देश के इतिहास में दिल्ली का नाम भुलाया नहीं जा सकता। चाहे यहां राजवंश की बात हो या फिर अंग्रेजों द्वारा कोलकाता के बाद नई दिल्ली को बनाई गई अपनी नई राजधानी की, विभिन्न मौके पर दिल्ली का महत्व रहा है। इसे बार कई लूटा गया, तो कई बार बसाया गया। इस दौरान अंत में ब्रिटिश ने भी दिल्ली में रहकर पूरे देश में राज किया। ब्रिटिशों ने अपने शासन के दौरान कई इमारतों और पुलों का भी निर्माण कराया। इस बीच दिल्ली को दो छोर को जोड़ने वाला यमुना नदी के ऊपर बने पुल का भी निर्माण कराया गया। कई वर्ष बीत जाने के बाद भी यह पुल आज भी दिल्ली के दो हिस्सों को जोड़ने का काम कर रहा है। इसके निचले भाग में जहां हल्के वाहनों के जाने का रास्ता है, तो ऊपर भारतीय रेल की विभिन्न ट्रेनें गुजरती हैं, जो कि पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से होकर गुजरती हैं। सालों-साल चलने के लिए इस पुल को बनाने में 3500 टन लोहा लगाया गया था। इस लेख के माध्यम से हम पुल से जुड़े कुछ तथ्यों को जानेंगे।
कब हुआ था निर्माण
इस पुल का निर्माण ईस्ट इंडिया रेलवे की ओर से ब्रिटिश द्वारा सन् 1866 में किया गया था। उस समय इस पुल को बनाने में 16,16,335 पौंड की लागत आई थी। वर्तमान में एक पौंड की कीमत 102 रुपये हैं।
क्यों किया गया था निर्माण
अंग्रेजों के लिए कोलकाता में शासन करने के साथ दिल्ली भी बहुत जरूरी थी। साल 1853 में भारत में पहली ट्रेन चलने के बाद अंग्रेज रेलवे को विस्तार दे रहे थे। इस कड़ी में दिल्ली तक रेलवे लाइन बिछाई गई थी। वहीं, कोलकाता को दिल्ली से जोड़ने के लिए इस पुल का निर्माण किया गया था। उस समय इस पुल पर सिर्फ एक रेलवे लाइन हुआ करती थी।
1913 में बिछाई दूसरी लाइन
अंग्रेजों ने साल 1913 में इस पुल के ऊपर रेलवे की दूसरी लाइन बिछा दी थी। इसके लिए 14,24,900 पौंड की लागत आई थी। पुल को बनाने में 202.5 फीट के 12 स्पैन और अंत में 35.5 फीट के स्पैन लगे हैं। वहीं, इस पुल की कुल लंबाई 700 मीटर है। जब इस पुल का निर्माण किया गया, तो इसके दोनों छोर पर एक सुरक्षाकर्मी भी बैठता था, जिसके लिए एक कमरा भी बनाया गया था। वह सुरक्षाकर्मी खिड़की से ही पुल से आने जाने वाले सभी वाहनों पर नजर रखता था। वहीं, उस कमरे से एक रास्ता पुल के ऊपर भी जाता है। आज भी वह कमरा व खिड़कियां पुल के अंदर प्रवेश करते हुए देखे जा सकते हैं।
3500 टन लोहे से बना है पुल
इस पुल का निर्माण 3500 टन लोहे से किया गया है। इसके लिए ब्रिटेन में ही इस पुल के ढांचे को बनाया गया था, जिसके बाद इसे यहां लाकर फिट किया गया था। आपको बता दें कि साल 2011 में 200 टन से अधिक लोहा बदला गया था। इसके बाद कई बार लोहे के टुकड़ों को बदला गया है, जिसके लिए एक विशेष कंपनी से करार किया गया था। हालांकि, पुराना पुल होने के कारण इस पुल के ऊपर से गुजरने वाली ट्रेनों की रफ्तार कम कर दी गई है। साथ ही पुल से अब भारी वाहनों के प्रवेश पर भी रोक लगा दी गई है। जब भी यमुना में जलस्तर बढ़ता है, तो इस पुल को बंद कर दिया जाता है।
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