राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण
हाल के वर्र्षों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण के मुद्दे पर खासी जागरूकता पैदा हुई है। आज पर्यावरण तमाम देशों के एजेंडे पर शीर्ष पर है। अब इसे किसी एक देश की समस्या न मानकर पूरे ग्लोबल कम्युनिटी की समस्या माना जाता है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने देश में पर्यावरण संबंधी मामलों पर सुनवाई के लिए एक राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण प्राधिकरण की स्थापना की है। सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जस्टिस न्यायमूर्ति लोकेश्वर सिंह पांटा को इसका प्रमुख नियुक्त किया गया है।
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण विधेयक संसद के दोनों सदनों में मई 2010 में पारित किया गया था तथा राष्ट्रपति द्वारा इसका अनुमोदन 2 जून, 2010 को किया गया था।
न्यायाधिकरण के अधिकार
न्यायाधिकरण को व्यापक अधिकार दिए गये हैं। पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन करने वालों को यह तीन वर्ष तक के कारावास व 10 करोड़ रुपए तक की सजा दे सकता है। कार्पोरेट सेक्टर के लिए यह राशि 25 करोड़ तक हो सकती है। इस न्यायाधिकरण के पहले पर्यावरण मामलों की देखभाल के लिए देश में नेशनल एन्वॉयरमेंट एपीलेट अथॉरिटी थी जिसे अब भंग कर दिया गया है। इसके अंतर्गत सभी विचाराधीन मामले अब हरित न्यायाधिकरण को हस्तांतरित कर दिए गये हैं। इसके साथ ही विभिन्न हाईकोर्ट में पर्यावरण से संबंधित लंबित मामले भी न्यायाधिकरण को हस्तांतरित कर दिये गये हैं।
न्यायाधिकरण की संरचना
हरित न्यायाधिकरण को हाईकोर्ट का दर्जा दिया गया है। इसका मुख्यालय दिल्ली में स्थापित किया गया है। इसके साथ ही इसकी चार पीठें देश के चार विभिन्न शहरों में स्थापित की जाएंगी।
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