राज्य लोक सेवा आयोग

Dec 18, 2015, 17:19 IST

भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने प्रांतीय स्तर पर लोक सेवा आयोग की स्थापना की जिसे राज्य लोक सेवा आयोग के रूप में जाना जाता है तथा भारत के संविधान ने इसे स्वायत्त निकायों के रूप में संवैधानिक दर्जा दिया है| एक राज्य लोक सेवा आयोग (SPSC) में एक अध्यक्ष और राज्य के राज्यपाल द्वारा नियुक्त किए गए अन्य सदस्य शामिल होते हैं। नियुक्त सदस्यों में से आधे सदस्यों को भारत सरकार के अधीन या किसी राज्य की सरकार के तहत कार्यालय में कम से कम दस साल के लिए कार्यरत होना चाहिए|

भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने प्रांतीय स्तर पर लोक सेवा आयोग की स्थापना की जिसे राज्य लोक सेवा आयोग के रूप में जाना जाता है तथा भारत के संविधान ने इसे स्वायत्त निकायों के रूप में संवैधानिक दर्जा दिया है|

संरचना

एक राज्य लोक सेवा आयोग (SPSC) में एक अध्यक्ष और राज्य के राज्यपाल द्वारा नियुक्त किए गए अन्य सदस्य शामिल होते हैं। नियुक्त सदस्यों में से आधे सदस्यों को भारत सरकार के अधीन या किसी राज्य की सरकार के तहत कार्यालय में कम से कम दस साल के लिए कार्यरत होना चाहिए| संविधान ने आयोग के सामर्थ्य को स्पष्ट रूप से नहीं बताया है| राज्यपाल के पास सदस्यों की संख्या के साथ साथ आयोग के कर्मचारियों और उनकी सेवा की शर्तों को निर्धारित करने का अधिकार होता है।

राज्यपाल SPSC के सदस्यों में से किसी एक को कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में नियुक्त कर सकते हैं यदि :

(i) आयोग के अध्यक्ष का पद रिक्त हो जाये; या
(ii) आयोग का अध्यक्ष अनुपस्थिति के कारण या किसी अन्य कारण से अपने कार्यालय के कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो।

इस तरह का सदस्य एक कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में कार्य करता है जब तक किसी व्यक्ति को कार्यालय के कर्तव्यों का पालन करने के लिए अध्यक्ष के रूप में नियुक्त ना किया जाये या जब तक अध्यक्ष पुनः अपना कार्य आरंभ ना कर दे, जैसी भी स्थिति हो|

कार्यकाल

SPSC का अध्यक्ष और सदस्य छह साल की अवधि के लिए या जब तक वे 62 वर्ष की आयु प्राप्त न कर लें, जो भी पहले हो, कार्यरत रहते हैं| SPSC के सदस्य राज्यपाल को संबोधित करते हुए कार्यकाल की अवधि के बीच में अपना इस्तीफा सौंप सकते हैं|

कर्तव्य और कार्य

SPSC के कर्तव्य और कार्य निम्न प्रकार से हैं:

i. यह राज्य की सेवाओं में नियुक्तियों के लिए परीक्षाएं आयोजित करता है।

ii. नीचे दिये गए मामलों पर SPSC से विचार-विमर्श किया जाता है:

a. सिविल सेवाओं व सिविल पदों की भर्ती की प्रक्रियाओं से संबन्धित सभी मामले|

b. सिविल सेवाओं और पदों के लिए नियुक्तियों और एक सेवा से दूसरे में पदोन्नतियों व स्थानांतरण और इस तरह की नियुक्तियों, पदोन्नति या स्थानांतरण के लिए उम्मीदवारों के चयन के लिए नियमों का पालन करना|

c. एक नागरिक की हैसियत से भारत सरकार के अधीन सेवारत व्यक्ति को प्रभावित करने वाले सभी अनुशासनात्मक मामले जिसमें इन मामलों से संबन्धित स्मृति पत्र या याचिकाएं शामिल हों|

d. अपने आधिकारिक कर्तव्य के निष्पादन में या किए गए कार्यों के खिलाफ किए गए कानूनी कार्यवाही के बचाव में एक सिविल सेवक द्वारा किए गए किसी भी प्रकार के खर्च पर दावा करना|

e. भारत सरकार के अधीन सेवारत व्यक्ति घायल होने पर पेंशन के हक़ के लिए दावा कर सकता है और किसी भी हक़ के लिए राशि से संबन्धित कोई भी प्रश्न कर सकता है|

f.  कार्मिक प्रबंधन से संबन्धित कोई भी मामले।

g. यह राज्यपाल को आयोग द्वारा किए गए कार्य की सालाना वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करता हैं|

राज्य विधायिका राज्य की सेवाओं से संबंधित SPSC को अतिरिक्त कार्य प्रदान कर सकती है। SPSC के कार्य का विस्तार निगमित निकाय की कार्मिक प्रणाली के द्वारा या कानून द्वारा गठित अन्य निगमित निकाय या इसके तहत कोई भी सार्वजनिक संस्था द्वारा किया जा सकता है|

SPSC की वार्षिक रिपोर्ट उनके प्रदर्शन के बारे में बताते हुए राज्यपाल को सौंपी जाती है| उसके बाद राज्यपाल इस रिपोर्ट को राज्य विधानमण्डल के समक्ष मामलों को समझाते हुए ज्ञापन के साथ रखता है|

Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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