विभिन्न आधार पर पर्वतों का वर्गीकरण

भू-स्थल पर अनेक प्रकार के पर्वत पाए जाते हैं. ये पर्वत अपनी आयु, ऊंचाई, स्थिति, निर्माणकारी प्रक्रिया, बनावट आदि की दृष्टि से एक-दूसरे से इतने भिन्न होते हैं कि कोई भी दो पर्वत एक-दूसरे जैसे नहीं होते हैं. विद्वानों ने अलग-अलग आधार पर पर्वतों का वर्गीकरण किया है. इस लेख में हम विभिन्न आधार पर वर्गीकृत किए गए पर्वतों का विवरण दे रहे हैं.

Dec 26, 2017, 17:14 IST
Classification of Mountains
Classification of Mountains

भू-स्थल पर अनेक प्रकार के पर्वत पाए जाते हैं. ये पर्वत अपनी आयु, ऊंचाई, स्थिति, निर्माणकारी प्रक्रिया, बनावट आदि की दृष्टि से एक-दूसरे से इतने भिन्न होते हैं कि कोई भी दो पर्वत एक-दूसरे जैसे नहीं होते हैं. विद्वानों ने अलग-अलग आधार पर पर्वतों का वर्गीकरण किया है जो निम्नलिखित हैं:-

1. आयु के आधार पर पर्वतों का वर्गीकरण

आयु के आधार पर पर्वतों को 4 भागों में वर्गीकृत किया गया है:
(i) चर्नियन पर्वत: ये विश्व के प्राचीनतम पर्वत हैं. इनका निर्माण कैम्ब्रियन तथा पूर्व कैम्ब्रियन युग में लगभग 40 करोड़ वर्ष पहले हुआ था. भारत के धारवाड़, छोटानागपुर, अरावली तथा कुड़प्पा के पर्वत इसी श्रेणी में आते हैं.  
(ii) केलिडोनियन पर्वत: इन पर्वतों का निर्माण डेविनियन तथा सिलूरियन युग में लगभग 32 करोड़ वर्ष पहले हुआ था. उत्तरी अमेरिका के अप्लेशियन पर्वत तथा यूरोप में स्कॉटलैंड, स्कैण्डनेविया तथा उत्तरी आयरलैंड के पर्वत इस श्रेणी में आते हैं.
(iii) हरसीनियन पर्वत: इन पर्वतों का निर्माण आज से लगभग 22 करोड़ वर्ष पूर्व कार्बन और परमियन कल्पों के बीच हुआ था. एशिया के टयानशान, नामशान, अल्टाई, जुगेरिया, ऑस्ट्रेलिया का पूर्वी कार्डिलेरा, यूरोप का पेनाइन, हार्ज वास्जेस, ब्लैक फॉरेस्ट पर्वत आदि इस श्रेणी में आते हैं.
(iv) अल्पाइन पर्वत: इन पर्वतों का निर्माण आज से लगभग 3 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ था. इस श्रेणी में अधिकांश नवीन वलित पर्वत आते हैं, जिनमें हिमालय, आल्प्स, रॉकीज, एण्डीज, पेरेनीज प्रमुख हैं.
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2. ऊंचाई के आधार पर पर्वतों का वर्गीकरण

प्रोफेसर फिंच ने पर्वतों को उनकी ऊंचाई के आधार पर 4 भागों में वर्गीकृत किया गया है:
(i) निम्न पर्वत (Low Mountains): इन पर्वतों की ऊंचाई 2,000 फुट से 3,000 फुट तक होती है.
(ii) कम ऊंचे पर्वत (Rough Mountains): इन पर्वतों की ऊंचाई 3,000 से 4,500 फुट तक होती है.
(iii) साधारण ऊंचे पर्वत (Rugged Mountains): इन पर्वतों की ऊंचाई 4,500 फुट से 6,000 फुट तक होती है.
(iv) अधिक ऊंचे पर्वत (Siessan Mountains): इन पर्वतों की ऊंचाई 6,000 फुट से अधिक होती है.

