शिक्षक दिवस का दिन हर साल 5 सितंबर को मनाया जाता है, जब हम अपने शिक्षकों को धन्यवाद और सम्मान देते हैं। इस खास दिन पर लिखी गई कविताएँ बच्चों और छात्रों को उनकी भूमिका की महत्वपूर्णता को समझाने में मदद करती हैं। ये कविताएँ शिक्षक की शिक्षा, उनकी मेहनत और उनके आशीर्वाद की सराहना करती हैं, जो हमारे जीवन को दिशा और संवार देती है। कबीरदास के दोहे इस संदेश को और स्पष्ट करते हैं, जिसमें वे गुरु की महिमा और उनके ज्ञान की शक्ति को अभिव्यक्त करते हैं।
कबीरदास कहते हैं कि गुरु का आशीर्वाद संसार की सबसे अमूल्य सम्पत्ति है। इन कविताओं और दोहों के माध्यम से हम अपने शिक्षकों की भूमिका की गहराई को समझ सकते हैं और उन्हें उचित सम्मान दे सकते हैं। छोटी और बड़ी कविताएँ यहाँ पढ़ें…
Short Teacher’s Day Poem in Hindi - शिक्षक दिवस पर पढ़ें छोटी कविताएँ
कविता 1 -
हम स्कूल रोज हैं जाते,
शिक्षक हमको पाठ पढ़ाते,
दिल बच्चों का कोरा कागज,
उस पर ज्ञान अमिट लिखवाते,
जाति-धर्म पर लड़े न कोई,
करना सबसे प्रेम सिखाते |
हमें सफलता कैसे पानी,
कैसे चढ़ना शिखर बताते,
सच तो ये है स्कूलों में,
अच्छा इक इंसान बनाते||
कविता 2-
टीचर होती एक परी,
सिखाती हमको चीज नई,
कभी सुनाती एक कविता,
कभी सुनाती एक कहानी,
करे कभी जो हम शैतानी,
कान पकड़े, याद आए नानी,
अच्छे काम पर मिले शाबासी,
टीचर बनाती मुझे आत्मविश्वासी,
टीचर होती एक परी,
सिखाती हमको चीज नई ||
- मयूरी खंडेलवाल,
कविता 3 -
ज्ञान का दीपक वो जलाते हैं,
माता पिता के बाद वो आते हैं।
माता देती हैं हमको जीवन,
पिता करते हैं हमारी सुरक्षा,
लेकिन जो जीवन को सजाते हैं,
वही हमारे शिक्षक कहलाते है।|
शिक्षक बिना न ज्ञान है,
शिक्षक बिना न मान है,
हमारा जीवन सफल बनाते हैं,
ज्ञान का दीपक वो जलाते हैं।|
जीवन संघर्षो से लड़ना शिक्षक हमे बताते हैं।
सत्य न्याय के पथ पे चलना शिक्षक हमे बताते हैं
ज्ञान का दीपक वो जलाते हैं, माता पिता के बाद वो आते हैं।
कविता 4 -
सही क्या गलत क्या हमको बताते हैं शिक्षक।
यह जिंदगी का पाठ हमें सिखाते हैं शिक्षक।
झूठ सेहत के लिए नहीं होता है अच्छा, यह बताते हैं शिक्षक।
सदा सच का सारथी बने रहने की बात बताते हैं शिक्षक।
हर कठिन राह को आसान बनाने में हमारी मदद करते हैं शिक्षक।
जीवन के हर मोड़ पर कैसे लड़ना है, यह समझाते हैं शिक्षक।
आभार प्रकट करना मुश्किल है शिक्षक का।
मंजिल कठोर हो तो राहो को पार लगाते हैं शिक्षक
कविता 5 -
अज्ञान को ज्ञान की ज्योति दिखा कर,
अंधेरो को रौशनी का रास्ता दिखा कर।
ये गुरु है जो ज्ञान की किरणें फैला कर,
शिष्यों का भविष्य उज्जवल बनाते हैं।
सफलता के राह पर चलना सिखाकर,
हमें कामयाबियों के शिखर पर पहुँचाते है।
जीवन को जीने की दिशा दे कर,
हम सबको गुरु ही सफल बनाता है।
Long Poem for Teacher’s Day in Hindi - शिक्षक दिवस पर पढ़ें बड़ी कविताएँ
गुरु आपकी ये अमृत वाणी
- सुजाता मिश्रा
गुरु आपकी ये अमृत वाणी
हमेशा मुझको याद रहे।
जो अच्छा है जो बुरा है
उसकी हम पहचान करे।
मार्ग मिले चाहे जैसा भी
उसका हम सम्मान करे।
दीप जले या अँगारे हो
पाठ तुम्हारा याद रहे।
अच्छाई और बुराई का
जब भी हम चुनाव करे।
गुरु आपकी ये अमृत वाणी
हमेशा मुझको याद रहे।।
बच्चों के भविष्य को
- शम्भू नाथ
बच्चों के भविष्य को,
शिक्षक सजाता है।
ज्ञान के प्रकाश को,
शिक्षक जलाता है।
सही-गलत के फर्क को,
शिक्षक बताता है।
शिष्यों को सही शिक्षा,
शिक्षक ही दे पाता है।
ऊंचे शिखर पर शिष्य को,
शिक्षक ही चढ़ाता है।
बच्चों के भविष्य में,
