16वां सार्क शिखर सम्मेलन
दक्षिण एशियाई देशों के संगठन सार्क का शिखर सम्मेलन 29 अप्रैल, 2010 को भूटान की राजधानी थिम्पू में आयोजित किया गया। इस सम्मेलन की मुख्य थीम- हरित व सुखी दक्षिण एशिया का निर्माण थी। यह पहला अवसर था जब किसी सार्क सम्मेलन का आयोजन भूटान में किया गया। शिखर सम्मेलन में सभी सार्क देशों के शीर्ष नेता शामिल हुए।
भारतीय प्रधानमंत्री का संबोधन
भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने संबोधन में दक्षिण एशियाई क्षेत्र में वस्तुओं, सुविधाओं और लोगों के आने-जाने में और अधिक छूट देने की वकालत की और कहा कि इस संगठन की तुलना में एशिया में बने अन्य संगठनों ने कही अधिक तरक्की की है। अलग सार्क को मजबूत न किया गया तो यह शेष दुनिया से अलग-थलग पड़ जाएगा।
सम्मेलन में आतंकवाद का मुद्दा भी जोरदार तरीके से उठाया गया। भारत ने सार्क आतंकवाद निरोध संधि और अपराध को रोकने में आपसी सहयोग को लेकर संधि पर जोर दिया। इस मुद्दे पर भारत को भरपूर समर्थन मिला। इस मामले में भूटानी प्रधानमंत्री लियोनछेन जिग्मे थिनले ने स्पष्ट रूप से कहा कि आतंक के बल पर किसी भी मकसद को हल नहीं किया जा सकता है। यह किसी भी स्तर पर समर्थन एवं सहानुभूति का हकदार नहीं है।
सम्मेलन का घोषणापत्र
सम्मेलन के अंत में एक घोषणापत्र स्वीकार किया गया जिसमें 25 वर्र्षों में सार्क की उपलब्धियों पर संतोष व्यक्त किया गया। च्च्थिम्पू सिलवर जुबली डिक्लेरेशन टुवड्र्स ए ग्रीन एंड हैप्पी साउथ एशियाज्ज् शीर्षक नामक इस घोषणापत्र में युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए सार्क यूथ समिट के आयोजन का आह्वान किया गया। दूसरी ओर जेंडर ईक्विलिटी को बढ़ावा देने के लिए सार्क की अगली महासचिव पद पर महिला के मनोनयन की मालदीव की घोषणा का स्वागत किया गया। घोषणापत्र में 2011-20 के दशक को डिकेड ऑफ इंट्रारीजनल कनेक्टीविटी इन सार्क के रूप में मनाने की भी घोषणा की गई। कृषि, परिवहन, जलवायु परिवर्तन, पर्यटन आदि महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिए आह्वान थिम्पू सम्मेलन में किया गया। सम्मेलन के दौरान जलवायु परिवर्तन के लिए अलग से घोषणापत्र भी जारी किया गया।
इस सार्क सम्मेलन में ऑस्ट्रेलिया, चीन, ईरान, जापान, दक्षिण कोरिया, मॉरिशस, म्यांमार, अमेरिका व यूरोपीय संघ ने ऑब्जर्वर के रूप में भाग लिया।
सार्क का इतिहास
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) दक्षिण एशिया के आठ देशों का क्षेत्रीय संगठन है। सम्मेलन के सदस्य देशों की कुल जनसंख्या लगभग 1.5 अरब है जो किसी अन्य क्षेत्रीय संगठन की तुलना में काफी ज्यादा है। इसकी स्थापना 8 दिसंबर, 1985 को भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, मालदीव और भूटान ने मिलकर की थी। 2008 में अफगानिस्तान इसका आठवां सदस्य देश बना। सार्क की स्थापना के पीछे मुख्य उद्देश्य इस क्षेत्र में आर्थिक विकास की गति को नई दिशा देना था, लेकिन सार्क अपनी स्थापना के इतने समय बाद भी इस कसौटी पर खरा नहीं उतरा है।
सार्क में भारत और पाकिस्तान दो सबसे महत्वपूर्ण देश हैं जिनके बीच कई मुद्दों पर गहरे मतभेद हैं, जिसका प्रभाव प्रत्येक सार्क सम्मेलन पर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
सफल नहीं रहा है सार्क
भारी-भरकम जनसंख्या व एक ही तरह की समस्याओं से जुझने के बावजूद सार्क समय की कसौटी पर खरा उतरने में नाकामयाब रहा है। इस समय दुनिया में यूरोपीय संघ, आसियान, एपेक जैसे कई संगठन हैं जिन्होंने में व्यापार को नई बुलंदियों तक पहुंचाया है, इसके बरक्स सार्क है जहां आपसी व्यापार का स्तर काफी कम है।
गरीबी और पिछड़ेपन से ग्रस्त इस क्षेत्र के लिए सार्क ने कई महत्वाकांक्षी योजनाएं तैयार की हैं लेकिन वे महज कागज तक ही सीमित रह गईं। लगभग 15 वर्ष पहले आधारभूत ढ़ांचे के निर्माण के लिए दक्षिण एशिया विकास निधि की स्थापना की गई थी, जिसे अब जाकर थिम्पू सम्मेलन में संचालित करने का निश्चय लिया गया है। सन 2006 में काफी विलंब से दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार समझौता कार्यान्वित किया गया, जिससे इस क्षेत्र में व्यापार तो बढ़ा है लेकिन इसे संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है।
पहले यूरोपीय यूनियन की तर्ज पर दक्षिण एशियाई क्षेत्र के आर्थिक एकीकरण करने और एकल मुद्रा अपनाने की चर्चा जोर-शोर से की गई थी, लेकिन अब इस आइडिया को तकरीबन छोड़ दिया गया है।
सार्क: पक्ष व विपक्ष
पक्ष में तर्क
(1) जनसंख्या के लिहाज से दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन।
(2) पूरा दक्षिण एशिया भौगोलिक संरचना के लिहाज से एक राष्ट्र की तरह है, जिससे आपस में किसी भी तरह के आदान-प्रदान के लिए परिस्थितियां काफी अनुकूल हैं।
(3) सांस्कृतिक दृष्टिकोण से सार्क के देशों में काफी समानता है।
विपक्ष में तर्क
(1) भारत व पाकिस्तान के बीच इस क्षेत्र में काफी अर्से से तनाव है जिसकी वजह से सार्क का एजेंडा आगे नहीं बढ़ पा रहा है।
(2) सार्क के देश आर्थिक सहयोग को किसी मुकाम पर नहीं पहुंचा पा रहे हैं, जिसकी वजह से इस संगठन की स्थापना का मुख्य उद्देश्य ही नहीं पूर्ण हो पा रहा है।
(3) चीन का दखल भी सार्क को सफल होने से रोक रहा है। चीन ऐन-केन प्रकारेण सार्क में दाखिल होकर इस क्षेत्र में चौधराहट करना चाहता है।
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