भारत के उत्तर में जब भी प्रमुख राज्यों की बात होती है, तो यूपी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। भारत का यह राज्य अपनी विविध संस्कृति और अनूठी परंपराओं के लिए विश्व विख्यात है। यह प्रदेश जितना बड़ा है, उतना ही यहां मौजूद रेलवे नेटवर्क भी है। प्रदेश के अलग-अलग जिलों में अलग-अलग रेलवे स्टेशन मौजूद हैं, जहां से देश के अलग-अलग हिस्सों के लिए आप ट्रेन पकड़ सकते हैं।
इन रेलवे स्टेशनों में से कुछ रेलवे स्टेशन नए हैं, तो कुछ का इतिहास ब्रिटिश समय से हैं, जिनकी नींव अंग्रेजों द्वारा रखी गई थी। इस कड़ी में हम यूपी के 5 सबसे पुराने रेलवे स्टेशनों के बारे में जानेंगे।
प्रयागराज रेलवे स्टेशन
प्रयागराज रेलवे स्टेशन की नींव 1859 में रखी गई थी। इस वर्ष प्रयागराज से कानपुर के लिए ट्रेन का संचालन किया गया था। पहले इसे इलाहाबाद जंक्शन के नाम से जाना जाता था। हालांकि, बाद में सरकार द्वारा इसका नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया गया। आज यह स्टेशन हावड़ा-दिल्ली, हावड़ा-मुंबई और प्रयागराज-मऊ–गोरखपुर के लिए मुख्य लाइन वाला स्टेशन है।
कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन
कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन का निर्माण भी 1859 में ही किया गया था। क्योंकि, उस समय पहली ट्रेन प्रयागराज से कानपुर के बीच चलाई गई थी। इस ट्रेन में कंकड़ और ईंटों को भरा गया और ट्रेन की रफ्तार 10 किलोमीटर प्रतिघंटा तय की गई। करीब 180 किलोमीटर की दूरी को ट्रेन ने 18 घंटों में पूरा किया। आपको बता दें कि पहली ट्रेन सिर्फ 10 कोच के साथ चली थी।
आगरा फोर्ट रेलवे स्टेशन
आगरा फोर्ट रेलवे स्टेशन का निर्माण 1874 में किया गया था। यह उस समय राजपूताना रेलवे का हिस्सा हुआ करता था। साथ ही, ब्रिटिश के लिए भी यह अधिक महत्त्वपूर्ण था। क्योंकि, वे इसे लॉजिस्टिक बेस के रूप में इस्तेमाल करते थे। यह उन रेलवे स्टेशनों में शामिल है, जहां मीटर गेज रेलवे लाइन बिछाई गई थी। उस समय यहां से राजस्थान के भरतपुर तक ट्रेन जाती थी, जिसका निर्माण राजपूताना रेलवे ने 1873 में कराया था।
चारबाग रेलवे स्टेशन
चारबाग रेलवे स्टेशन का निर्माण 1914 में शुरू हुआ था और यह 1923 में बनकर तैयार हुआ। उस समय रेलवे स्टेशन बनने पर करीब 70 लाख रुपये से अधिक खर्च हुए थे। जैकब हॉर्निमैन ने इसका डिजाइन इस तरह से तैयार किया था कि अंदर कितनी भी ट्रेनें चले, लेकिन बाहर बिल्कुल भी आवाज नहीं आती है।
वहीं, रेलवे स्टेशन पर की छत पर करीब आधा दर्जन पानी की टंकियां हैं, जो कि गुंबद के अंदर ही बनाई गई हैं। आज भी जिन यंत्रों को पानी मापन के लिए इस्तेमाल किया जाता था, उन्हें आज भी उपयोग किया जा रहा है। रेलवे स्टेशन के बारे में कहा जाता है कि यह जमीन पहले लखनऊ के शाही नवाब परिवार शीशमहल परिवार की हुआ करती थी, जो कि बाद में चारबाग रेलवे स्टेशन के पास ही स्थानांतरित हो गए।
बरेली का इज्जत नगर रेलवे स्टेशन
साल 1875 में नैनीताल के पहाड़ी इलाके को मैदानी इलाकों से जोड़ा जा रहा था। इस प्रोजेक्ट पर रेलवे अधिकारी एलेग्जैंडर आइजैट काम कर रहे थे, जिनके नाम पर आइजैट रेलवे स्टेशन नाम रखा गया। उन्होंने ही बरेली से लखनऊ के लिए रेलवे लाइन का विस्तार किया था। आपको बता दें कि उनके बेटे लेफ्टिनेंट कर्नल डब्ल्यूआर आईजेट और उनके पोते सर जेआर आइजैट ने भी इस रेलवे स्टेशन के लिए काम किया है। समय के साथ आइजैट(IZZAT) को लोगों ने इज्जत कर दिया और यह इज्जतनगर रेलवे स्टेशन हो गया।
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