और निखार लाता है।
शिष्य को कभी शिक्षक,
नहीं ढाल बनाता है।
असफल होते जब कार्य में,
अफसोस जताता है।
शिक्षक ही समाज का,
उत्तम जो ज्ञाता है।
विद्या देते दान गुरूजी
- शिव नारायण सिंह
विद्या देते दान गुरूजी ।
हर लेते अज्ञान गुरूजी ॥
अक्षर अक्षर हमें सिखाते ।
शब्द शब्द का अर्थ बताते ।
कभी प्यार से कभी डाँट से,
हमको देते ज्ञान गुरूजी ॥
जोड़ घटाना गुणा बताते ।
प्रश्न गणित के हल करवाते ॥
हर गलती को ठीक कराते,
पकड़ हमारे कान गुरूजी ॥
धरती का भूगोल बताते ।
इतिहासों की कथा सुनाते ॥
क्या कब क्यों कैसे होता है,
समझाते विज्ञान गुरूजी ॥
खेल खिलाते गीत गवाते ।
कभी पढ़ाते कभी लिखाते ॥
अच्छे और बुरे की हमको,
करवाते पहचान गुरूजी ॥
गुरु महिमा
- घनश्याम मैथिल
गुरु की महिमा निशि-दिन गाएँ,
हर दम उनको शीश नवाएँ।
जीवन में उजियारा भर लें,
अंधकार को मार भगाएँ।
सत्य मार्ग पर चलना बच्चो,
गुरुदेव हमको सिखलाएँ।
पर्यावरण बिगड़ न पाए,
धरती पर हम वृक्ष लगाएँ।
पानी अमृत है धरती का,
बूँद-बूँद हम रोज बचाएँ।
सिर्फ जिएँ न अपनी खातिर,
काम दूसरों के भी आएँ।
मात, पिता, गुरु, राष्ट्र की सेवा,
यह संकल्प सदा दोहराएँ।
बातें मानें गुरुदेव की,
अपना जीवन सफल बनाएँ।
शिक्षक दिवस पर कबीरदास के दोहे
गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त॥
भावार्थ:- इस दोहे में गुरु की तुलना एक पारस से की गई है, जो लोहा को सोना बना देता है। यहाँ पर पारस की विशेषता बताई गई है कि जैसे पारस की छूने से लोहा सोना बन जाता है, वैसे ही गुरु की उपस्थिति और शिक्षा से गुरु शिष्य को अपने समान महान बना लेता है।
गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय।
कहैं कबीर सो संत हैं, आवागमन नशाय॥
भावार्थ:- इस दोहे में संत कबीर यह बता रहे हैं कि सच्चे संत वे होते हैं जो गुरु की आज्ञा को पूरी तरह मानते हैं और उस पर अमल करते हैं।
कुमति कीच चेला भरा, गुरु ज्ञान जल होय।
जनम-जनम का मोरचा, पल में डारे धोया॥
भावार्थ:- कबीर दास कह रहे हैं कि एक मूर्ख शिष्य की बुद्धि जैसे कीचड़ से भरी हुई होती है, लेकिन गुरु के ज्ञान का जल उस कीचड़ को साफ कर देता है। गुरु का ज्ञान इतना शक्तिशाली होता है कि वह जन्म-जन्म के बुरे कर्मों (मोरचा) को एक पल में धो डालता है।
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़ै खोट।
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट॥
भावार्थ:- गुरु को एक कुम्हार की तरह समझो और शिष्य को एक मटके के रूप में। गुरु उस मटके को बार-बार गढ़ते और सुधारते हैं ताकि उसमें कोई खोट न रहे। गुरु अपने शिष्य के अंदर के दोषों को दूर करते हैं, जबकि बाहरी रूप से कभी-कभी कठोरता भी दिखाते हैं।
गुरु समान दाता नहीं, याचक शीष समान।
तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान॥
भावार्थ:- गुरु जैसा कोई दाता नहीं होता। गुरु ही याचक की तरह होते हैं, जो सब कुछ देने के लिए तैयार रहते हैं। गुरु तीनों लोकों की सम्पत्ति भी शिष्य को दान करते हैं, अर्थात् वे अपने ज्ञान और आशीर्वाद से शिष्य को सब कुछ देते हैं।
सब धरती कागज करूँ, लिखनी सब बनराय।
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय॥
भावार्थ:- अगर पूरी धरती को कागज मान लिया जाए और सभी पेड़-पौधों को कलम मान लिया जाए, और सात समुद्रों को स्याही मान लिया जाए, तब भी गुरु के गुण और उनके महत्व को पूरी तरह से नहीं लिखा जा सकता। उनका गुण इतना विशाल और अमूल्य है कि उसकी सीमाएं नहीं हैं।
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