भारतीय लोक चित्रकलाओं की सूची

Jul 24, 2018, 18:21 IST

कला मानव की सौन्दर्य भावना का परिचायक होता है और यह मानव संस्कृति की उपज है। भारत एक प्राचीन सांस्कृतिक देश है। इसलिए यहाँ कला एवं संस्कृति में लोककला का अनूठा समन्वय दिखाई देता है। इस लेख में हमने भारतीय लोक चित्रकलाओं की सूची दिया हैं जो UPSC, SSC, State Services, NDA, CDS और Railways जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए बहुत ही उपयोगी है।

List of Folk Paintings of India HN
List of Folk Paintings of India HN

कला मानव की सौन्दर्य भावना का परिचायक होता है और यह मानव संस्कृति की उपज है। भारत एक प्राचीन सांस्कृतिक देश है। इसलिए यहाँ कला एवं संस्कृति में लोककला का अनूठा समन्वय दिखाई देता है। लोक कला किसी भी क्षेत्र या स्थान का लोक सांस्कृतिक  परम्पराओं का दर्पण होता है।

भारत की लोक चित्रकला

किसी भी क्षेत्र या स्थान की जातियों व जनजातियों में पीढी दर पीढी चली आ रही पारंपरिक कलाओं को लोककला कहते हैं। भारत जैसें देश में विभिन्न प्रान्तों में विविध रूपों में लोककला देखी जा सकती है। जो विभिन्न नामों से जानी जाती है, जिसकी चर्चा नीचे की गयी है।

1. मधुबनी चित्रकला

यह मिथिलांचल क्षेत्र जैसे बिहार के दरभंगा, मधुबनी एवं नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला है। मधुबनी जिले के जितवारपुर गांव इस लोक चित्रकला का मुख्य केंद्र है। शुरुवाती दौर में यह चित्रकला रंगोली के रूप में विकसित हुआ फिर बाद में यह कला धीरे-धीरे आधुनिक रूप में कपड़ो, दीवारों एवं कागज पर उतर आई। मिथिला की औरतों द्वारा शुरू की गई इस घरेलू चित्रकला को पुरुषों ने भी अपना लिया है।

इस चित्रकला में खासतौर पर कुल देवता का भी चित्रण होता है। हिन्दू देव-देवताओं की तस्वीर, प्राकृतिक नजारे जैसे- सूर्य व चंद्रमा, धार्मिक पेड़-पौधे जैसे- तुलसी और विवाह के दृश्य देखने को मिलेंगे। मधुबनी पेंटिंग दो तरह की होतीं हैं- भित्ति चित्र और अरिपन या अल्पना।

इसे घर की तीन खास जगहों पर ही बनाने की परंपरा है, जैसे- पूजास्थान, कोहबर कक्ष (विवाहितों के कमरे में) और शादी या किसी खास उत्सव पर घर की बाहरी दीवारों पर। मधुबनी पेंटिंग में जिन देवी-देवताओं का चित्रण किया जाता है, वे हैं- मां दुर्गा, काली, सीता-राम, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, गौरी-गणेश और विष्णु के दस अवतार इत्यादि। इन तस्वीरों के अलावा कई प्राकृतिक और रम्य नजारों की भी चित्रण की जाती है। महासुंदरी देवी मधुबनी चित्रकला की प्रसिद्ध कलाकार हैं।

2. पट्टचित्र कला

'पट्ट' का अर्थ 'कपड़ा' होता है। यह ओड़िशा की पारम्परिक चित्रकला है। इस चित्रकला में सुभद्रा, बलराम, भगवान जगन्नाथ, दशवतार और कृष्ण के जीवन से संबंधित दृश्यों को दर्शाया जाता है।

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3. पिथोरा चित्रकला

यह गुजराती के राठवास और भील जनजाति के लोगों का पारम्परिक चित्रकला है। यह कला रूप के बजाय अनुष्ठान से अधिक है।

4. कलमकारी चित्रकला

'कलमारी' का शाब्दिक अर्थ है कलम से बनाए गए चित्र। यह भारत की प्रमुख लोककलाओं में से एक है। क़लमकारी एक हस्तकला का प्रकार है जिस में हाथ से सूती कपड़े पर रंगीन ब्लॉक से छाप बनाई जाती है। क़लमकारी शब्द का प्रयोग, कला एवं निर्मित कपड़े दोनो के लिए किया जाता है। मुख्य रूप से यह कला भारत के आंध्र प्रदेश राज्य के कृष्णा जिले के मछलीपट्टनम एवं ईरान में प्रचलित है।

