महिला आरक्षण बिल
पिछले 14 वर्षों से केंद्र की सत्ता में काबिज कई सरकारों ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 आरक्षण देने संबंधी महिला आरक्षण बिल पास कराने का प्रयत्न किया, लेकिन इसमें उन्हें सफलता नहीं मिल सकी थी। इस दिशा में केंद्र सरकार को मार्च 2010 में उस समय एक बड़ी सफलता मिली जब इस प्रावधान के लिए लाए गये 108वें संविधान संशोधन विधेयक को राज्यसभा की मंजूरी मिल गई।
इस बिल का राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी व लोकजन शक्ति पार्टी ने जबर्दस्त विरोध किया। बिल के पक्ष में मतदान करने वाली पार्टियों में सत्ताधारी दल के अलावा भाजपा व वामपंथी दल शामिल थे। हालांकि अब इस बिल को लोकसभा से भी पारित कराना जाना जरूरी है, जिसकी संभावना कम ही दिखाई दे रही है, क्योंकि सत्ताधारी गठबंधन के ही कई सहयोगी दल इसका जमकर विरोध कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी, जनता दल (यूनाईटेड) व राष्ट्रीय जनता दल बिल के वर्तमान स्वरूप का विरोध कर रहे हैं तथा समाज के पिछड़े वर्र्गों के लिए आरक्षण के अंदर आरक्षण की मांग कर रहे हैं।
पहले भी पेश किया जा चुका है बिल
लोकसभा व राज्य विधान सभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण के प्रावधान वाले इस बिल को पहले भी तीन बार संसद के पटल पर रखा जा चुका है, किंतु तीनों बार यह विधेयक भारी शोर-शराबे के चलते पूरी तरह से निष्प्रभावी हो गया। 6 मई, 2008 को इसे राज्यसभा में प्रस्तुत किया गया था, जहां इसे कानून व्यवस्था और कार्मिक मामलों की स्थाई समिति को सौंप दिया गया था। तमाम दलों के भारी विरोध के बावजूद संसदीय समिति ने इस बिल को मूल स्वरूप में ही पारित कराने की संस्तुति की थी।
आधी आबादी की लड़ाई का सफर
देश की आधी आबादी अर्थात महिलाओं के हक की लड़ाई का इतिहास काफी पुराना है। गांधीजी के प्रयासों से पहली बार देश की महिलाएं घर की देहरी को लांघकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई के लिए सड़क पर उतरी थीं। अब यह काफी पुरानी बात हो चुकी है। लोकसभा व राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के आंकड़ेंं यह साफ दर्शाते हैं कि राजनीति में उन्हें बराबरी का हक नहीं मिला हुआ है। जो चंद महिलाएं देश के राजनीतिक शीर्ष पर हैं भी तो इसके पीछे कहीं न कहीं उनके परिवार के रसूख का हाथ है। पिछले 14 वर्र्षों से महिला आरक्षण बिल के संसद में ही अटके होने से साफ जाहिर होता है कि देश का एक प्रभावशाली वर्ग महिलाओं को राजनीति में बराबरी का हक देने में तमाम बाधाएं पैदा कर रहा है।
विधायिका में महिलाओं के लिए स्थान आरक्षित करने के प्रयास काफी लंबे अर्से से चल रहे हैं। संसद में 1993 में 73वें व 74वें संविधान संशोधन के जरिए नगर निगमों व पंचायतों को संवैधानिक दर्जा देने के साथ ही इनमें महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान किया गया। संविधान में लोकसभा व राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात के अनुसार सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है, लेकिन इनमें महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने का कोई प्रावधान नहीं है। कई समितियों ने महिला आरक्षण का मामला जोर-शोर से उठाया है -
महिलाओं की स्थिति पर गठित समिति: 1974 में महिलाओं की स्थिति पर गठित एक समिति ने राजनीतिक निकायों में महिलाओं की कम संख्या पर प्रकाश डाला था और सिफारिश की थी कि पंचायतों व शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए स्थान आरक्षित किये जाने चाहिए। हालांकि इस समिति के दो सदस्यों ने संपूर्ण विधायिका में महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण की सिफारिश की थी।
नेशनल प्रस्पेक्टिव प्लान: 1988 में महिलाओं के लिए नेशनल प्रस्पेक्टिव प्लान में पंचायतों, शहरी निकायों व राजनीतिक दलों में महिलाओं के लिए 30 फीसदी आरक्षण की संस्तुति की गई थी।
महिला सशक्तिकरण पर राष्ट्रीय नीति: 2001 में महिला सशक्तिकरण के राष्ट्रीय नीति में यह बात उठाई गई थी कि लोकसभा व विधानसभाओं में भी महिलाओं के लिए आरक्षण होना चाहिए। पिछले चुनावों में यूपीए गठबंधन ने भी अपने घोषणापत्र में महिला आरक्षण को अपने एजेंडे में शामिल किया था।
