Dear Parents
ARISTOTLE ने कहा था जो लोग बच्चों को पढाते हैं वह अधिक सम्मान के अधिकारी हैं बनिस्पत उनके जो उन्हें पैदा करते हैं। जीवन देना और जीवन का भलि-भांति जीना दो अलग बातें हैं। शिक्षक जीना सिखाते हैं। बचपन में पढी कबीर वाणी भी तो यही कहती है गुरु गोविंद दोऊ खडे काके लागूं पाय, बलिहारी गुरुआपने गोविंद दियो बताय। आज के युग में टीचर्स को उनका यथोचित सम्मान नहीं मिलता यह चिंता का विषय है। SERIOUS TEACHERS जिन्होंने यह कॅरियर अपनी पसंद से चुना है उनके लिए चिंता का एक और विषय भी है। STUDENTS को किस प्रकार MOTIVATED रखा जाए ताकि वह अपने विषय एवं जीवन को भलि-भांति समझ कर आगे बढ सकें। बच्चों का सीमित MOTIVATION उनकी DISTRACTIONS और सामान्य व्यवहार बहुत बडा विषय है जिसे इस सीमित स्तम्भ में सही प्रकार से चर्चा में नहीं लाया जा सकता परंतु अपनी ओर से अच्छे और गम्भीर शिक्षक क्या कर सकते हैं। इस बारे में कुछ बातें अवश्य की जा सकती हैं:
-प्रतिदिन की पढाई में बेहतर TEACHING PRACTICES बच्चों के MOTIVATION को बनाए रखने में काफी योगदान देती हैं। TEACHERS के बर्ताव, पढाने की शैली, कोर्स के STRUCTURE की सरलता, मैत्रीपूर्ण एवं INTERACTIVE पढाई इत्यादि कई ऐसे कदम हैं जो STUDENT को आपकी ओर खींचे रखते हैं। तभी तो कुछ TEACHERS अपने SCHOOL एवं COLLEGE में बेहद POPULAR रहते हैं और कुछ बिल्कुल भी नहीं।
-चाहे STUDENTS हों या फिर CAREERX के किसी भी कदम पर कोई भी व्यक्ति, EXPERTS का मानना है कि MOTIVATIONदो प्रकार का होता है- INTRINSIC और EXTRINSIC..
INTRINSIC हमारे भीतर से पनपता है। कुछ विषय मुझे अच्छे लगते हैं इसलिए मैं उनमें अधिक INTEREST रखता हूं, उसे अधिक पढना पसंद करता हूं और शायद उसके अनुरूप कॅरियर भी बनाना चाहता हूं। EXTRINSIC MOTIVATION बाहर से मिलता है। यह अपने गोल को पूरा करने के पश्चात के प्रलोभन या नतीजे हो सकते हैं। स्टूडेन्ट जो सिर्फ नम्बर की होड में किसी भी विषय में आगे बढते हैं, वह अधिकतर EXTRINSIC MOTIVATED होते हैं। STUDENTX जो अपने चुने हुए विषय को नम्बरों से अधिक जान पर ध्यान देते हैं वह INTRINSIC होते हैं। इस अभियान में यदि नम्बर भी अच्छे आ जाएं तो सोने में सुहागा समझिए। फिल्म थ्री इडियट के आमिर खान कुछ ऐसा ही उदाहरण पेश करते हैं।
एक बेहतरीन TEACHER STUDENTS को स्वयं से पहचान कराने का एक सम्मान है। और आप STUDENT की INTRINSIC MOTIVATION को समझ सकते हैं और उन्हें सही राह पर डालने का प्रयास कर सकते हैं तो शायद इससे अधिक आपको नहीं करना पडेगा। STUDENT स्वयं ही START होकर मंजिल की ओर बढने लगेगा। कुरुक्षेत्र के युद्ध में दु:शासन गुरु द्रोण से पूछते हैं, गुरुवर शिक्षा तो आपने हमें समान दी थी फिर अर्जुन आपको प्रिय क्यों? गुरु द्रोण बोले, वत्स शिक्षा तो समान दी थी, परंतु तुम उसे अन्तिम शिक्षा मान बैठे और अर्जुन उसे माध्यम बनाकर मुझसे भी आगे बढ गया। सोचिए, चर्चा कीजिए, ACTION लीजिए.
कॅरियर कोच की चिट्ठी: 8 मई 2013
ARISTOTLE ने कहा था जो लोग बच्चों को पढाते हैं वह अधिक सम्मान के अधिकारी हैं बनिस्पत उनके जो उन्हें पैदा करते हैं...
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