5. कालीघाट चित्रकला

इस चित्रकला का का उद्गम् लगभग 19वीं सदी में कोलकाता के कालीघाट मंदिर में हुआ माना जाता है। इस चित्रकला में मुख्यतः हिन्दू देवी-देवताओं तथा उस समय पारम्परिक किमवदंतियों के पात्रों के चित्रण विशेषतः देखने को मिलते हैं। प्राचीन समय में इस कला के चित्रकार विभिन्न देवी-देवताओं का चित्रण इस कला द्वारा लोगों को पट चित्र में गा-गाकर सुनाया करते थे। इस शैली की चित्रकला में चित्रकार लम्बे-लम्बे कागजों में रामायण, महाभारत व अन्य किम्वदन्तियों पर आधारित दृश्यों का चित्रण करते हैं तथा गाकर उस चित्रण का व्याख्यान करते हैं।

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6. फर्श चित्रकला (पट चित्रकला)

यह भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परंपरा और लोक-कला है। अलग अलग प्रदेशों में अलग-अलग नाम जाती है। इसे सामान्यतः त्योहार, व्रत, पूजा, उत्सव विवाह आदि शुभ अवसरों पर सूखे और प्राकृतिक रंगों से बनाया जाता है। यह उत्तर प्रदेश में चाक पूर्ण  उत्तराखंड में एपन ,राजस्थान में मंडाना; आंध्र प्रदेश में मगुल्लू; बिहार में अरिपाना; महाराष्ट्र में रंगोली; पश्चिम बंगाल में अल्पाना; गुजरात में अथिया; कर्नाटक में रंगवाली; तमिलनाडु में कोल्लम; हिमाचल प्रदेश में अरोफ; और केरल में कलमा जट्टू जैसे विभिन्न नामों से जाना जाता है।

7. वर्ली चित्रकला

इस चित्रकला के नाम का संबंध महाराष्ट्र के जनजातीय प्रदेश में रहने वाले एक छोटे से जनजातीय वर्ग से है। ये अलंकृत चित्र गोंड तथा कोल जैसे जनजातीय घरों और पूजाघरों के फर्शों और दीवारों पर बनाए जाते हैं। वृक्ष, पक्षी, नर तथा नारी मिल कर एक वर्ली चित्र को पूर्णता प्रदान करते हैं। ये चित्र शुभ अवसरों पर आदिवासी महिलाओं द्वारा दिनचर्या के एक हिस्से के रूप में बनाए जाते हैं। इन चित्रों की विषयवस्तु प्रमुखतया धार्मिक होती है और ये साधारण और स्थानीय वस्तुओं का प्रयोग करके बनाए जाते हैं जैसे चावल की लेही तथा स्थानीय सब्जियों का गोंद और इनका उपयोग एक अलग रंग की पृष्ठभूमि पर वर्गाकार, त्रिभुजाकार तथा वृत्ताकार आदि रेखागणितीय आकृतियों के माध्यम से किया जाता है। पशु-पक्षी तथा लोगों का दैनिक जीवन भी चित्रों की विषयवस्तु का आंशिक रूप होता है। शृंखला के रूप में अन्य विषय जोड़-जोड़ कर चित्रों का विस्तार किया जाता है।

वर्ली जीवन शैली की झांकी सरल आकृतियों में खूबसूरती से प्रस्तुत की जाती है। अन्य आदिवासीय कला के प्रकारों से भिन्न वर्ली चित्रकला में धार्मिक छवियों को प्रश्रय नहीं दिया जाता और इस तरह ये चित्र अधिक धर्मनिरपेक्ष रूप की प्रस्तुति करते हैं।

8. थांका चित्रकला

भगवान बुद्ध के जीवन और उनकी शिक्षाओं पर आधरित चित्रकला को थंका चित्रकला कहते हैं। यह चित्रकला भारतीय, नेपाली तथा तिब्बती संस्कृति की अनुकाम मिसाल है। इस के माध्यम से तिब्बती धर्म, संस्कृति एवं दार्शनिक मूल्यों को अभिव्यक्त किया जाता रहा है। इस का निर्माण सामान्यत: सूती वस्त्र के धुले हुए काटल कार किया जाता है।

इस चित्रकला को आध्यात्मिक चित्रकला भी कहते हैं क्योंकि इस चित्रकला का विषय धार्मिक-आध्यात्मिक ही होता है। चूंकि यह भगवान बुद्ध के जीवन और उनकी शिक्षाओं पर आधरित चित्रकला होती है इसलिए इसे बौद्ध चित्रकला भी कहा जाता है।

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