट कहा जा सकता है।
ओबामा प्रशासन के अंतर्गत भारत-अमेरिका संबंध
बराक ओबामा के अमेरिका राष्ट्रपति बनने पर भारत में काफी खुशी का इजहार किया गया था और इसे अमेरिकी इतिहास में एक नये युग की शुरुआत माना गया था। लेकिन ओबामा के कुछ कदमों से जल्दी ही यह खुमार उतर गया और उनके कुछ कदमों से दोनों देशों के बीच तनाव का माहौल बना।
विदेश नीति:
विदेश नीति के कुछ विश्लेषकों का मानना है कि भारत, पाकिस्तान व अफगानिस्तान में तालिबान के साथ सख्ती न बरतने के ओबामा के रुख से खुश नहीं है। भारत के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम. के. नारायणन ने ओबामा द्वारा कश्मीर समस्या को पाकिस्तान व अफगानिस्तान में अस्थिरता से जोडऩे पर काफी नाराजगी जताई थी। भारत ने इस बारे में कई बार नाराजगी जताई है कि ओबामा प्रशासन पाकिस्तान में पल रहे आतंकवादी समूहों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पाकिस्तान पर किसी तरह का दबाव नहीं डाल रहा है।
आर्थिक संबंध:
हाल के वर्र्षों में अमेरिका में आर्थिक संकट का असर हर तरफ दिखाई दे रहा है। ऐसे में अमेरिकी प्रशासन आर्थिक संरक्षणवादी रवैया अपना रहा है। ओबामा कई बार आउटसोर्र्सिंग के मुद्दे पर बोल चुके हैं जो सीधे तौर पर भारतीय कंपनियों को चोट करता है। यहां तक कि भारतीय वाणिज्य मंत्री कमलनाथ सीधे तौर पर अमेरिका को धमकी दे चुके हैं कि यदि अमेरिका में एंटीआउटसोर्र्सिंग रुख जारी रहा तो भारत इस मुद्दे पर विश्व व्यापार संगठन जाएगा। भारत ने ओबामा प्रशासन द्वारा अमेरिका में कार्यरत भारतीय प्रोफेशनल्स के लिए जारी किये जाने वाले एच-1बी वीजा की संख्या कम किये जाने पर भी नाराजगी जताई है।
हालांकि अमेरिका के प्रयासों से ही भारत को जून 2009 में एशिया विकास बैंक ने 2.9 अरब अमेरिकी डॉलर का ऋण प्रदान किया था, जबकि इसका चीन ने पुरजोर विरोध किया था।
रणनीतिक और सैन्य साझेदारी:
ओबामा प्रशासन के दौरान सैन्य क्षेत्र में दोनों देशों के मध्य संबंधों में काफी सुधार हुआ है। मार्च 2009 में अमेरिका ने 2.1 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य के आठ पी-8 पोसेडान्स बेचे थे। यह दोनों देशों के बीच अभी तक की सबसे बड़ी सैनिक खरीद-फरोख्त है।
हालांकि भारत में इस बात को लेकर आशंका व्यक्त की जा रही है कि ओबामा भारत-अमेरिकी नागरिक परमाणु संधि को लेकर ज्यादा गंभीर नहीं है। दूसरी ओर ओबामा कई अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर परमाणु परीक्षणों पर रोक से संबंधित सीटीबीटी पर हस्ताक्षर करने के लिए आह्वान कर रहे हैं। भारत, इजरायल व पाकिस्तान उन देशों में शामिल हैं जिन्होंने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। भारत कई वर्र्षों से सीटीबीटी के स्थान पर पूरे विश्व में निशस्त्रीकरण की मांग करता रहा है। इस मुद्दे पर दोनों देशों के बीच काफी मतभेद हैं।
Comments
All Comments (0)
Join the conversation