Shakuntala Railways: भारत को आजाद हुए 78 साल हो चुके हैं। भारत आज हर क्षेत्र में लगातार प्रगति कर रहा है। वहीं रेलवे का भी भारत की प्रगति में हिस्सेदारी रही है। ब्रिटिश काल से लेकर आज तक रेलवे हर भारतीय का प्राथमिक सहायता है। रेलवे नई ट्रेन और लेटेस्ट सुविधाओं के साथ जबरदस्त अपडेट ला रही है, जिससे यात्रियों की जिंदगी काफी आसान बन गई है।
भारतीय रेलवे आज एशिया का दूसरा और दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। लेकिन, आपको यह जानकर हैरानी हो सकती है भारत के महाराष्ट्र में एक ऐसा राज्य रेल ट्रैक, जिसका मालिकाना हक आज भी ब्रिटिश कंपनी के पास है। हालांकि, इसके बारे में कम ही लोग जानते हैं। भारत सरकार हर साल इस ट्रैक के रखरखाव के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी को करोड़ों रुपये चुकाती है।
इसे शकुंतला रेलवे ट्रैक के नाम से जाना जाता है। महाराष्ट्र के यवतमाल से अचलपुर के बीच का यह ट्रैक 190 किमी लंबा है।
कब और क्यों बना शकुंतला रेलवे ट्रैक
शकुंतला रेलवे ट्रैक ब्रिटिश राज की एक विरासत है। इन पटरियों की ओनरशिप आज भी उसी ब्रिटिश कंपनी के पास है जिसने 19वीं सदी में इन्हें बिछाया था। यह रेलवे लाइन 1903 और 1913 के बीच बनाई गई थी। महाराष्ट्र के अमरावती में कपास की खेती होती थी.
ब्रिटिश कंपनी ने इस ट्रैक को महाराष्ट्र के अमरावती में कपास की खेती के लिए बिछवाई थी। यहां से इन कपास को इंग्लैंड के मैनचेस्टर भेजा जाता था। इस रेलवे ट्रैक का आविष्कार ब्रिटेन की किलिक निक्सन एंड कंपनी ने की थी।
यह कंपनी सेंट्रल प्रोविंस रेलवे कंपनी के माध्यम से इस रेलवे ट्रैक को मैनेज करती है। बता दें कि 1951 में भारत सरकार ने ज्यादातर प्राइवेट रेलवे लाइनों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था, लेकिन किसी निजी कारणों की वजह से शकुंतला रेलवे लाइन इसमें शामिल नहीं हो पाई।
इस लाइन पर चलती थी केवल एक ही रेलगाड़ी
इस रेलवे ट्रैक पर सिर्फ एक ही ट्रेन चलती थी, जिसे शकुंतला पैसेंजर के नाम से जाना जाता था। यहा कारण है कि यह रेलवे लाइन शकुंतला रेलवे ट्रैक के नाम से प्रसिद्ध हो गया। यह ट्रेन एक दिन में केवल एक ही चक्कर लगाती थी, जिसमें यवतमाल और अमरावती जिले के अचलपुर के बीच 190 किलोमीटर की दूरी तय होती थी। यह सफल लगभग 20 घंटे का होता था। इस दौरान ट्रेन करीब 17 स्टेशनों पर रुकती थी।
हाल के सालों में इस नेटवर्क को ब्रॉड-गेज में बदलने की योजना निकाली गई है, जिसके कारण इस रूट की सेवाओं को अस्थाई तौर पर बंद कर दिया गया है। वहीं,
स्थानीय निवासियों ने इस ट्रेन को फिर से चलाने की मांग की है। बता दें कि शकुंतला पैसेंजर स्थानीय लोगों के लिए किसी जीवन रेखा से कम नहीं थी।
मैनचेस्टर में बने इंजन से चलती थी ट्रेन
यह रेलगाड़ी 1923 से 70 से अधिक सालों तक मैनचेस्टर में निर्मित जेडडी-स्टीम इंजन पर चलती रही। बाद में 15 अप्रैल 1994 को इस इंजन को हटा दिया गया और उसके स्थान पर डीजल इंजन लगाया गया।
शकुंतला रेलवे की स्थापना 1910 में किलिक-निक्सन नाम के एक प्राइवेट ब्रिटिश फर्म ने की थी। इस कंपनी ने भारत में ब्रिटिश सरकार के साथ एक संयुक्त उद्यम शुरू किया और सेंट्रल प्रोविंस रेलवे कंपनी (CPRC) का गठन किया।
गार्ड करता था टिकट क्लर्क का भी काम
इस ट्रेन की देख-रेख सात लोगों के स्टाफ द्वारा की जाती थी और सभी काम हाथ से ही किए जाते थे जैसे की इंजन को डिब्बों से अलग करने से लेकर सिग्नलिंग और टिकट बिक्री तक सब कुछ हाथों से ही किया जाता था, क्योंकि उस समय किसी तरह की कोई मशीन नहीं थी। इस बीच सबसे दिलचस्प बात यह थी कि यह इकलौती ऐसी ट्रेन थी, जहां गार्ड ही टिकट क्लर्क का काम भी करता था। ऐसा इसलिए होता था, क्योंकि इन रूटों पर कोई रेलवे स्टाफ नहीं होता था।
हर साल 1 करोड़ 20 लाख रुपये रॉयल्टी देती है सरकार
आजादी के बाद भारतीय रेलवे ने ब्रिटिश कंपनी के साथ एक समझौता किया, जिसमें भारतीय रेलवे द्वारा कंपनी को हर साल रॉयल्टी दी जाती है। रिपोर्ट के अनुसार कंपनी को हर साल 1 करोड़ 20 लाख रुपये की रॉयल्टी मिलती है। हालांकि, भारी रॉयल्टी मिलने के बावजूद भी ब्रिटिश कंपनी की ओर से इस ट्रैक का रख-रखाव नहीं किया जाता है। जानकारी के अनुसार भारतीय रेलवे ने इस ट्रैक को ब्रिटिश कंपनी से खरीदने की कोशिश की थी, लेकिन उसमें उन्हें नाकामयाबी मिली।
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