पटना एक प्राचीन शहर है जो पूर्वोत्तर भारत के बिहार में गंगा नदी के दक्षिणी तट पर फैला हुआ है। राज्य की राजधानी होने के नाते, यहां बिहार संग्रहालय स्थित है, जो इस क्षेत्र की कांस्य मूर्तियों और पुराने सिक्कों का एक समकालीन स्मारक है। यह एक ऐतिहासिक और पौराणिक शहर है, जिसके गंगा किराने करीब 55 घाट स्थित है। क्या आप जानते हैं पटना के इन घाटों की कहानी बड़ी रोचन है। आइए आप इन घाटों के बारे में जानते हैं-
गांधी घाट पटना
गांधी घाट पटना के प्रमुख घाटों में से एक है, जिसका नाम महात्मा गांधी के नाम पर रखा गया है। यहां 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के शहीदों की स्मृति में एक स्मारक भी मौजूद है। बता दें कि इसी घाट को महात्मा गांधी की अस्थियों को विसर्जित करने से भी जोड़ा गया है। वहीं यह घाट शाम की गंगा आरती के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। श्रद्धालू इस घाट पर तीर्थ स्नान और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं।
यह घाट लोकप्रिय पर्यटक स्थल के रूप में जाना जाता है। यहां आने वाले पर्यटक गांधी घाट से रिवर क्रूज जहाज नदी में यात्रा भी करते हैं। यहां पर्यटकों के लिए नौकायान से लेकर सभी सुविधाएं मौजूद है।
रानी घाट
रानी घाट अशोक राजपथ के महेंद्रू डाकघर के पास सुमति पथ में गंगा घाट मार्ग में मौजूद है। इस घाट में देश का इकलौता बाबा भूतेश्वरनाथ का मंदिर है। मंदिर के एक ही गर्भगृह में चार शिवलिंग स्वरूप है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में सम्राट अशोक आते थे। वहीं सम्राट अशोक की बेटी संघमित्रा ने रानी घाट पर ही धर्म प्रचार के लिए प्रस्थान किया था और सम्राट अशोक की पत्नी यहां स्नान करने के लिए आती थी। यही कारण है कि इस घाट का नाम रानीघाट रख दिया गया।
गुलबी घाट
इतिहासकारों के अनुसार गुलाबी घाट का नाम एचआर गलवी नामक अंग्रेज के नाम पर रखा गया था। ईस्ट इंडिया कंपनी के दौरान गलवी कैप्टन था। इसी घाट से वह नाव के जरिए फोर्ट विलियम (कोलकात्ता) जाता था। कैप्टन गलवी के नाम पर रखा गया यह घाट बाद में गुलबी घाट के नाम जाने जाना लगा। आज यह राजधानी के सबसे प्रमुख श्मशान घाट के रूप में पहचाना जाता है।
खाजेकलां घाट
खाजेकलां फारसी के दो शब्द ख्वाजा और कला से मिल कर बना है, जिसका मतलब है श्रेष्ठ। सदियों से इस घाट का उपयोग स्नान और अंत्येष्ट कर्म के लिए किया जा रहा है। डॉक्यूमेंट्स के अनुसार सुप्रसिद्ध सर्वेक्षक फ्रांसिस बुकानन के प्लान आफ पटना 1812 में इस घाट को सबसे धार्मिक और सुंदर घाटों के रूप में उन्नत किया गया। इस घाट के आधुनिकीकरण की दिशा में पहला प्रयास 20वीं सदी में किया गया था।
गायघाट
गायघाट का निर्माण बादशाह जहांगीर के समय हुआ था। सिखों के प्रथम गुरु नानक देव और नौवें गुरु तेग बहादुर गायघाट गुरुद्वारे में ठहरे थे। भक्तों ने वहां गायघाट गुरुद्वारा बनवाया। हिंदुओं की मान्यता है कि प्राचीन गौरीशंकर मंदिर में स्थापित शिवलिंग और गाय की मूर्ति किसी ने स्थापित नहीं की थी, बल्कि स्वयं प्रकट हुई थी। धार्मिक मान्यताओं के कारण, समय के साथ इसका नाम गौघाट से गायघाट हो गया।
कृष्णा घाट
शहर के सबसे लंबे घाटों में कृष्णा घाट है, जिसकी लंबाई 119.5 मीटर है। पर्यटन विभाग के अनुसार, मेजर कार्नाक के नेतृत्व वाली ब्रिटिश सेना और शुजा-उद-दौला, मीर कासिम और शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेनाओं के बीच प्रसिद्ध युद्ध 3 मई, 1764 को इसी स्थान के निकट हुआ था। इस घाट के किनारे में प्रसिद्ध शिक्षाविद् सर गणेशदत्त का आवास था, जिसे पटना विश्वविद्यालय को दान किया गया था।
कंगन घाट
सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह महाराज बचपन में प्रतिदिन खेलने के लिए कंगन घाट आया करते थे, जो दुनिया में सिखों के दूसरे सबसे बड़े तख्त श्री हरिमंदिर पटना साहिब से मात्र 700 गज की दूरी पर है।
एक दिन गंगा नदी में खेलते समय उन्होंने अपने हाथ का कंगन नदी में फेंक दिया। जब नाविक कंगन नदी से निकालने गया, तो नदी में चारों ओर असंख्य कंगन देखकर वह आश्चर्यचकित रह गया।
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