याचिका (रिट) और उनका विषय क्षेत्र

एक रिट अथवा याचिका का अर्थ है –आदेश,  यानि वह कुछ भी जिसे एक अधिकार के तहत जारी किया जाता है वह याचिका है, और इसे रिट के रूप में जाना जाता है। अनुच्छेद 32 और अनुच्छेद 226 के तहत भारतीय संविधान के तीसरे भाग में प्रदत्त मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए भारत का संविधान उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों को अधिकार प्रदान करता है।

Dec 24, 2015, 17:01 IST

एक रिट अथवा याचिका का अर्थ है –आदेश, यानि वह कुछ भी जिसे एक अधिकार के तहत जारी किया जाता है वह याचिका है, और इसे रिट के रूप में जाना जाता है। अनुच्छेद 32 और अनुच्छेद 226 के तहत भारतीय संविधान के तीसरे भाग में प्रदत्त मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए भारत का संविधान उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों को अधिकार प्रदान करता है।

याचिकायें (रिट) के पांच प्रकार की होती हैं –

  1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण,
  2. परमादेश,
  3. उत्प्रेषण,
  4. निषेधाज्ञा
  5. अधिकार पृच्छा,

पांच प्रकार की याचिकाओं (रिट) का वर्णन निम्नवत् है:

1- बन्दी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)

हेबियस कॉर्पस (बंदी प्रत्यक्षीकरण) एक लैटिन शब्द है जिसका अर्थ है कि "आपके पास शरीर होना चाहिए"। रिट एक अदालत के समक्ष एक ऐसे आदमी को पेश करने के लिए जारी की जाती है जिसे हिरासत में या जेल में रखा गया है और हिरासत में लेने के 24 घंटे के भीतर उसे मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश नहीं किया गया है और यदि यह पाया जाता है कि हिरासत में अवैध तरीके से रखा गया है तो कोर्ट ऐसे व्यक्ति को रिहा करा देती है। रिट का उद्देश्य अपराधी को दंडित करने का नहीं होता लेकिन अवैध तरीके से हिरासत में लिए गये व्यक्ति को रिहा कराना होता है। 

हालांकि, अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण) को आपातकाल की घोषणा के दौरान भी निलंबित नहीं किया जा सकता है। इसलिए, बंदी प्रत्यक्षीकरण एक व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए एक बहुत ही मूल्यवान रिट बन जाती है। सुप्रीम कोर्ट केवल मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामले में ही राज्य के खिलाफ बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट जारी कर सकता है जबकि उच्च न्यायालय अवैध रूप से या मनमाने ढंग से हिरासत में लिए गये किसी भी आम नागिरक के खिलाफ भी यह जारी कर सकता है। बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट हिरासत में लिया गये व्यक्ति द्वारा स्वंय या उसकी ओर से कोई भी व्यक्ति दायर कर सकता है।

सुनील बत्रा II बनाम दिल्ली प्रशासन का मामला: सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश को एक अपराधी द्वारा एक पत्र लिखा गया था जिसे एक रिट को याचिका के रूप में लिया गया था। न्यायालय ने इस रिट को राज्य की दंडात्मक सुविधाओं की उपेक्षा के लिए नियोजित किया था।  यह रिट तब जारी की गयी थी जब जेल के साथियों को कानूनी सहायता प्रदान करने और उनका साक्षात्कार करने के लिए कानून के छात्रों पर प्रतिबंध लगाया गया था। 

2- परमादेश  (Mandamus)

Mandamus (परमादेश) एक लैटिन शब्द है जिसका अर्थ है "हमारा आदेश है।" यह कानूनी रूप से कार्य करने और गैर कानूनी कार्य के अंजाम से बचने के लिए, एक आदेश के रूप में एक न्यायिक उपाय है। जहां A के पास कानूनी अधिकार होते हैं जो B पर कुछ कानूनी बाध्यताएं डालता है,  B को अपने कानूनी कर्तव्यों का पालने करने के लिए A परमादेश रिट की मांग कर सकता है। इस रिट को जारी करने का आदेश उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय द्वारा तब किया जाता है जब सरकार, अदालत, निगम या अधिकरण या लोक प्राधिकरण सार्वजनिक या वैधानिक कर्तव्य तो करते हैं लेकिन उन्हें निभा पाने में विफल रहते हैं।

