Positive India: आदिवासी समुदाय के डॉ. राजेंद्र भारुड़ कभी गन्ने के पत्तों से बनीं झोपड़ी में रहते थे, आज हैं एक सफल IAS - जानें उनके संघर्ष की कहानी

Aug 25, 2020, 16:22 IST

महाराष्ट्र के एक आदिवासी परिवार से आने वाले डॉ राजेंद्र भारुड़ ने जीवन में कठिन से कठिन चुनौती का सामना किया और अपने जीवन को प्रगति की दिशा दी। वह ना सिर्फ एक सफल डॉक्टर बनें बल्कि समाज के सुधार के लिए आज एक सफल IAS अधिकारी भी हैं। 

UPSC Success story IAS Rajendra Bharud in hindi
UPSC Success story IAS Rajendra Bharud in hindi

“जीवन में अपनी स्थिति के बारे में उदास मत हो और केवल समस्याओं के बारे में मत सोचें। समाधान के बारे में सोचें जो आपको मजबूत बनाएगा और यही आगे बढ़ने और सफल होने का एकमात्र तरीका है“ यह कहना है महाराष्ट्र में नंदुरबार जिले के जिला मजिस्ट्रेट डॉ राजेंद्र भरुद का। 7 जनवरी 1988 को सकरी तालुका के छोटे से गाँव सादु तालुका में जन्मे डॉ. राजेंद्र, बंधु भरुद और कमलाबाई के तीन बच्चों में से दूसरे हैं। वह कहते हैं कि आज तक उन्हें नहीं पता कि उनके पिता कैसे दिखते थे क्योंकि उनका निधन राजेंद्र के बचपन में हो गया था। राजेंद्र की माँ ने ही उन्हें पढ़ाया और जीवन में हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। हालांकि राजेंद्र का बचपन बेहद गरीबी और कठिनाइयों भरा रहा है। आइये जानते हैं उनके डॉक्टर और फिर आईएएस बनने तक के सफर के बारे में:

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गन्ने के पत्तों से बनीं झोपड़ी में रहता था पूरा परिवार 

उनके पिता के देहांत के बाद राजेंद्र की माँ जिसे वह माई कह कर पुकारते हैं और उनकी दादी ने ही घर चलाया और तीन बच्चों की परवरिश की। वह देसी शराब बेचकर घर का खर्च चलाती थी और पूरा परिवार गन्ने के पत्तों से बनी एक छोटी सी झोपड़ी के नीचे रहता था।

राजेंद्र बताते हैं की उनकी माँ और दादी महुआ के फूलों का उपयोग करके पारंपरिक शराब तैयार करती थी जो आमतौर पर महाराष्ट्र के उस आदिवासी इलाके में पाई जाती थी। इसे अवैध नहीं माना जाता क्योंकि यह उस क्षेत्र में बहुत आम है। उसे बेचकर ही उनके घर का गुज़ारा चलता था। वह दिन के लगभग 100 रूपए कमाती थीं। इसका उपयोग उनके दैनिक खर्चों के लिए, शराब बनाने के लिए और शिक्षा के लिए किया जाता था। राजेंद्र और उनकी बहन ने उसी गांव के जिला परिषद स्कूल में पढ़ाई की जबकि उनके भाई ने एक स्थानीय आदिवासी स्कूल में पढ़ाई की।

10वीं और 12वीं कक्षा में किया टॉप 

राजेंद्र कक्षा 5 में थे जब उनके शिक्षकों ने महसूस किया कि वह एक असामान्य रूप से बुद्धिमान बच्चे थे। शिक्षकों ने माँ को सूचित किया कि राजेंद्र की अपार क्षमता का दोहन करने के लिए उन्हें उच्च शिक्षा के लिए बेहतर संस्थान में भेजना चाहिए। राजेंद्र बताते हैं की "मेरी माँ ने शराब का कारोबार जारी रखा और मुझे गाँव से 150 किलोमीटर दूर जवाहर नवोदय विद्यालय में पढ़ने भेज दिया। इन स्कूलों में ग्रामीण क्षेत्रों के होनहार छात्रों को मुफ्त आवास, और स्कूली शिक्षा दी जाती है।"

