र्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को महारत्न का दर्जा
मिलेगी कार्य में अधिक स्वायत्तता
भारत सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की चुनिंदा कंपनियों को मिनी नवरत्न व नवरत्न का दर्जा देने की नीति लंबे समय से अपना रखी है। अब इससे आगे बढ़ते हुए सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की बड़ी व अच्छा प्रदर्शन करने वाली कंपनियों को महारत्न का दर्जा देने का फैसला किया है। इसके लिए सरकार ने कुछ मानक भी तैयार कर लिये हैं जिन पर वर्तमान में मात्र तीन कंपनियाँ- ओएनजीसी, स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लि. व एनटीपीसी ही खरी उतरती हैं। नवरत्न का दर्जा इन कंपनियों को पहले ही से प्राप्त है और महारत्न का दर्जा मिलने से इन कंपनियों को अपने कार्य में और भी अधिक स्वायत्तता हासिल हो जाएगी और सरकार का हस्तक्षेप कम से कम हो जाएगा।
अधिक क्षमतावान होंगी महारत्न कंपनियां
महारत्न कंपनियों के लिए जो नियम-कानून बनाये गये हैं उसके अनुसार उन्हें देश-विदेश में संयुक्त उपक्रम गठित करने तथा विलय एवं अधिग्रहण संबंधी निर्णय लेने में मोटे तौर पर काफी स्वतंत्रता हासिल होगी। उन्हें अपने कुल नेटवर्थ के 15 फीसदी तक की राशि के विलय व अधिग्रहण के लिए सरकार से अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी। साथ ही देश या विदेश में 5 हजार करोड़ रु. तक के निवेश के लिए उन्हें सरकार से पूर्वानुमति नहीं लेनी होगी। उल्लेखनीय है कि नवरत्न कंपनियों को बिना सरकारी अनुमति के एक हजार करोड़ रु. तक के निवेश की अनुमति है।
महारत्न कंपनी बनने के लिए जरूरी अर्हताएं
महारत्न का दर्जा मिलना इतना आसान नहीं है। किसी कंपनी को महारत्न कंपनी बनने के लिए जरूरी है कि वह शेयर बाजार में सूचीबद्ध हो, साथ ही पिछले तीन वर्र्षों में कंपनी का औसत कारोबार 25,000 करोड़ रु. होना चाहिए। साथ ही इसी अवधि के दौरान कंपनी ने 5000 करोड़ रु. का शुद्ध लाभ अर्जित किया हो। साथ ही यह भी जरूरी है कि कंपनी को पहले से ही नवरत्न का दर्जा हासिल हो। साथ ही कंपनी का विदेश में भी कारोबार हो। यदि कोई कम्पनी उपर्युक्त अर्हताएं पूरी करती है तभी उसे महारत्न का दर्जा मिलेगा।
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