विश्व के मुकाबले भारत में बदतर है स्थिति
दुनिया के कई देशों में राजनीतिक प्रक्रिया में महिलाओं की उपस्थिति सुनिश्चित करने के उद्देश्य से आरक्षण का प्रावधान है। यह बात अलग है कि इस आरक्षण का स्वरूप प्रत्येक देश में अलग-अलग है। लगभग 100 देशों में कोटे का प्रावधान मौजूद है।
एशियाई देशों में महिलाओं का विधायिका में प्रतिनिधित्व उचित अनुपात में नहीं है। एशियाई देशों के लिए यह औसत अनुपात 18.5 फीसदी है जो दुनिया को देखते हुए काफी कम है। लेकिन भारत में स्थिति इतनी बदतर है कि यहां का अनुपात एशियाई देशों का भी आधा है। यहां तक कि दक्षिण एशिया में श्रीलंका ही इस मामले में भारत के पीछे है। जहां भारत मे विधायिका में महिलाओं का अनुपात 11 है वहींश्रीलंका में यह मात्र 6 प्रतिशत है।
पश्चिमी देश हैं काफी आगे: रवांडा दुनिया का अकेला ऐसा देश है जहां संसद में पुरुषों की संख्या महिलाओं के मुकाबले कम है (56 प्रतिशत)। इसके बाद स्थान आता है स्वीडन (47 प्रतिशत), दक्षिण अफ्रीका (45 प्रतिशत), आइसलैंड (43 प्रतिशत), अर्जेन्टीना (42 प्रतिशत), नीदरलैंड्स (41 प्रतिशत) और नॉर्वे व सेनेगल (40 प्रतिशत) का स्थान है।
स्कैडिनेवियाई देशों डेनमार्क, नॉर्वे और स्वीडन में राजनीति में महिलाओं का काफी अच्छा प्रतिनिधित्व है।
लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व
वर्ष | कुल महिला | विजयी उम्मीदवार | सफलता (प्रतिशत) |
---|---|---|---|
1957 | 45 | 22 | 48.9 |
1962 | 66 | 31 | 47.0 |
1967 | 67 | 29 | 43.3 |
1971 | 86 | 21 | 24.4 |
1977 | 70 | 19 | 27.1 |
1980 | 143 | 28 | 19.6 |
1984 | 162 | 42 | 25.9 |
1989 | 198 | 29 | 14.7 |
1991 | 326 | 37 | 11.4 |
1996 | 599 | 40 | 6.7 |
1998 | 274 | 43 | 15.7 |
1999 | 284 | 49 | 17.3 |
2004 | 355 | 45 | 12.7 |
2009 | 556 | 59 | 10.6 |
महिला आरक्षण बिल: मुख्य बिंदु
महिला आरक्षण बिल में लोकसभा, राज्य विधान सभाओं जिसमें दिल्ली भी शामिल है, महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें रिजर्व करने का प्रावधान है। रिजर्व सीटों का निर्धारण संसद द्वारा नियुक्त निकाय द्वारा किया जाएगा। बिल में यह भी प्रावधान है कि जहां तक संभव हो सके लोकसभा व विधानसभाओं में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व कुल सीटों में से एक-तिहाई इन जातियों की महिलाओं के लिए रिजर्व की जाएंगी। महिला आरक्षण लागू होने के 15 वर्र्षों के बाद यह आरक्षण समाप्त हो जाएगा और इसे जारी रखने के बारे में समीक्षा की जाएगी।
लोकसभा: लोकसभा में महिलाओं के लिए रिजर्व सीटों का आवंटन राज्यों व केद्र शासित प्रदेशों में विभिन्न क्षेत्रों में रोटेशन प्रणाली के द्वारा किया जा सकता है। यदि किसी राज्य या केद्र शासित प्रदेश में लोकसभा की केवल एक ही सीट है तो उसे प्रत्येक तीन आम चुनावों के चक्र के पहले चुनाव में महिला उम्मीदवार के लिए रिजर्व रखा जा सकता है। इसी प्रकार का नियम अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए भी लागू होगा।
विधानसभाएं: सभी राज्यों की विधानसभाओं की प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरी जाने वाली सभी सीटों में से एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए रिजर्व होंगी। ऐसी सीटें राज्य के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन प्रणाली के जरिए आवंटित की जा सकती हैं। अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति की सीटों के लिए वही नियम लागू होगा जो लोकसभा के लिए लागू होता है।
संसद में सबसे ज्यादा महिलाओं के अनुपात वाले देश
देश आरक्षण का प्रकार संसद में महिलाओं का प्रतिशत रवांडा संवैधानिक कोटा 56 स्वीडन राजनीतिक दल में कोटा 47 दक्षिण अफ्रीका राजनीतिक दल में कोटा 45 आइसलैंड राजनीतिक दल में कोटा 43 अर्र्जेंटीना संवैधानिक कोटा 42 नीदरलैंड्स राजनीतिक दल में कोटा 41 नॉर्वे राजनीतिक दल में कोटा 40 सेनेगल कोई कोटा नहीं 40 डेनमार्क कोई कोटा नहीं 38 अंगोला चुनाव आयोग द्वारा कोटा 37 कोस्टारिका चुनाव आयोग द्वारा कोटा 37
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