नवोदय स्कूल में उन्होंने गणित और विज्ञान के लिए एक जुनून विकसित किया। वह हमेशा शीर्ष छात्रों में से थे - 10 वीं बोर्ड की परीक्षा में उन्होंने दोनों विषयों में टॉप किया और दो साल बाद 12वीं बोर्ड परीक्षाओं में उन्होंने कक्षा में टॉप किया। नतीजतन योग्यता छात्रवृत्ति से उन्हें मुंबई के सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिल गया।

गरीबों की मदद के लिए पहले बनें डॉक्टर और फिर IAS 

राजेंद्र बताते हैं की “बचपन से ही मैंने डॉक्टर बनने का सपना देखा था ताकि मैं दूसरे लोगों की मदद कर सकूँ। लेकिन, जैसे-जैसे मैं बड़ा हुआ, मुझे एहसास हुआ कि लोगों की मदद करने के लिए, मुझे उन्हें शिक्षित करने और बेहतर जीवन के अवसर प्रदान करने की आवश्यकता है। ऐसा करने के लिए मुझे एक सिविल सेवक बनना था” एमबीबीएस छात्र ने यूपीएससी परीक्षा के लिए अध्ययन शुरू करने का फैसला किया। यह कोई आसान काम नहीं था लेकिन राजेंद्र ने इसे संचालित किया। उन्होंने एक निश्चित दैनिक दिनचर्या विकसित करना शुरू किया और वह कहते हैं कि उन्होंने एक प्रोग्राम कंप्यूटर की तरह काम किया। वह सुबह 5 बजे उठते, कुछ अभ्यास या ध्यान करते, पढ़ाई शुरू करते, कक्षाओं में जाते और कुछ और वापस आ कर फिर पढ़ाई करते 

दुसरे एटेम्पट में बनें IAS 

चिकित्सा के अंतिम वर्ष में अपनी एमबीबीएस परीक्षा के साथ उन्होंने अपनी यूपीएससी परीक्षा भी लिखी और पहले प्रयास में ही इसे पास कर लिया। जब उनके यूपीएससी परिणाम घोषित किए गए, डॉ. राजेंद्र अपने गांव में वापस आ गए थे और उनकी मां को पता नहीं था कि उनका बेटा अब एक सिविल अधिकारी था। हालाँकि पहले प्रयास में रैंक के आधार पर उन्हें IRS सेवा के लिए चयनित किया गया था। लेकिन उन्होंने एक बार फिर कोशिश की और 2013 की परीक्षा में उन्होंने IAS बन कर अपना लक्ष्य हासिल किया। 

उन्होंने मसूरी में अगले दो वर्षों तक प्रशिक्षण लिया। 2015 में वह नांदेड़ जिले में सहायक कलेक्टर और परियोजना अधिकारी के रूप में तैनात थे, और 2017 में वह सोलापुर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में तैनात थे। आखिरकार जुलाई, 2018 में उन्हें नंदुरबार का जिलाधिकारी बनाया गया।

डॉ. राजेंद्र ने एक मराठी पुस्तक "मी एक स्वपन पहील" (2014) भी लिखी है, जहाँ उन्होंने अपने संघर्ष, यात्रा और तीन बच्चों की परवरिश के लिए अपनी माँ के बलिदानों का वर्णन किया है। आज, वह अपनी माँ, पत्नी और बच्चों के साथ सरकारी क्वार्टर में रहते है। आईएएस अधिकारी बनने की ओर डॉ. राजेंद्र की यात्रा दृढ़ संकल्प और एकाकी ध्यान का एक चमकदार उदाहरण है और प्रेरणादायक भी हैअपनी सफलता ार वह कहते हैं की "यह आसान नहीं था, लेकिन मैं कड़ी मेहनत करने के लिए तैयार था, और यह मुझे मिल गया" 

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