3. भौगोलिक व्यवस्था के आधार पर पर्वतों का वर्गीकरण

प्रोफेसर पी.जी. वौरसेस्टर ने भौगोलिक व्यवस्था के आधार पर पर्वतों को 7 भागों में विभाजित किया है:
(i) पर्वत समूह (Mountain Cluster): इसके अन्तर्गत विभिन्न काल की और विभिन्न विधियों से बनी पर्वतमालाएं, पर्वत क्रम एवं पर्वत श्रेणियां आती हैं. ब्रिटिश कोलम्बिया का कार्डिलेरा पर्वत समूह इसका उदाहरण है.
(ii) पर्वत तंत्र (Mountain System): एक ही काल और एक ही पर्वत से निर्मित अनेक पर्वत-श्रेणियों एवं पर्वत वर्गों के समूह को पर्वत तंत्र कहते हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका का अप्लेशियन पर्वत इसका उत्तम उदाहरण है.
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(iii) पर्वत-श्रेणी (Mountain Range): जब एक ही प्रकार से बने हुए समान आयु के अनेक पर्वत एक लम्बी तथा संकरी पट्टी में व्यवस्थित होते हैं तो उसे पर्वत-श्रेणी कहा जाता है. हिमालय पर्वत श्रेणी इसका उदाहरण है.
(iv) पर्वत वर्ग (Mountain Group): ये कई पर्वतों से मिलकर बनते हैं, किन्तु इसमें पर्वतों की कोई निश्चित व्यवस्था नहीं होती है. संयुक्त राज्य अमेरिका के कोलोरोडो राज्य में स्थित सान जुआन पर्वत इसका अच्छा उदाहरण है.
(v) पर्वत कटक (Mountain Ridge): जब कोई स्थलखंड वलन अथवा भ्रंशन क्रिया के कारण एक मेहराब के रूप में ऊपर उठ जाता है तो उसे पर्वत कटक कहते हैं. सामान्यतः पर्वत कटक लम्बे और संकरे होते हैं. अप्लेशियन पर्वत की नीली पर्वत, पर्वत कटक का उदाहरण है.
(vi) पर्वत श्रृंखला (Mountain Chain): उत्पत्ति एवं आयु की दृष्टि से असमान पर्वत जब लम्बी और संकरी पट्टियों में पाये जाते हैं तो उन्हें पर्वत श्रृंखला कहा जाता है.
(vii) एकाकी पर्वत (Individual Mountain): कभी-कभी किसी स्थल भाग के अत्यधिक अपरदन के कारण अथवा ज्वालामुखीय क्रिया के कारण एकाकी पर्वतों की रचना हो जाती है. ये पर्वत अपवादस्वरूप ही मिलते हैं.

4. उत्पत्ति के आधार पर पर्वतों का वर्गीकरण

उत्पत्ति के आधार पर पर्वतों को 4 भागों में विभाजित किया गया है:
(i) वलित पर्वत (Fold Mountains): वलित पर्वतों का निर्माण तलछटी चट्टानों में मोड़ पड़ने के कारण होता है. विद्वानों के अनुसार अब से तीन करोड़ वर्ष पहले पृथ्वी के विस्तृत निचले भागों में तलछटी चट्टानों का जमाव हो गया था, जिन्हें भू-अभिनति (Geosyncline) कहते हैं. समय के साथ पृथ्वी की अन्तर्जात शक्तियों के कारण इन चट्टानों पर पार्श्वीय सम्पीड़न होने लगा, जिसके कारण इन चट्टानों के कुछ भाग नीचे धंस गए और कुछ ऊपर की ओर उठ गए. नीचे धंसे हुए भाग को अभिनति (Syncline) तथा ऊपर उठे हुए भाग को अपनति (Anticline) कहते हैं. अपनति के रूप में ऊपर उठे हुए भाग को ही वलित पर्वत कहते हैं.
वर्तमान युग में सभी बड़े पर्वत वलित पर्वत हैं. एशिया में हिमालय, यूरोप में आल्प्स, उत्तरी अमेरिका में रॉकी तथा दक्षिणी अमेरिका में एण्डीज सभी वलित पर्वत के उदाहरण हैं.
(ii) भ्रंश अथवा खंड पर्वत (Block Mountains): पृथ्वी की आंतरिक शक्तियों के कारण पृथ्वी की पपड़ी पर दरारें पड़ जाती हैं. ये दरारें भू-गर्भ में काम कर रही तनाव की शक्तियों के लम्बवत दिशा में कार्य करने से पड़ती हैं. इन शक्तियों के कारण यदि पृथ्वी के एक ओर का भाग ऊपर उठ जाए अथवा किसी क्षेत्र के आस-पास का भाग नीचे धंस जाए तो ऊपर उठे हुए भाग को भ्रंश पर्वत कहते हैं. फ्रांस का “वास्जेस”, जर्मनी का “ब्लैक फॉरेस्ट”, भारत का “विंध्याचल” एवं “सतपुड़ा” तथा पाकिस्तान का “साल्ट रेंज” भ्रंश पर्वत के उदाहरण हैं.
(iii) ज्वालामुखी पर्वत (Volcanic Mountains): जब ज्वालामुखी से निकलने वाला गाढ़ा होता है तो वह अधिक दूर तक नहीं फैल पता है और ज्वालामुखी के मुख के पास ही जम कर एक पर्वत का निर्माण करता है, जिसे ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं. जापान का फ्यूजियामा तथा म्यांमार का पोपा अम्लीय लावा से बना ज्वालामुखीय पर्वत है जबकि हवाई द्वीप समूह का मोनालोआ पर्वत क्षारीय लावा से बना ज्वालामुखीय पर्वत है.
(iv) अवशिष्ट पर्वत (Residual Mountains or Reliet Mountains): इन पर्वतों का निर्माण के कारण होता है. नदी, वायु, हिमनदी जैसे अपरदन के कारक प्राचीनकालीन उच्च भूभाग को अपरदन के द्वारा कुरेद देते हैं. इसके बाद बाकी बचे हुए भाग को अवशिष्ट पर्वत अथवा घर्षित पर्वत कहते हैं. भारत में नीलगिरी, पारसनाथ तथा राजमहल की पहाड़ियां तथा मध्य स्पेन के सीयरा तथा अमेरिका के मैसा एवं बूटे की पहाड़ियां अवशिष्ट पर्वत के उदाहरण हैं.
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