बिहार में नीतीश की धमाकेदार जीत
नवंबर 2010 में सम्पन्न विधानसभा चुनावों में बिहार की जनता ने जांत-पांत की दीवारों को तोड़ते हुए विकास के पक्ष में अपना मत देते हुए नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को तीन-चौथाई बहुमत से विजय बनाया। नीतीश कुमार की आंधी में लालू प्रसाद यादव व रामविलास पासवान के राजद-लोजपा गठबंधन का पूरी तरह से सफाया हो गया और कांग्रेस का करीब-करीब नामोनिशान तक मिट गया।
चुनाव में जनता दल (यूनाईटेड) व भारतीय जनता पार्टी गठबंधन के पक्ष में इस तरह की आंधी चली कि कोई भी विपक्ष दल विपक्ष का दर्जा पाने लायक भी नहीं बचा। बिहार में विपक्ष का दर्जा पाने के लिए 10 प्रतिशत अर्थात 25 सीटों की जरूरत होती है। यद्यपि राजद-लोजपा मिलकर ही 25 के आंकड़े को छू सकते हैं।
पूरे प्रदेश में चली लहर
मतगणना के बाद 243 सदस्यीय विधानसभा में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को कुल 206 सीटें मिलीं। इसमें जनता दल यूनाईटेड को 115 व भारतीय जनता पार्टी को 91 सीटें प्राप्त हुईं। जबकि राजद-लोजपा गठबंधन को मात्र 25 सीटें ही प्राप्त हुईं। इसमें 22 सीट राजद को व 3 लोजपा को प्राप्त हुईं। कांग्रेस को मात्र 4 सीटों से ही संतोष करना पड़ा।
लालू-पासवान को भारी शिकस्त
इस चुनाव में लालू-पासवान को सबसे ज्यादा क्षति हुई। लालू यादव का कोई भी परिजन विधानसभा में नहीं पहुँच पाया। यहां तक कि उनकी पत्नी व पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी दो स्थानों से विधानसभा चुनाव हार गईं। रामविलास पासवान के दोनों भाई व दोनों दामाद को चुनाव में हार का मुँह देखना पड़ा।
सुशासन की जीत
बिहार में नीतीश के नेतृत्व वाले राजग गठबंधन की जीत सुशासन की जीत है। 1990 से 2005 के बीच लालू व राबड़ी में राष्ट्रीय जनता दल की सरकार थी। उस दौरान मानव विकास के प्रत्येक क्षेत्र में बिहार पिछड़ता रहा। कानून व्यवस्था, सड़क, पानी, बिजली इत्यादि मामलों में भी बिहार देश का सबसे पिछड़ा राज्य था। लेकिन नीतीश के मुख्यमंत्री बनने के बाद से इस स्थिति में गुणात्मक सुधार आया है। राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार आया है। सड़क, पानी, बिजली जैसे क्षेत्रों में भी राज्य ने उल्लेखनीय प्रगति की है। प्रदेश में औद्योगिक माहौल भी पैदा हुआ है। राजग गठबंधन के इन्हीं कार्र्यों पर मतदाताओं ने भारी जीत दिलाकर मुहर लगाई है।
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