भारत और विश्व के प्रसिद्ध पर्यावरणविद

एक पर्यावरणविद् बड़े पैमाने पर पर्यावरण आंदोलन, एक राजनीतिक और नैतिक आंदोलन" के रूप में सुधार और पर्यावरण की दृष्टि से हानिकारक मानव गतिविधियों में परिवर्तन के माध्यम से प्राकृतिक पर्यावरण की गुणवत्ता की रक्षा करना चाहता है। एक पर्यावरणवादी पूरी तरह से पर्यावरण की रक्षा के लिए समर्पित होता है और यही उसका धर्म होता है। विश्व के कुछ जाने माने पर्यवार्नाविदों के नाम निम्न प्रकार हैं: क़ाज़ी खोलिकुज्जामन अहमद (पर्यावरण कार्यकर्ता और बांग्लादेश के अर्थशास्त्री), वंगारी माथई  (केन्या), हंटर लोविन्स  आदि।

Dec 15, 2015, 15:18 IST

एक पर्यावरणविद् बड़े पैमाने पर पर्यावरण आंदोलन, एक राजनीतिक और नैतिक आंदोलन" के रूप में सुधार और पर्यावरण की दृष्टि से हानिकारक मानव गतिविधियों में परिवर्तन के माध्यम से प्राकृतिक पर्यावरण की गुणवत्ता की रक्षा करना चाहता है । एक पर्यावरणवादी पूरी तरह से पर्यावरण की रक्षा के लिए समर्पित होता है और यही उसका धर्म होता है। विश्व के कुछ जाने माने पर्यवार्नाविदों के नाम निम्न प्रकार हैं: क़ाज़ी खोलिकुज्जामन अहमद (पर्यावरण कार्यकर्ता और बांग्लादेश के अर्थशास्त्री), वंगारी माथई  (केन्या), हंटर लोविन्स  आदि।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई जानेमाने पर्यावरण विचारक रहे हैं जिनके काम मील के पत्थर साबित हुए हैं”, उन नामों में चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin), राल्फ एमर्सन  (Ralph Emerson), हेनरी थोरो (Henry Thoreau) , जॉन मुइर (John Muir), एल्डोलेओपाल्ड (Aldo Leopald), रेच कार्सन (Rache Carson) और ईओ विल्सन(EO Wilson) के नाम शामिल  हैं।

