भारत में जब भी प्रतिष्ठित सरकारी सेवाओं की बात होती है, तो इसमें सबसे शीर्ष पर सिविल सेवाओं का नाम आता है। सिविल सेवाओं में भी आईएएस और आईपीएस जैसे पद टॉप लिस्ट में रहते हैं। इस परीक्षा को देने वाले अमूमन सभी अभ्यर्थियों की इच्छा इन दो में से एक पद को ही लेने की होती है।
IPS सेवाएं भारत में पुलिस सेवाओं में सबसे शक्तिशाली सेवाओं में शामिल है। क्योंकि, पुलिस का नेतृत्व करने वाले अधिकारी IPS अधिकारी ही होते हैं। आपने भारत की पहली महिला IPS अधिकारी के बारे में पढ़ा और सुना होगा। हालांकि, क्या आप जानते हैं कि भारत के पहले IPS अधिकारी कौन थे, यदि नहीं, तो इस लेख के माध्यम से हम इस बारे में जानेंगे।
कौन थे भारत के पहले IPS अधिकारी
भारत के पहले IPS अधिकारी सीवी नरसिम्हन थे। उन्होंने देश आजाद होने के बाद 1948 में पुलिस सेवा को ज्वाइन किया था। उस समय इसे इंपेरियल पुलिस के नाम से जाना जाता था।
विदेश से की थी पढ़ाई
सीवी नरसिम्हन का जन्म 21 मई, 1915 को उस समय के मद्रास में हुआ था। उन्होंने त्रिरूच्चिरापल्ली के सेंट जॉसेफ कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास में दाखिला लिया। कुछ समय बाद वह लंदन की ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के लिए पहुंचे।
1937 में हुए थे भर्ती
सीवी नरसिम्हन साल 1937 में भारतीय सिविल सेवाओं में नियुक्त हुए थे। उस समय उन्होंने मद्रास विकास विभाग में उप सचिव के रूप में सेवाएं दी। वहीं, अपने बेहतर काम के लिए उन्हें साल 1946 में ब्रिटिश सरकार द्वारा मेंबर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एंपायर से सम्मानित किया गया।
भारत में इन वरिष्ठ पदों पर दी सेवाएं
सीवी नरसिम्हन ने पुलिस सेवा से जुड़कर भारत में विभिन्न महत्त्वपूर्ण पदों पर अपनी सेवाएं दी। उन्होंने तमिलनाडू पुलिस में अहम पदों पर काम किया। वहीं, बाद में केंद्रीय अन्वेष्ण ब्यूरो(CBI) के निदेशक के रूप में किया। अंत में वह राष्ट्रीय पुलिस आयोग में सदस्य सचिव भी बने।
वैश्विक स्तर पर इस पद पर दी सेवाएं
सीवी नरसिम्हन न सिर्फ भारत तक सीमित रहे, बल्कि उन्होंने वैश्विक स्तर पर भी अपनी सेवाएं दी। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र आर्थिक आयोग में एशिया और सुदूर पूर्व के लिए कार्यकारी अधिकारी के रूप में काम किया।
राष्ट्रपति पद से किया गया सम्मानित
सीवी नरसिम्हन को पुलिसिंग में बेहतर सेवाओं के लिए 1962 में पुलिस मेडल से सम्मानित किया गया। वहीं, लगातार अपनी कर्तव्यनिष्ठा और अच्छे कार्यों के लिए उन्हें 1971 में राष्ट्रपति पदक से भी सम्मानित किया गया। दो नवंबर, 2003 को उनका निधन हो गया।
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