सुप्रीम कोर्ट एक व्यक्ति के मौलिक अधिकार को लागू करने के लिए एक परमादेश तब जारी कर सकता है जब कुछ सरकारी आदेशों या अधिनियमों पर इसका उल्लंघन करने का आरोप लगाये जाते हैं। एक अधिकारी को अपने संवैधानिक और कानूनी शक्तियों का प्रयोग करने के लिए, कर्तव्यों का पालन नहीं करने पर संविधान द्वारा किसी भी व्यक्ति के लिए निर्धारित कर्तव्यों के निर्वहन करने हेतु मजबूर करने के लिए, अपनी अधिकारिता का प्रयोग करने के लिए और सरकार को किसी भी अंसवैधानिक कानून लागू नहीं करने के सरकारी आदेश की न्यायिक मजबूरी के लिए  उच्च न्यायालय सीधे अथवा प्रत्यत्क्ष तरीके से रिट जारी कर सकते हैं।

भारत सरकार बनाम उन्नी कृष्णन मामले में यह कहा गया कि सहायता और संबद्धता के सवाल की परवाह किए बगैर एक निजी चिकित्सा/ इंजीनियरिंग कॉलेज अदालत की रिट क्षेत्राधिकार के भीतर आता है।

3- उत्प्रेषण (Certiorari)

Certiorari (उत्प्रेषण) एक लैटिन शब्द है जिसका अर्थ 'सूचित करने के लिए' है। 'उत्प्रेषण' को एक न्यायिक आदेश के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो आचरण से संबंधित होता है और कानूनी कार्यवाही में उपयोग किया जाता है। इसे निगम जैसे संवैधानिक और सांविधिक निकायों, कंपनियों और सहकारी समितियों जैसे निकायों और सहकारी समितियों तथा निजी निकायों तथा व्यक्तियों के खिलाफ जारी अदालत द्वारा प्रमाणित और कानून के अनुसार किसी भी कार्रवाई के रिकार्ड की आवश्यकता होती है।

ऐसे विभिन्न प्रकार के आधार हैं जिसके आधार पर उत्प्रेषण की रिट जारी की जाती है:

1) अधिकार क्षेत्र का अभाव

2) न्याय क्षेत्र का दुरूपयोग

3) अधिकार क्षेत्र का दुरुपयोग

4) समान न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन।

सैय्यद याकूब बनाम राधाकृष्णन मामले में, यह कहा गया कि उत्प्रेषक्ष की रिट जारी करना उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का एक पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार है और इस पर अदालती कार्यवाही एक अपीलीय अदालत के रूप में कार्य करने की पात्र नहीं है। कानून की एक त्रुटि जो स्पष्ट रूप से द्स्तावेजों में अंकित है को तो रिट द्वारा सुधारा जा सकता है लेकिन तथ्य की त्रुटि को सहीं नहीं किया जा सकता है। हालांकियदि एक तथ्य का निष्कर्ष 'कोई सबूत नहीं है' पर आधारित है तो इसे कानून की एक त्रुटि के रूप मे माना जाएगा जिसे उत्प्रेषण द्वारा ठीक किया जा सकता है।

4- निषेधाज्ञा (Prohibition)

निषेधाज्ञा का अर्थ है "मना करना या बंद करना" और आम बोलचाल में इसे 'स्टे आर्डर' के रूप में जाना जाता है। जब कोई निचली अदालत या एक अर्ध न्यायिक निकाय एक विशेष मामले में अपने अधिकार क्षेत्र में प्रद्त्त अधिकारों को अतिक्रमित कर किसी भी मुक़दमें की सुनवाई करती है तो सुप्रीम कोर्ट या अन्य कोई भी उच्च न्यायालय द्वारा रिट जारी की जाती है। भारत में, निषेधाज्ञा को मनमाने प्रशासनिक कार्यों से व्यक्ति की रक्षा के लिए जारी किया जाता है।

5- अधिकार पृच्छा (Quo warranto)

Quo warranto एक लैटिन शब्द है जिसका अर्थ है "किस वारंट द्वारा"। जब न्यायालय को लगता है कि कोई व्यक्ति ऐसे पद पर नियुक्त हो गया है जिसका वह हकदार नहीं है तब न्यायालय इस (अधिकार पृच्छा) को जारी कर सकता है और व्यक्ति को उस पद पर कार्य करने से रोक देता है। संविधान द्वारा निर्मित कार्यालयों के खिलाफ इसे जारी किया जा सकता है जैसे- एडवोकेट जनरल, विधान सभा के अध्यक्ष, नगर निगम अधिनियम के तहत वाले अधिकारी, एक स्थानीय सरकारी बोर्ड के सदस्य, विश्वविद्यालय के अधिकारी और शिक्षक। लेकिन इसे निजी स्कूलों की प्रंबंध समिति के खिलाफ जारी नहीं किया जाता है क्योंकि उनकी नियुक्ति किसी प्राधिकरण के तहत नहीं होती है।

Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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