  • चार्ल्स डार्विन ने “Origin of Species” लिखा था, जो कि विभिन्न प्रजातियों और आवास स्थानों के बीच के संबंधों की व्याख्या करती है । अल्फ्रेड वालेस भी अपने काम के दौरान समान निष्कर्ष पर पहुंचे |
  • राल्फ एमर्सन  ने 1840 के दशक में हमारे पर्यावरण के लिए वाणिज्यिक गतिविधियों खतरों की बात की थी।
  • 1860 के दशक में हेनरी थोरो  ने एक वर्ष जंगल में रहने के बाद यह लिखा कि जंगलों को संरक्षित किया जाना चाहिए ||
  • जॉन मुइर  को जंगलों के महान प्राचीन वृक्ष सेकोइया (कैलिफोर्निया में देवदार की जाति का एक वृक्ष) को बचाने के लिए याद किया जाता है। 1890 के दशक में इसने सिएरा क्लब का गठन किया जोकि संयुक्त राज्य अमेरिका में एक प्रमुख संरक्षण संस्था है |
  • एल्डो लेयोपाल्ड  1920 के दशक में अमेरिका में एक वन अधिकारी था। इसने जंगल संरक्षण और वन्य जीवन प्रबंधन पर कई नीतियों बनाईं ।
  • 1960 के दशक में रेशल कार्सन  ने कई लेख प्रकाशित किए और उनमे  कीटनाशक दवाइयों का मानव और प्रकृति पर पड़ने वाले हानिकारक तत्वों की जानकारी दी । इसने बहुचर्चित किताब “Silent Spring” लिखी जो जन जागरूकता के लिए अंततः सरकार की नीतियों में बदलाव  ला पाई ।
  • ईओ विल्सन  एक कीटविज्ञानी हैं जिनकी कल्पना के अनुसार पृथ्वी पर मानव अस्तित्व के लिए जैविक विविधता ज़रूरी है | इसने 1993 में “Diversity of Life” लिखी जिसे  पर्यावरण के मुद्दों पर प्रकाशित सबसे अच्छी किताब के लिए पुरस्कृत किया गया |
  • वंगारी माथई  (1940-2011)  केन्या में एक पर्यावरण और राजनैतिक कार्यकर्ता थे। संयुक्त राज्य अमेरिका में जीव विज्ञान का अध्ययन करने के बाद, वह अपना कैरियर पर्यावरण व सामाजिक प्रसंगों में बनाने के लिए केन्या लौट आईं | माथई ने अफ्रीका में ग्रीन बेल्ट आंदोलन की स्थापना की और 30 लाख वृक्ष लगाने में सहायता की, बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध कराया साथ ही साथ मिट्टी के कटाव को रोका और जलाऊ लकड़ी को भी बचाया | इन्हें पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन के लिए मंत्रालय में सहायक मंत्री नियुक्त किया गया था और महिलाओं के अधिकारों, राजनीतिक रूप से शोषित और प्राकृतिक वातावरण के लिए लड़ाई को जारी रखते हुए 2004 में माथई को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • गेलॉर्ड नेल्सन (1916-2005)। द्वितीय विश्व युद्ध से लौटने के बाद, नेल्सन ने अपनी जीवन यात्रा की शुरुआत राजनीतिज्ञ व पर्यावरण कार्यकर्ता के रूप में की जो उनके जीवन के अंत तक रहा | इन्हें  शायद सबसे अच्छा पृथ्वी दिवस के संस्थापक के रूप में जाना जाता है।
  • सलीम अली का नाम भारत में और साथ ही बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) में  पक्षीविज्ञान का पर्याय बन गया है | इन्होनें कई महान किताबें लिखीं हैं जिसमें प्रसिद्ध Book of Indian Birds”  भी शामिल है | इनकी  आत्मकथा, “Fall of a Sparrow” सभी प्रकृति जिज्ञासुओं द्वारा पढ़ी जानी चाहिए | ये हमारे देश के अग्रणी संरक्षण वैज्ञानिक थे तथा इन्होनें 50 से भी अधिक वर्षों के लिए हमारे देश की पर्यावरण नीतियों को प्रभवित किया |
  • प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा गांधी  ने भारत  के वन्य जीवन के संरक्षण में एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।  जब वे प्रधानमंत्री थी उस समय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (1972) पारित किया गया और वन्य जीव के लिए भारतीय बोर्ड बेहद सक्रिय था क्यूंकि इन्दिरा गांधी ने व्यक्तिगत रूप से सभी बैठकों की अध्यक्षता की थी | भारत ने इनके कार्यकाल के दौरान CITES में तथा अन्य अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संधियों और समझौतों पर एक प्रमुख भूमिका निभाकर अपने लिए नाम कमाया |
  • S. P. गोदरेज  भारत के वन्यजीव संरक्षण और प्रकृति के प्रति जागरूकता वाले कार्यक्रमों के सबसे बड़े समर्थकों में से एक थे । 1975 और 1999 के बीच, S. P. गोदरेज  ने  संरक्षण गतिविधियों के लिए 10 पुरस्कार प्राप्त किए । इन्हें 1999 में पद्मा भूषण से भी सम्मानित किया गया | संरक्षण के लिए उनकी गहरी प्रतिबद्धता ने लोगों के साथ भारत में वन्य जीवन के लिए एक प्रमुख हिमायती की भूमिका निभाने का नेतृत्व किया।
  • एमएस स्वामीनाथन भारत  के अग्रणी कृषि वैज्ञानिकों में से एक हैं और इनका संबंध विभिन्न प्रकार के जैव  विविधता संरक्षण से है जिसमें दोनों फ़सल और जंगली जैव विविधता आते हैं । इन्होनें चेन्नई में M . S . स्वामीनाथन अनुसन्धान संस्थान की स्थापना की है जोकि जैव विविधता के संरक्षण पर काम करता है |
  • माधव गाडगिल भारत के प्रसिद्ध परिस्थितिविज्ञान शास्त्री हैं। उन्होंने व्यापक परिस्थिति के मुद्दे हैं जैसे पंजीकृत समुदाय जैव विविधता का  विकास करना और स्तनधारियों, पक्षियों और कीड़ों के व्यवहार पर अध्ययन करने के लिए पवित्र पेड़ों का  संरक्षण करना आदि पर बल दिया|
  • एमसी मेहता निस्संदेह भारत के  सबसे प्रसिद्ध पर्यावरण वकील हैं। 1984 के बाद से, इन्होनें पर्यावरण संरक्षण के हितों के समर्थन करने के लिए कई जनहित मुकदमे दायर किये हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा समर्थित उनकी सबसे प्रसिद्ध और लंबी लड़ाइयों में शामिल है ताजमहल की रक्षा करना,गंगा नदी की सफाई करना, तट पर गहन झींगा खेती पर प्रतिबंध लगाना, सरकार द्वारा स्कूलों और कॉलेजों में पर्यावरण  शिक्षा की शुरुआत करना, और अन्य प्रकार के संरक्षण के मुद्दे |
  • अनिल अग्रवाल एक पत्रकार थे जिन्होनें 1982 में भारत के पर्यावरण की स्थिति के बारे में प्रथम रिपोर्ट लिखी | इन्होनें विज्ञान व पर्यावरण के केंद्र की स्थापना की जो की एक सक्रिय गैर सरकारी संगठन है जो   विभिन्न पर्यावरण के मुद्दों का समर्थन करता है |
  • मेधा पाटकर को भारत के चैम्पियन के रूप में जाना जाता है जिसने दलित आदिवासी लोगों का समर्थन किया  जिनका पर्यावरण नर्मदा नदी पर बांधों के कारण प्रभावित हो रहा है|
  • सुंदरलाल बहुगुणा का  चिपको आंदोलन अपने वन संसाधनों की रक्षा के लिए स्थानीय लोगों के प्रयासों के माध्यम से एक अत्यधिक सफल संरक्षण कार्रवाई कार्यक्रम की एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का प्रसिद्ध उदाहरण बन गया है। इनकी लड़ाई  नाजुक भूकंप प्रवृत वाले क्षेत्र में टिहरी बांध के निर्माण को रोकने के लिए है जिसकी कीमत उन्हें लगातार भरनी पड़ रही है ।गढ़वाल  की पहाड़ियाँ हमेशा इन्हें इनके अभियान के प्रति समर्पण के लिए याद रखेगी जिसके लिए इन्होनें 20 हजार किलोमीटर की दूरी तय की |
Jagran Josh
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Education Desk

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