क्या आप एक रूपये के नोट का इतिहास जानते हैं

Dec 4, 2017, 12:20 IST

एक रूपये के नोट के पीछे काफी दिलचस्प इतिहास रहा है. यह कैसे और कब जारी हुआ था. किसने इसको जारी किया था. अब तक इसमें क्या-क्या बदलाव हुए है आदि इस लेख के माध्यम से जानने की कोशिश करते हैं.

History of One Rupee note
History of One Rupee note

कौन इंडिगो रंग के सबसे कम मूल्यवान एक रुपए के नोट को भूल सकता है. ये हम सब जानते है कि "रुपए" शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द 'रुपिया' से हुई है जिसका अर्थ है सही आकार एवं मुहर लगा हुआ मुद्रित सिक्का या फिर 'रुपया' जिसका अर्थ चांदी होता है. 19वीं सदी में ब्रिटिशों ने इस उपमहाद्वीप में कागज के पैसों की शुरुआत की थी. पेपर करेंसी कानून 1861 ने सरकार को ब्रिटिश भारत के विशाल क्षेत्र में नोट जारी करने का एकाधिकार दिया था. इस लेख में एक रूपये के नोट का इतिहास के बारे में अध्ययन करेंगे.
एक रूपये के नोट का इतिहास
एक रूपये के नोट को जारी हुए 100 साल हो गए है. यह ब्रिटिश राज के दौरान 30 नवंबर 1917 को ही जारी हुआ था. इसके शुरू होने का इतिहास बहुत ही दिलचस्प है. पहले विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजो की हुकुमात हुआ करती थी. इस दौरान चांदी का एक रूपये का सिक्का चलता था.
क्या आप जानते हैं कि चांदी का सिक्का कब से प्रचलित हुआ, कौन लाया था? 1526 ईस्वी से मुगल साम्राज्य ने पूरे साम्राज्य के लिए मौद्रिक व्यवस्था को मजबूत किया था. रूपये के इस युग के विकास में जब शेर शाह सूरी ने हुमायूं को हराया और 178 ग्राम चांदी का एक सिक्का जारी किया जिसे रूपया कहा गया. इसे 40 तांबे के टुकड़ों या पैसे में विभाजित किया गया था और पूरे मुगल काल के दौरान यह चांदी का सिक्का उपयोग में बना रहा.
प्रथम विश्व युद्ध के कारण सरकार उस समय एक रूपये के चांदी का सिक्का चलाने में असमर्थ हो गई थी. ऐसे में 1917 में पहली बार एक रुपए का नोट जारी किया गया. इस पर एम.एम.एस गुबेय, ए.सी.एमसी वाटर्स और एच. डेनिंग  तीन हस्ताक्षरकर्ताओं द्वारा हस्ताक्षर किया गया था. इस नोट पर ब्रिटेन के राजा जॉर्ज पंचम की तस्वीर छपी थी. ब्रिटेन काल में यह एक रूपये का नोट इंग्लैंड में छपा था और सबसे कम मूल्य का था. जब इसको जारी किया गया था तब यह 10.7 gm चांदी के बराबर था.

One rupee note with the image of George V

भारत की करेंसी नोटों का इतिहास और उसका विकास
रिज़र्व बैंक की वेबसाइट के अनुसार
1926 में "लागत लाभ के विचारों" के आधार पर एक रूपये के नोट को सबसे पहले बंद किया गया था.1940 में इसे पुनः शुरू किया गया, फिर 1994 में दुबारा इसे बंद कर दिया गया था. यह नोट 2015 में फिर से वापस आ गया. यह भारत सरकार द्वारा जारी किया जाता है नाकि रिजर्व बैंक के द्वारा  और यह केवल एक 'मुद्रा नोट' या फिर एक परिसंपत्ति है, नाकि 'कोई प्रतिज्ञापत्र’, जो कि एक दायित्व है. अन्य बैंक नोटों के विपरीत, यह आरबीआई गवर्नर द्वारा हस्ताक्षरित नहीं होता है, बल्कि इस पर वित्त सचिव हस्ताक्षर करते है.
देखा जाए तो एक रूपये के नोट को दो बार बंद किया गया है और संशोधनों को छोड़कर कम से कम तीन बार इसके डिजाइन को बदला गया है, लेकिन यह प्रत्येक कलेक्टर के लिए सबसे अधिक मांग वाले टुकड़ों में से एक है.
प्रमुख अधिभार 1940 में हुआ जब ब्रिटिश ने इसकी विशेषताओं को बदल दिया, जिसमें इसके आकार में भी कमी आई थी. वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के बाद और 1950 के दशक में जब भारत गणराज्य बन गया, भारत के आधुनिक रुपये ने अपना डिजाइन फिर से प्राप्त किया. कागज के नोट के लिए सारनाथ के चतुर्मुख सिंह वाले अशोक के शीर्षस्तंभ को चुना गया था. इसने बैंक के नोटों पर छापे जा रहे जॉर्ज V का स्थान लिया. इस प्रकार स्वतंत्र भारत में मुद्रित पहला बैंक नोट 1 रुपये का नोट था. मौजूदा नोट को पुन: परिचय के साथ, 2016 में अंतिम बार बदला गया था.
एक रूपये के नोट और अन्य नोटों के बीच एक और बड़ा अंतर यह है कि सभी आरबीआई नोटों में यह बयान होता है कि “I promise to pay the bearer a sum of xxx rupees”  लेकिन एक रुपये के नोट में ऐसा कोई कथन नहीं होता है.
इस लेख के माध्यम से एक रूपये के इतिहास के बारे में अथवा कब-कब यह बदला गया और क्या-क्या बदलाव हुए थे के बारे में ज्ञात होता हैं.

Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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